श्रावण में जरूर पढ़ें बिल्वपत्र से जुड़ी यह शिव कथा
प्रीति सोनी
भगवान शिव के पूजा में बिल्वपत्र का अत्यधिक महत्व है। हर श्रद्धालु अपनी श्रद्धा और सामर्थ्य के अनुसार शिव को बिल्वपत्र अवश्य अर्पित करता है। शिव को बिल्वपत्र चढ़ाने का धार्मिक और पौराणिक महत्व तो है ही, लेकिन इससे जुड़ी एक कथा भी बहुत प्रचलित है, जिसमें बेलपत्र या बिल्वपत्र की महत्ता सुनने को मिलती है।
इस कथा के अनुसार - " भील नाम का एक डाकू था। यह डाकू अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए लोगों को लूटता था। एक बार जब सावन का महीना था, भील नामक यह डाकू राहगीरों को लूटने के उद्देश्य से जंगल में गया। इसके लिए वह एक वृक्ष पर चढ़कर बैठ गया। देखते ही देखते पूरा एक दिन और पूरी रात बीत जाने पर भी उसे कोई शिकार नहीं मिला। जिस पेड़ पर वह डाकू चढ़कर छिपा था, वह बेल या बिल्व का पेड़ था।
रात-दिन पूरा बीत जाने के कारण वह परेशान हो गया और बेल के पत्ते तोड़कर नीचे फेंकने लगा। उसी पेड़ के नीचे एक शिवलिंग स्थापित था। भील जो पत्ते तोड़कर नीचे फेंक रहा था, वे शिवलिंग पर गिर रहे थे, और इस बात से भील पूरी तरह से अनजान था।
भील द्वारा लगातार फेंके जा रहे बेल के पत्ते शिवलिंग पर गिरने से भगवान शिव प्रसन्न हुए और अचानक डाकू के सामने प्रकट हो गए। भगवान शिव ने भील डाकू से वरदान मांगने के लिए कहा, और भील का उद्धार किया।"
बस उसी दिन से भगवान शिव को बेलपत्र चढ़ाने का महत्व और अधिक बढ़ गया। और यह मान्यता प्रचलित हुई,कि बेलपत्र अर्पित करने से भगवान शिव अति प्रसन्न होते हैं और उनकी पूजा में भक्तगण अनिवार्य रूप से बेलपत्र चढ़ाने लगे।