Shani pradosh vrat 2024 date श्रावण माह में दो प्रदोष आते हैं दोनों का ही खास महत्व रहता है। पहला प्रदोष 01 अगस्त 2024 गुरुवार को था और अब दूसरा प्रदोष 17 अगस्त 2024 शनिवार को रहेगा। इसे शनि प्रदोष कहेंगे। हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, प्रतिमाह आने वाला प्रदोष व्रत भगवान शिव की कृपा पाने का सबसे बड़ा दिन होता है। इस दिन शाम को प्रदोष काल में भोलेनाथ की पूजा का विशेष महत्व होता है। प्रदोष काल में पूजा करने से भगवान शिव जी जल्दी प्रसन्न होकर अपने भक्तों पर कृपा बरसाते हैं।
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प्रदोष व्रत में संध्या के समय जब सूर्य अस्त हो रहा होता है एवं रात्रि का आगमन हो रहा होता है यानी प्रदोष काल में आरती एवं पूजा होती है, इस समय को ही प्रदोष काल कहा जाता है। इसके साथ ही इस दिन शनि देव का पूजन करना चाहिए।
त्रयोदशी तिथि प्रारम्भ- 17 अगस्त 2024 को सुबह 08:05 बजे से।
त्रयोदशी तिथि समाप्त- 18 अगस्त 2024 को सुबह 05:51 बजे समाप्त।
प्रदोष पूजा मुहूर्त- शाम 06:58 से रात्रि 09:09 तक।
प्रदोष व्रत उपाय : Pradosh Vrat Upay
3. प्रदोष कथा : इस दिन प्रदोष से जुड़ी कथा सुने। प्रदोष को प्रदोष कहने के पीछे एक कथा जुड़ी हुई है। संक्षेप में यह कि चंद्र को क्षय रोग था, जिसके चलते उन्हें मृत्युतुल्य कष्टों हो रहा था। भगवान शिव ने उस दोष का निवारण कर उन्हें त्रयोदशी के दिन पुन:जीवन प्रदान किया था अत: इसीलिए इस दिन को प्रदोष कहा जाने लगा।
शनि प्रदोष व्रत कथा : शनि प्रदोष व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीनकाल में एक नगर सेठ थे। सेठजी के घर में हर प्रकार की सुख-सुविधाएं थीं लेकिन संतान नहीं होने के कारण सेठ और सेठानी हमेशा दुःखी रहते थे। काफी सोच-विचार करके सेठजी ने अपना काम नौकरों को सौंप दिया और खुद सेठानी के साथ तीर्थयात्रा पर निकल पड़े। अपने नगर से बाहर निकलने पर उन्हें एक साधु मिले, जो ध्यानमग्न बैठे थे। सेठजी ने सोचा, क्यों न साधु से आशीर्वाद लेकर आगे की यात्रा की जाए।
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सेठ और सेठानी साधु के निकट बैठ गए। साधु ने जब आंखें खोलीं तो उन्हें ज्ञात हुआ कि सेठ और सेठानी काफी समय से आशीर्वाद की प्रतीक्षा में बैठे हैं। साधु ने सेठ और सेठानी से कहा कि मैं तुम्हारा दुःख जानता हूं। तुम शनि प्रदोष व्रत करो, इससे तुम्हें संतान सुख प्राप्त होगा।
साधु ने सेठ-सेठानी प्रदोष व्रत की विधि भी बताई और शंकर भगवान की निम्न वंदना बताई।
हे रुद्रदेव शिव नमस्कार। शिवशंकर जगगुरु नमस्कार।।
हे नीलकंठ सुर नमस्कार। शशि मौलि चन्द्र सुख नमस्कार।।
हे उमाकांत सुधि नमस्कार। उग्रत्व रूप मन नमस्कार।।
ईशान ईश प्रभु नमस्कार। विश्वेश्वर प्रभु शिव नमस्कार।।
दोनों साधु से आशीर्वाद लेकर तीर्थयात्रा के लिए आगे चल पड़े। तीर्थयात्रा से लौटने के बाद सेठ और सेठानी ने मिलकर शनि प्रदोष व्रत किया जिसके प्रभाव से उनके घर एक सुंदर पुत्र का जन्म हुआ।
महत्व : प्रदोष व्रत द्वादशी, त्रयोदशी तिथि के दिन रखा जाता है। अगर किसी जातक को भोलेनाथ को प्रसन्न करना हो तो उसे प्रदोष व्रत अवश्य करना चाहिए। इस व्रत को करने से शिव प्रसन्न होते हैं तथा व्रती को सभी सांसारिक सुख तथा पुत्र प्राप्ति का वर देते हैं। अत: इस दिन पूरी श्रद्धा के साथ शिव जी की उपासना करें तो सभी कष्ट और परेशानियां दूर होकर शनि प्रकोप, साढ़ेसाती/ ढैया का प्रभाव कम हो जाता है।
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प्रदोष का व्रत करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं।
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प्रदोष का व्रत करने से शनि संबंधी सभी दोष दूर हो जाते हैं।
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इस व्रत को रखने से चंद्र दोष भी दूर होता है।
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विधि विधान से व्रत रखने से सभी पाप और कष्ट दूर होते हैं।
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विधि विधान से व्रत रखने से मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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प्रदोष व्रत रखने से दो गायों के दान जितना पुण्य मिलता है।
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इस व्रत में व्रती को निर्जल रहकर व्रत रखना होता है।
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प्रातः काल स्नान करके भगवान शिव की बेलपत्र, गंगाजल अक्षत धूप दीप सहित पूजा करें।
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संध्याकाल में पुन: स्नान करके इसी प्रकार से शिव जी की पूजा करें।