सोमवार, 8 सितम्बर 2025
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Written By WD Feature Desk
Last Updated : शनिवार, 6 सितम्बर 2025 (15:39 IST)

Shradh 2025: क्या लड़कियां कर सकती हैं पितरों का तर्पण? जानिए शास्त्रों में क्या लिखा है

क्या लड़कियां पितृ तर्पण कर सकती हैं
Can females perform shradh : पितृ पक्ष के दौरान अपने पूर्वजों का तर्पण और पिंडदान करना एक पवित्र और महत्वपूर्ण कर्म माना जाता है। हिंदू धर्म में यह कार्य पारंपरिक रूप से पुरुष सदस्यों द्वारा किया जाता रहा है। लेकिन, आधुनिक समय में यह सवाल अक्सर उठता है कि क्या महिलाएं भी अपने पितरों का तर्पण कर सकती हैं? इस विषय पर धार्मिक ग्रंथों और मान्यताओं में क्या कहा गया है, आइए जानते हैं।

जब माता सीता ने किया राजा दशरथ का पिंडदान
धार्मिक ग्रंथ गरुड़ पुराण और वाल्मीकि रामायण इस बात की पुष्टि करते हैं कि महिलाएं भी श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान जैसे धार्मिक अनुष्ठान कर सकती हैं। यह मान्यता है कि पितरों की आत्मा की शांति के लिए किया गया कोई भी कर्म शुद्ध मन और भक्ति से किया जाना चाहिए, और यह सिर्फ पुरुष ही नहीं, महिलाएं भी कर सकती हैं।

माता सीता का उदाहरण: रामायण में एक बहुत ही प्रसिद्ध प्रसंग है, जहां माता सीता ने स्वयं राजा दशरथ का पिंडदान किया था। जब भगवान राम और लक्ष्मण, अपने पिता का श्राद्ध करने के लिए सामग्री की तलाश में थे, तब माता सीता ने अपने ससुर राजा दशरथ की आत्मा के लिए फाल्गू नदी के किनारे बालू का पिंड बनाकर उनका पिंडदान किया था। यह घटना इस बात का सबसे बड़ा प्रमाण है कि महिलाओं को भी यह पवित्र कर्म करने का पूर्ण अधिकार है।

गरुड़ पुराण में बताई गईं परिस्थितियां
गरुड़ पुराण में कुछ खास परिस्थितियों का वर्णन किया गया है, जिनमें महिलाएँ यह कार्य कर सकती हैं।
पुरुष सदस्य की अनुपस्थिति: यदि किसी परिवार में श्राद्ध या तर्पण करने के लिए कोई पुरुष सदस्य मौजूद न हो, तो घर की महिला यह कार्य कर सकती है।
पुत्री का कर्तव्य: गरुड़ पुराण में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि यदि किसी व्यक्ति का कोई पुत्र न हो, तो उसकी पुत्री अपने पिता का श्राद्ध और तर्पण कर सकती है।
अकेली महिला: यदि कोई महिला अकेली रहती है और उसका कोई पुरुष रिश्तेदार नहीं है, तो वह स्वयं अपने पितरों का श्राद्ध कर सकती है।
इन सभी उदाहरणों से यह स्पष्ट होता है कि धर्म किसी भी व्यक्ति को उसके कर्तव्य निभाने से नहीं रोकता। पितरों के प्रति अपनी श्रद्धा और कर्तव्य निभाने का अधिकार हर किसी को है, चाहे वह पुरुष हो या महिला। यह एक व्यक्तिगत और आध्यात्मिक कार्य है जो हृदय की शुद्धता पर आधारित है।

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