भगवान बाहुबली के भाई भरत इस तरह बने थे चक्रवर्ती सम्राट
जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ के दो पुत्र हुए भरत और बाहुबली। ऋषभदेव के जंगल चले जाने के बाद राज्याधिकार के लिए बाहुबली और भरत में से किसी एक को राज्य मिलना था। किसने राज्य का भार संभाला आओ जानते हैं रोचक कथा।
राजा भरत को अपनी आयुधशाला में से एक दिव्य चक्र प्राप्त हुआ। चक्र रत्न मिलने के बाद उन्होंने अपना दिग्विजय अभियान शुरू किया। दिव्य चक्र आगे चलता था। उसके पीछे दंड चक्र, दंड के पीछे पदाति सेना, पदाति सेना के पीछे अश्व सेना, अश्व सेना के पीछे रथ सेना और हाथियों पर सवार सैनिक आदि चलते थे। जहां-जहां चक्र जाता था, वहां- वहां के राजा या अधिपति सम्राट भरत की अधीनता स्वीकार कर लेते थे।
इस तरह पूर्व से दक्षिण, दक्षिण से उत्तर और उत्तर से पश्चिम की ओर उन्होंने यात्रा की और अंत में जब उनके पुन: अयोध्या पहुंचने की मुनादी हुई तो राज्य में हर्ष और उत्सव का माहौल होने लगा। लेकिन अयोध्या के बाहर ही चक्र स्वत: ही रुक गया, क्योंकि राजा भरत ने अपने भाइयों के राज्य को नहीं जीता था।
बाहुबली को छोड़कर सभी भाइयों ने राजा भरत की अधीनता स्वीकार कर ली। ऐसे में भरत का बाहुबली से मल्ल युद्ध हुआ जिसमें बाहुबली जीत गए। लेकिन जीतने के बाद बाहुबली के मन में विरक्ति का भाव आ गया और उन्होंने सोचा कि मैंने राज्य के लिए अपने ही बड़े भाई को हराया। तब उन्होंने विनम्रतापूर्वक उन्होंने जीतने के बाद भी भारत को अपना राज्य दे दिया और वे तपस्या करने के लिए श्रवणबेलगोला के गोम्मटेश्वर स्थान पर चले गए। तपस्या के पश्चात उनको यहीं पर केवल ज्ञान प्राप्त हुआ।
चक्रवर्ती राजा भरत ने बाहुबली के सम्मान में पोदनपुर में 525 धनुष की बाहुबली की मूर्ति प्रतिष्ठित की। इस तरह भरत चक्रवर्ती सम्राट बन गए और कालांतर में उनके नाम पर ही इस नाभि खंड और उससे पूर्व हिमखंड का नाम भारत हो गया।