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Last Updated : मंगलवार, 12 मई 2020 (18:56 IST)

लॉकडाउन में भय और रोग दूर करने के 5 सरल उपाय

Health Tips in Lockdown | लॉकडाउन में भय और रोग दूर करने के 5 सरल उपाय
गीता में कहा गया है। न जन्म तुम्हारे हाथ में है और न मृत्यु। न अतीत तुम्हारे हाथ में है और न भविष्य। तुम्हारे हाथ में है तो बस ये जीवन और ये वर्तमान। इसलिए जन्म और अतीत कर शोक मत करो और मृत्यु एवं भविष्य की चिंता मत करो। बस कर्म करो। निष्काम कर्म करो। तुम्हारा कर्म ही तुम्हारा भविष्य है।
 
 
कर्म के बारे में हिन्दू शास्त्रों में बहुत विस्तार से बताया गया कि किस तरह कर्म ही हमारे भविष्य का निर्माण करता है। संक्षिप्त और सरल रूम में एक वह है जो तुम अपने शरीर से करते हो, दूसरा तुम्हरी भावनन, तीसरा तुम्हारे विचार और चौथा वह जो तुम्हारा अंतरमन करता है। सभी के सम्मलित रूप से ही भविष्य का निर्माण होता है। इसीलिए योगसूत्र सिद्ध कर्म और गीता में में निष्काम कर्म की बात कही गई है।
 
 
1. विचारों की ताकत को समझो : मनुष्य सोच से ही भयभीत होता है और सोच से ही रोगग्रस्त। आज हम जो हैं वह हमारे पिछले विचारों का परिणाम है और कल हम जो होंगे वह आज के विचारों का परिणाम होगा।
 
 
वैज्ञानिक भी मानने लगे हैं कि रोग की शुरुआत हमारे मन से होती है। मन में विचारों का झांझावत चलता रहता है। इन असंख्‍य विचारों में से ज्यादातर विचार निगेटिव ही होते हैं, क्योंकि निगेटिव विचारों को लाना नहीं पड़ता वह स्वत: ही आ जाते हैं। सकारात्मक विचार के लिए प्रयास करना होता है।
 
वैज्ञानिक कहते हैं मानव मस्तिष्क में 24 घंटे में लगभग 60 हजार विचार आते हैं। उनमें से ज्यादातर नकारात्मक होते हैं। नकारात्मक विचारों का पलड़ा भारी है तो फिर भविष्य भी वैसा ही होगा और यदि ‍मिश्रित विचार हैं तो मिश्रित भविष्य होगा। जो भी विचार निरंतर आ रहा है वह धारणा का रूप धर लेता है। ब्रह्मांड में इस रूप की तस्वीर पहुँच जाती है फिर जब वह पुन: आपके पास लौटती है तो उस तस्वीर अनुसार आपके आसपास वैसे घटनाक्रम निर्मित हो जाते हैं।
 
विचार ही वस्तु बन जाते हैं। इसका सीधा-सा मतलब यह है कि हम जैसा सोचते हैं वैसे ही भविष्य का निर्माण करते हैं। यही बात 'दि सीक्रेट' में भी कही गई है। इसी संदर्भ में जानें स्वाध्याय, धारणा और ईश्वर प्राणिधान के महत्व को।
 
 
2. कल्पना की ताकत को समझो : आइंस्टीन से पूर्व भगवान शिव ने ही कहा था कि 'कल्पना' ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण है। हम जैसी कल्पना और विचार करते हैं, वैसे ही हो जाते हैं। सपना भी कल्पना है। अधिकतर लोग खुद के बारे में या दूसरों के बारे में बुरी कल्पनाएं या खयाल करते रहते हैं। दुनिया में आज जो दहशत, बीमारी और अपराध का माहौल है उसमें सामूहिक रूप से की गई कल्पना का ज्यादा योगदान है। अच्छे भविष्य की कल्पना करो।
स्वाध्याय का अभ्यास आपको मनचाहा भविष्य देता है। स्वाध्याय का अर्थ है स्वयं का अध्ययन करना। अच्छी कल्पनाओं और विचारों का अध्ययन करना और इस अध्ययन का अभ्यास करना। आप स्वयं के ज्ञान, कर्म और व्यवहार की समीक्षा करते हुए पढ़ें, वह सब कुछ जिससे आपके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता हो साथ ही आपको इससे खुशी ‍भी मिलती हो। तो बेहतर किताबों को अपना मित्र बनाएं।
 
जीवन को नई दिशा देने की शुरुआत आप छोटे-छोटे संकल्प से कर सकते हैं। संकल्प लें कि आज से मैं बदल दूंगा वह सब कुछ जिसे बदलने के लिए मैं न जाने कब से सोच रहा हूं। अच्छा सोचना और महसूस करना स्वाध्याय की पहली शर्त है।
 
 
3. प्राणायाम को समझो : प्राणायाम से ही आपकी कल्पना और विचार संचालित होते हैं। प्रारंभ में 10 मिनट का अनुलोम विलोम करके आप अपनी भावना, विचार और कल्पना की दिशा को बदल सकते हो। प्राणायमा धारणा शुद्ध और पुष्ट होती है। ह भी कि श्वास-प्रश्वास के मंद व शांत होने पर, इंद्रियों के विषयों से हटने पर, मन अपने आप स्थिर होकर शरीर के अंतर्गत किसी स्थान विशेष में स्थिर हो जाता है तो ऊर्जा का बहाव भी एक ही दिशा में होता है। ऐसे चित्त की शक्ति बढ़ जाती है, फिर वह जो भी सोचता है वह घटित होने लगता है। जो लोग दृढ़ निश्चयी होते हैं, अनजाने में ही उनकी भी धारणा पुष्ट होने लगती है।
 
 
4. उत्तम भोजन को उत्तम भावना से ग्रहण करो : कहते हैं कि जैसा खाओगे अन्न वैसे बनेगा मन। इसलिए ऐसा भोजन का चयन करो जो आपके शरीर और मन को सेहतमंद बनाए। भोजन और पान (पेय) से उत्पन्न उल्लास, रस और आनंद से पूर्णता की अवस्था की भावना भरें, उससे महान आनंद होगा। आयुर्वेद में लिखा है कि अन्न को आनंदित और प्रेमपूर्ण होकर ग्रहण करने से यदि वह जहर भी है तो अमृत सा लाभ देगा। अत: उत्तम भोजन को उत्तम भावनाओं के साथ ग्रहण करो। भोजन करने के समय किसी भी प्रकार से कहीं ओर ध्यान न भटकाएं। भोजन का पूर्ण सम्मान करके ही उसे ग्रहण करें।
 
 
5. ध्यान का महत्व : भय, रोग और शोक मानसिक दुख देते हैं। दोनों की ही उत्पत्ति मन, मस्तिष्क और शरीर के किसी हिस्से में होती है। ध्यान से सर्वप्रथम सभी तरह की अनावश्यक गतिविधि रूकने लगती है। श्वास-प्रश्वास में सुधार होने से किसी भी तरह के दुख के मामले में हम आवश्यकता से अधिक चिंता नहीं करते। ध्यान मन और ‍मस्तिष्क को भरपूर ऊर्जा और सकारात्मकता से भर देता है। शरीर भी स्थित होकर रोग से लड़ने की क्षमता प्राप्त करने लगता है।
 
अंतत: यदि आप ‍जीवन में हमेशा खुश और स्वस्थ रहना चाहते हैं तो शरीर और मन की बुरी आदतों को समझते हुए उन्हें योग द्वारा दूर करने का प्रयास करें। आपका छोटा-सा प्रयास ही आपके जीवन में बदलाव ले आएगा। विचारों पर गंभीरता पूर्वक विचार करें कि वे हमारे जीवन को कितना नुकसान पहुंचाते हैं और उनसे हम कितना फायदा उठा सकते हैं।