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शनि देव की नज़र से भगवान शंकर और गणेश भी नहीं बच सके, पढ़ें कथा

शनि देव की नज़र से भगवान शंकर और गणेश भी नहीं बच सके, पढ़ें कथा - religious story of shani, shiv and sri ganesh
shani and lord shankar story : शनिदेव से संबंधित एक पौराणिक कथा के अनुसार एक समय शनि देव भगवान शंकर के धाम हिमालय पहुंचे। उन्होंने अपने गुरुदेव भगवान शिव को प्रणाम कर उनसे आग्रह किया, 'हे प्रभु! मैं कल आपकी राशि में आने वाला हूं अर्थात मेरी वक्र दृष्टि आप पर पड़ने वाली है।
 
शनिदेव की बात सुनकर भगवान शंकर हतप्रभ रह गए और बोले, 'हे शनिदेव! आप कितने समय तक अपनी वक्र दृष्टि मुझ पर रखेंगे।'
 
शनिदेव बोले, 'हे नाथ! कल सवा प्रहर के लिए आप पर मेरी वक्र दृष्टि रहेगी। शनिदेव की बात सुनकर भगवन शंकर चिंतित हो गए और शनि की वक्र दृष्टि से बचने के लिए उपाय सोचने लगे।'
 
शनि की दृष्टि से बचने हेतु अगले दिन भगवन शंकर मृत्युलोक आए। भगवान शंकर ने शनिदेव और उनकी वक्र दृष्टि से बचने के लिए एक हाथी का रूप धारण कर लिया। भगवान शंकर को हाथी के रूप में सवा प्रहर तक का समय व्यतीत करना पड़ा तथा शाम होने पर भगवान शंकर ने सोचा, अब दिन बीत चुका है और शनिदेव की दृष्टि का भी उन पर कोई असर नहीं होगा। इसके उपरांत भगवान शंकर पुनः कैलाश पर्वत लौट आए।
 
भगवान शंकर प्रसन्न मुद्रा में जैसे ही कैलाश पर्वत पर पहुंचे उन्होंने शनिदेव को उनका इंतजार करते पाया। भगवान शंकर को देख कर शनिदेव ने हाथ जोड़कर प्रणाम किया। भगवान शंकर मुस्कुरा कर शनिदेव से बोले, 'आपकी दृष्टि का मुझ पर कोई असर नहीं हुआ।'
 
यह सुनकर शनि देव मुस्कुराए और बोले, 'मेरी दृष्टि से न तो देव बच सकते हैं और न ही दानव यहां तक कि आप भी मेरी दृष्टि से बच नहीं पाए।' यह सुनकर भगवान शंकर आश्चर्यचकित रह गए। 
 
शनि देव ने कहा, मेरी ही दृष्टि के कारण आपको सवा प्रहर के लिए देव योनी को छोड़कर पशु योनी में जाना पड़ा, इस प्रकार मेरी वक्र दृष्टि आप पर पड़ गई और आप इसके पात्र बन गए। शनि देव की न्यायप्रियता देखकर भगवान शंकर प्रसन्न हो गए और शनि देव को हृदय से लगा लिया।
 
shani and lord ganesh story : एक कथा के अनुसार भगवान श्री गणेश भी शनि देव की नज़र से नहीं बच सके थे और उन्हें भी शनि की वक्र दृष्‍टि का सामना करना पड़ा था। ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार माता पार्वती ने पुत्र प्राप्ति के लिए ‘पुण्यक’ नामक व्रत था जिसके फलस्वरूप भगवान विष्णु ने उनके गर्भ से बालक रूप में जन्म लिया। जन्म के पश्चात सभी देवी और देवता शिव-पार्वती को बधाई देने और बालक गणेश को आशीर्वाद देने के लिए बारी-बारी से उपस्थित हुए। परंतु, शनिदेव ने बालक गणेश को न तो देखा और न ही उनके पास गए। माता पार्वती को यह बात अपने पुत्र का अपमान लगी और वो रुष्ट हो गईं। 
 
दरअसल, पार्वती जी को शनि देव की पत्नी द्वारा दिए गए श्राप के बारे में पता नहीं था कि उनकी दृष्टी पड़ते ही हानि हो सकती है। उन्हें लगा कि शनि उनके पुत्र का अपमान कर रहे हैं। उन्होंने कहा- सूर्यपुत्र, अपनी गर्दन क्यों झुका रखी है! मेरी व मेरे पुत्र की ओर देखो, तुम मेरे पुत्र को देख क्यों नहीं रहे हो? 
 
इस पर शनिदेव ने कहा कि- 'माते! मेरा नहीं देखना ही अच्छा है, क्योंकि सभी प्राणी अपनी-अपनी करनी का फल भोगते हैं। मैं भी अपनी करनी का फल भोग रहा हूं।' ऐसा कहकर शनि देव अपने श्राप के बारे में बताते हैं।
 
तब माता पार्वती ने कहा कि सबकुछ ठीक होगा, तुम्हारे देखने पर कुछ अमंगल नहीं होगा क्योंकि यह मेरा पुत्र है और इसे सभी देवताओं ने आशीर्वाद दिया है। शनि देव ने माता पार्वती का रुष्ट भाव समझकर उनकी आज्ञा मान ली और बालक गणेश को देख लिया। परंतु शनि देव की दृष्टि पड़ते ही नवजात बालक का सिर धड़ से अलग होकर भस्म होकर ब्रह्मांड में विलीन हो गया। 
 
माता पार्वती अपने पुत्र की यह दशा देख बेहोश हो गईं। तब माता पार्वती को इस आघात से बाहर निकालने और उनके क्रोध से बचने के लिए तत्काल ही भगवान विष्णु अपने वाहन गरुड़ पर सवार हो उत्तर दिशा में स्थित पुष्पभद्रा नदी के तट पर गए। वहां उन्होंने एक हथनी को देखा जो अपने बालक की ओर पीठ किए बैठी थी।

इस संबंध यह भी कहा जाता है कि वहां उन्होंने देखा कि एक हथिनी अपने नवजात शिशु को लेकर उत्तर दिशा में सिर करके सो रही थी, विष्णु भगवान ने शीघ्र ही सुदर्शन चक्र से नवजात गजशिशु का मस्तक काट लिया और वे उसे लेकर शिवलोक पहुंचे तथा माता पार्वती के बालक के धड़ पर लगाकर उसके प्राण वापस किए। बाद में जब माता पार्वती को होश आया तो उन्होंने शनि देव को शाप दे दिया परंतु सभी देवताओं ने शनि का पक्ष लेकर कहा कि इसमें उनकी गलती नहीं है। 
 
आपको तो इन्होंने सारी बात बता ही दी थी कि वे आपके बालक को क्यों नहीं देख रहे हैं। किंतु आपकी जिद पूरी करने हेतु ही शनि देव ने आपके पुत्र को देखा। इसमें इनका कोई कसूर नहीं है। तब माता पार्वती ने शनि देव को क्षमा कर दिया और शाप को एक पैर की विकलता के रूप में परिवर्तित कर दिया। इस तरह भगवान शिव और गणेश दोनों ही शनि देव की नज़र से बच नहीं पाए थे। 

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