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Devi Baglamukhhi Katha : राजा विक्रमादित्य को दिए थे दर्शन मां बगलामुखी देवी ने, पढ़ें कहां और कैसे

Devi Baglamukhhi Katha : राजा विक्रमादित्य को दिए थे दर्शन मां बगलामुखी देवी ने, पढ़ें कहां और कैसे - Maa Baglamukhhi Katha
Raja Vikramaditya Story
 
डोंगरगढ़ (छत्‍तीसगढ़) जिला मुख्यालय से 38 किमी दूर पहाड़ों में विराजित है मां बम्लेश्वरी का मंदिर। यहां मां बम्लेश्वरी के दो मंदिर है। पहला मंदिर ऊंची पहाड़ी पर और दूसरा मंदिर के प्रवेश द्वार से पश्चिम दिशा में स्थित है। पहाड़ वाली मां बम्लेश्र्वरी देवी के गर्भगृह के चारों ओर गुफाएं हैं।
 
अंचल के लोग नीचे मंदिर में स्थापित माता को छोटी बम्लाई और पहाड़ावाली मां को बड़ी बम्लाई कहते है। लगभग 1 हजार से सीढ़ियां चढ़कर पहाड़ों वाली मां के दर्शन होते है। यहां तक पहुंचने के लिए रोप-वे भी बना हुआ है। मां बम्लेश्र्वरी मंदिर की स्थापना की एक रोचक कथा है।
 
आज से ढाई हजार वर्ष पूर्व कामाख्या नगरी जिसे आज डोंगरगढ़ के नाम से जाना जाता है, वहां पहले राजा वीरसेन का शासन था। राजा वीरसेन की कोई संतान नहीं थी। जिसके कारण उन्होंने शिवजी और मां दुर्गा की उपासना की। उपासना के एक वर्ष बाद रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम मदनसेन रखा गया।
 
मां दुर्गा और भगवान शिव का उपासक होने के कारण वीरसेन ने यहां कामाख्या नगरी में मां बम्लेश्वरी का मंदिर बनवाया। इसके बाद राजा मदनसेन के पुत्र कामसेन ने यहां शासन किया। कामसेन के दरबार में नृत्यकला में प्रवीण कामकंदला व अलौकिक संगीतज्ञ और मधुर गायक माधवनल थे। दोनों के बीच अथाह प्रेम था।
 
परिस्थतिवश माधवनल को कामाख्या नगरी का त्याग करना पड़ा। माधवनल कामख्या नगरी से सीधे उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के पास पहुंचा और उन्हें अपनी करुण कथा सुनाई। कथा सुनकर राजा विक्रमादित्य ने कामाख्या नगरी पर आक्रमण कर दिया। कामसेन और विक्रमादित्य के बीच भयंकर युद्ध हुआ।
युद्ध में राजा विक्रमादित्य विजयी हुए। युद्ध में कामख्या नगरी पूरी तरह तबाह हो गई। नगर में सिर्फ डोंगर बचा और माता का मंदिर। युद्ध के बाद विक्रमादित्य ने माधवनल और कामकंदला की प्रेम की परीक्षा लेने के लिए यह अफवाह फैला दी कि युद्ध में माधवनल वीरगति को प्राप्त हो गया है।
 
जैसे ही यह समाचार कामकंदला को मिला उसने एक तालाब में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए। यह तालाब आज भी मंदिर के पास पहाड़ी के नीचे स्थित है। कामकंदला की मृत्यु का समाचार पाकर माधवनल ने भी अपना जीवन समाप्त कर लिया।
 
राजा विक्रमादित्य को जब यह समाचार मिला तो उन्हें गहरा पश्चाताप हुआ। उन्होंने मां बगलामुखी की आराधना शुरू कर दी। लेकिन माता ने दर्शन नहीं दिए। इसके बाद राजा विक्रमादित्य भी अपने प्राण त्यागने के लिए तत्पर हो गए। इसी समय मां बगलामुखी ने राजा को दर्शन दिए।
 
वरदान मांगने पर राजा ने कामकंदला और माधवनल का जीवन और मां बगलामुखी के कामाख्या में ही निवास करने का वर मांगा। तभी मां बगलामुखी साक्षात् रूप में यहां है। ऐसा कहा जाता है बगलामुखी का ही परिवर्तित नाम बम्लेश्वरी है।

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