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Ganesh Chaturthi Vrat Katha : फाल्गुन कृष्ण श्री गणेश संकष्टी चतुर्थी व्रत की कथा

Ganesh Chaturthi Vrat Katha  : फाल्गुन कृष्ण श्री गणेश संकष्टी चतुर्थी व्रत की कथा - Falgun Maas Sankashti Chaturthi Shubh Katha
फाल्गुन कृष्ण की चतुर्थी तिथि को बहुत शुभ माना जाता है। फाल्गुन मास हिंदू वर्ष का अंतिम महीना होता है। भगवान श्री गणेश इस दिन पूजन, व्रत, पारण, मंत्र और कथा से विशेष प्रसन्न होते हैं। 9 फरवरी 2023 को आने वाली चतुर्थी को सर्वार्थ सिद्धि के अलावा अमृत सिद्धि नामक शुभ योग भी बन रहा है। आइ ए जानते हैं श्री गणेश संकष्टी चतुर्थी की शुभ कथा.... 
 
एक बार की बात है। एक आदर्श राजा का राज्य था। वह राजा अत्यंत धर्मात्मा थे। उनके राज्य में एक अत्यंत सज्जन ब्राह्मण थे उनका नाम था-विष्णु शर्मा।
 
विष्णु शर्मा के 7 पुत्र थे। वे सातों अलग-अलग रहते थे। विष्णु शर्मा की जब वृद्धावस्था आ गई तो उसने सब बहुओं से कहा-तुम सब गणेश चतुर्थी का व्रत किया करो। 
 
विष्णु शर्मा स्वयं भी इस व्रत को करते थे। आयु हो जाने पर यह दायित्व वह बहुओं को सौंपना चाहते थे।
 
जब उन्होंने बहुओं से इस व्रत के लिए कहा तो बहुओं ने आज्ञा न मानकर उनका अपमान कर दिया। अंत में धर्मनिष्ठ छोटी बहू ने ससुर की बात मान ली। उसने पूजा के सामान की व्यवस्था करके ससुर के साथ व्रत किया और भोजन नहीं किया। ससुर को भोजन करा दिया। 
 
जब आधी रात बीती तो विष्णु शर्मा को उल्टी और दस्त लग गए। छोटी बहू ने मल-मूत्र से खराब हुए कपड़ों को साफ करके ससुर के शरीर को धोया और पोंछा। पूरी रात बिना कुछ खाए-पिए जागती रही।
व्रत के दौरान रात्रि में चंद्रोदय पर स्नान कर फिर से श्री गणेश की पूजा भी की। विधिवत पारण किया। विपरीत स्थिति में भी अपना धैर्य नहीं खोया। पूजा और ससुर की सेवा दोनों श्रद्धा भाव से करती रही।  
 
गणेश जी ने उन दोनों पर अपनी कृपा की। अगले दिन से ही ससुर जी का स्वास्थ्य ठीक होने लगा और छोटी बहू का घर धन-धान्य से परिपूर्ण हो गया। फिर तो अन्य बहुओं को भी इस प्रसंग से प्रेरणा मिली और उन्होंने अपने ससुर से क्षमा मांगते हुए फाल्गुन कृष्ण संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत किया। और साल भर आने वाली हर चतुर्थी का व्रत करने का शुभ संकल्प लिया। श्री गणेश की कृपा से सभी का स्वभाव सुधर गया।    
 
बारह मास चतुर्थी व्रत कर दान-दक्षिणा देने से प्रथम पुज्य श्री गणेश देव महाराज समस्त कामनाओं की पूर्ति करते हैं। जन्म-जरा-मृत्यु के पाश नष्ट कर अंत में अपने दिव्य लोक में स्थान देते हैं। जय श्री गजानन महाराज की जय, सबके दिन बहुरे... 
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