Famous Temples Tirupati Balaji Mandri: आन्ध्र प्रदेश के चित्तूर जिले के तिरुपति के पास तिरूमाला पहाड़ी पर स्थित भगवान वेंकटेश्वर का प्रसिद्ध मंदिर हैं जहां भगवान विष्णु की पूजा होती है। इनकी ख्याति तिरुपति बालाजी के रूप में हैं। भगवान श्री वेंकटेश्वर अपनी पत्नी पद्मावती (लक्ष्मी माता) के साथ तिरुमला में निवास करते हैं। यदि आप यहां की यात्रा का प्लान बना रहे हैं तो जानिए कि कहां दर्शन करना, कहां रुकना और कैसे जाना है।
1. मंदिर परिचय:-
आन्ध्र प्रदेश के चित्तूर जिले के तिरुपति के पास तिरूमाला पहाड़ी पर स्थित भगवान वेंकटेश्वर मंदिर का मंदिर विष्णु के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है। वैष्णव परम्पराओं के अनुसार यह मन्दिर 108 दिव्य देसमों का एक अंग है। विष्णु ने कुछ समय के लिए तिरुमला स्थित स्वामी पुष्करणी नामक तालाब के किनारे निवास किया था। आज भी यह कुंड विद्यमान है जिसके जल से ही मंदिर के कार्य सम्पन्न होते हैं। इनकी ख्याति तिरुपति बालाजी मंदिर के रूप में हैं।
प्रभु वेंकटेश्वर या बालाजी को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि प्रभु विष्णु ने कुछ समय के लिए स्वामी पुष्करणी नामक तालाब के किनारे निवास किया था। यह तालाब तिरुमाला के पास स्थित है। तिरुमाला- तिरुपति के चारों ओर स्थित पहाड़ियाँ, शेषनाग के सात फनों के आधार पर बनीं 'सप्तगिरि' कहलाती हैं। श्री वेंकटेश्वरैया का यह मंदिर सप्तगिरि की सातवीं पहाड़ी पर स्थित है, जो वेंकटाद्री नाम से प्रसिद्ध है।
वहीं एक दूसरी अनुश्रुति के अनुसार, 11वीं शताब्दी में संत रामानुज ने तिरुपति की इस सातवीं पहाड़ी पर चढ़ाई की थी। प्रभु श्रीनिवास (वेंकटेश्वर का दूसरा नाम) उनके समक्ष प्रकट हुए और उन्हें आशीर्वाद दिया। ऐसा माना जाता है कि प्रभु का आशीर्वाद प्राप्त करने के पश्चात वे 120 वर्ष की आयु तक जीवित रहे और जगह-जगह घूमकर वेंकटेश्वर भगवान की ख्याति फैलाई।
3. मंदिर का इतिहास:-
माना जाता है कि इस मंदिर का इतिहास 9वीं शताब्दी से प्रारंभ होता है, जब काँचीपुरम के शासक वंश पल्लवों ने इस स्थान पर अपना आधिपत्य स्थापित किया था, परंतु 15 सदी के विजयनगर वंश के शासन के पश्चात भी इस मंदिर की ख्याति सीमित रही। 15 सदी के पश्चात इस मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक फैलनी शुरू हो गई। 1843 से 1933 ई. तक अंग्रेजों के शासन के अंतर्गत इस मंदिर का प्रबंधन हातीरामजी मठ के महंत ने संभाला। 1933 में इस मंदिर का प्रबंधन मद्रास सरकार ने अपने हाथ में ले लिया और एक स्वतंत्र प्रबंधन समिति 'तिरुमाला-तिरुपति' के हाथ में इस मंदिर का प्रबंधन सौंप दिया। आंध्रप्रदेश के राज्य बनने के पश्चात इस समिति का पुनर्गठन हुआ और एक प्रशासनिक अधिकारी को आंध्रप्रदेश सरकार के प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त किया गया।
4. मुख्य मंदिर:- श्री वेंकटेश्वर का यह पवित्र व प्राचीन मंदिर पर्वत की वेंकटाद्रि नामक सातवीं चोटी पर स्थित है, जो श्री स्वामी पुष्करणी नामक तालाब के किनारे स्थित है। इसी कारण यहाँ पर बालाजी को भगवान वेंकटेश्वर के नाम से जाना जाता है। यह भारत के उन चुनिंदा मंदिरों में से एक है, जिसके पट सभी धर्मानुयायियों के लिए खुले हुए हैं। पुराण व अल्वर के लेख जैसे प्राचीन साहित्य स्रोतों के अनुसार कलियुग में भगवान वेंकटेश्वर का आशीर्वाद प्राप्त करने के पश्चात ही मुक्ति संभव है। पचास हजार से भी अधिक श्रद्धालु इस मंदिर में प्रतिदिन दर्शन के लिए आते हैं। इन तीर्थयात्रियों की देखरेख पूर्णतः टीटीडी के संरक्षण में है। वैकुंठ एकादशी के अवसर पर लोग यहाँ पर प्रभु के दर्शन के लिए आते हैं, जहाँ पर आने के पश्चात उनके सभी पाप धुल जाते हैं। मान्यता है कि यहाँ आने के पश्चात व्यक्ति को जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्ति मिल जाती है।
5. मंदिर दर्शन का क्रम:-
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मंदिर पहुंचकर दर्शन से पहले प्रभु को अपने केश समर्पित करते हैं जिससे अभिप्राय है कि वे केशों के साथ अपना दंभ व घमंड ईश्वर को समर्पित करते हैं।
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मंदिर के पास स्थित 'कल्याण कट्टा' नामक स्थान पर सामूहिक रूप से मुहडल संपन्न किया जाता है।
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केशदान के पश्चात यहीं पर स्नान करते हैं और फिर पुष्करिणी में स्नान के पश्चात मंदिर में दर्शन करने के लिए जाते हैं।
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सर्वदर्शनम से अभिप्राय है 'सभी के लिए दर्शन'। सर्वदर्शनम के लिए प्रवेश द्वार वैकुंठम कॉम्प्लेक्स है।
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वर्तमान में टिकट लेने के लिए यहां कम्प्यूटरीकृत व्यवस्था है।
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यहां पर नि:शुल्क व सशुल्क दर्शन की भी व्यवस्था है, साथ ही विकलांग लोगों के लिए 'महाद्वारम' नामक मुख्य द्वार से प्रवेश की व्यवस्था है, जहां पर उनकी सहायता के लिए सहायक भी होते हैं।
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यहां पैदल यात्रियों हेतु पहाड़ी पर चढ़ने के लिए तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम नामक एक विशेष मार्ग बनाया गया है। अलिपिरी से तिरुमाला के लिए भी एक मार्ग है।
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यहां पर प्रसाद के रूप में अन्न प्रसाद की व्यवस्था है जिसके अंतर्गत चरणामृत, मीठी पोंगल, दही-चावल जैसे प्रसाद तीर्थयात्रियों को दर्शन के पश्चात दिया जाता है।
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'पनयारम' यानी लड्डू मंदिर के बाहर बेचे जाते हैं, जो यहां पर प्रभु के प्रसाद रूप में चढ़ाने के लिए खरीदे जाते हैं।
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इन्हें खरीदने के लिए पंक्तियों में लगकर टोकन लेना पड़ता है। श्रद्धालु दर्शन के उपरांत लड्डू मंदिर परिसर के बाहर से खरीद सकते हैं।
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यहां पर एक 'पुरोहित संघम' है, जहां पर विभिन्न संस्कारों और रिवाजों को संपन्न किया जाता है।
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इसमें से प्रमुख संस्कार विवाह संस्कार, नामकरण संस्कार, उपनयन संस्कार आदि संपन्न किए जाते हैं।
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यहां पर सभी संस्कार उत्तर व दक्षिण भारत के सभी रिवाजों के अनुसार संपन्न किए जाते हैं।
कहां ठहरें:- तिरुमाला में मंदिर के आसपास रहने की काफी अच्छी व्यवस्था है। विभिन्न श्रेणियों के होटल व धर्मशाला यात्रियों की सुविधा को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं। इनकी पहले से बुकिंग टीटीडी के केंद्रीय कार्यालय से कराई जा सकती है।
हवाई मार्ग:- तिरुपति पर एक छोटा-सा हवाई अड्डा भी है।
सड़क व रेल मार्ग:- तिरुपति, चेन्नई से 130 किलोमीटर दूर स्थित है, जो एक मुख्य रेलवे स्टेशन भी है। एपीएसआरटीसी की बस सेवा भी उपलब्ध है, जो परिसर तक पहुंचाने में केवल 20 मिनट लेती है। यहां से हैदराबाद, बेंगलुरु और चेन्नई के लिए सड़क व रेल व्यवस्था भी है।