अमेरिका से लौटकर महाराष्ट्र के सैकड़ों सरकारी स्कूलों को बनाया डिजिटल
नई दिल्ली। मुंबई से इंजीनियरिंग और न्यूयॉर्क से एमबीए करके वहीं बस गए एक युवक ने वापस लौटकर महाराष्ट्र के धुले जिले में जनभागीदारी से करीब 1,100 स्कूलों को डिजिटल बनाने का ऐसा कारनामा अंजाम दिया है कि राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने उसके काम का अध्ययन कराने का फैसला किया है ताकि देश के दूसरे ग्रामीण इलाकों में भी इस तरह की पहल को आगे बढ़ाने में मदद मिल सके।
धुले से ताल्लुक रखने वाले 36 वर्षीय हर्षल विभांडिक ने पिछले कुछ वर्षों में अपने यहां जिला परिषद के तहत आने वाले 1103 स्कूलों को डिजिटल बनाया है और इस काम को पूरा करने के लिए वह अमेरिका छोड़कर अपने देश वापस चले आए।
उनकी इस कामयाबी की कहानी सुनने के बाद मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने शनिवार को उन्हें दिल्ली बुलाया और उनसे काम के बारे में जानकारी हासिल की। उनके दिल्ली प्रवास के दौरान ही एनसीपीसीआर ने भी उनसे संपर्क किया और उनके प्रयास के प्रभाव के बारे में जानने के लिए अध्ययन कराने का निर्णय लिया।
एनसीपीसीआर धुले जिले के इन 1,103 में से 55 स्कूलों का 'प्रभाव विश्लेषण' करेगा और फिर इस आधार पर केंद्र एवं राज्यों को अपनी अनुशंसा करेगा। एनसीपीसीआर के सदस्य (शिक्षा एवं आरटीई) प्रियंक कानूनगो ने कहा कि हम यह विश्लेषण करना चाहते हैं कि जनभागीदारी और तुलनात्मक रूप से काफी कम पैसे से कैसे ग्रामीण इलाकों के स्कूलों को डिजिटल बनाया जा सकता है। हम चाहते हैं कि इस तरह के प्रयास को देश के दूसरे इलाकों में भी ले जाया जाए।
धुले के एक सामान्य परिवार में पैदा हुए हर्षल ने मुंबई से इंजीनियरिंग और न्यूयॉर्क से एमबीए किया। इसके बाद वे वहीं नौकरी करने लगे। हर्षल का कहना है कि अमेरिका में रहने के दौरान ही मेरे दिमाग में खयाल आया कि जनभागीदारी के जरिए धुले के ग्रामीण स्कूलों में डिजिटलीकरण की शुरुआत की जा सकती है। शुरू के कुछ वर्षों में वे छुट्टियां लेकर आए और सितंबर, 2015 में अमेरिका छोड़ हमेशा के लिए धुले लौट आए।
दरअसल, हर्षल गांव-गांव जाकर 'प्रेरणा सभा' आयोजित करते हैं और वहां लोगों से चंदा लेते हैं और इस राशि का इस्तेमाल आदिवासी बाहुल इलाकों के सरकारी स्कूलों में कम्प्यूटर और प्रोजेक्टर जैसी चीजें लगाने में करते हैं।
उन्होंने कहा कि हमारी 'प्रेरणा सभा' में धीरे-धीरे लोगों का रुझान बढ़ता गया और आज ग्रामीण इलाकों के लोग भी इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। हर्षल ने कहा कि प्रोजेक्टर के जरिए पढ़ाई का असर हमने यह देखा कि सरकारी स्कूलों में वे बच्चे भी आने लगे, जो इलाकों के निजी स्कूलों में पढ़ते थे। (भाषा)