Kalyug me ram ko dekha hai: देवी देवता या भगवान के दर्शन हर किसी को नहीं होते हैं, लेकिन प्रयास करें तो हो जाते हैं। कहते हैं कि सत्ययुग मैं भगवान की प्राप्ति ध्यान से होती थी। त्रेतायुग युग में यज्ञ से, द्वापर मैं पूजा अर्चना और साधना से और कलयुग में नाम समिरण और जप से भगवान के दर्शन होते हैं। हालांकि कोई भी युग हो भक्त से भगवान प्रसन्न होते हैं। कलयुग में भगवान श्रीराम को किन लोगों ने देखा था? क्या आप जानते हैं?
माधवाचार्यजी- माधवाचार्यजी का जन्म 1238 ई. में हुआ था। माधवाचार्यजी प्रभु श्रीराम और हनुमानजी के परम भक्त थे। यही कारण था कि एक दिन उनको हनुमानजी के साक्षात दर्शन हुए थे। संत माधवाचार्य ने हनुमानजी को अपने आश्रम में देखने की बात बताई थी।
भद्राचलम रामदास- भद्राचलम रामदास ने अब्दुल हसन तान शाह के कर के पैसे से भगवान राम के लिए एक मंदिर बनवाया। हालांकि रामदास का इरादा अच्छा था, फिर भी उन्होंने देश के कानून का उल्लंघन किया। रामदास को जेल हुई। फिर एक चमत्कार हुआ कि भगवान राम ने रामदास की गहन प्रार्थनाओं का उत्तर दिया। रामजी और लक्ष्मण एक राजस्व अधिकारी के रक्षक के रूप में तैयार होकर राजा के पास गए और जुर्माने और खजाने की बकाया बड़ी राशि का भुगतान कर दिया। उन दोनों ने राजा से रामदास को रिहा करने के लिए कहा और गायब हो गए। जब रामदास को इसके बारे में पता चला तो उन्होंने राजा से कहा कि उन्होंने किसी को भी धन लेकर नहीं भेजा है। तान शाह खुश थे कि उन्हें भगवान राम के दर्शन हुए, परंतु रामदास इस बात से बहुत दुखी थे कि भगवान राम और लक्ष्मण मुस्लिम राजा के सामने आए लेकिन उन्होंने उन्हें दर्शन नहीं दिए। उन्होंने अपनी एक रचना में मुस्लिम राजा तानी शाह का नाम लेते हुए तेलुगु में गाना गाया था। बाद में उन्होंने भगवान राम के भी दर्शन किए।
बाबा रामदेव : इन्हें द्वारिकाधीश का अवतार माना जाता है। इन्हें पीरों का पीर रामसा पीर कहा जाता है। सबसे ज्यादा चमत्कारिक और सिद्ध पुरुषों में इनकी गणना की जाती है। हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रतीक बाबा रामदेव के समाधि स्थल रुणिचा में मेला लगता है, जहां भारत और पाकिस्तान से लाखों की तादाद में लोग आते हैं। विक्रम संवत 1409 को उडूकासमीर (बाड़मेर) उनका जन्म हुआ था और विक्रम संवत 1442 में उन्होंने रूणिचा में जीवित समाधि ले ली। पिता का नाम अजमालजी तंवर, माता का नाम मैणादे, पत्नी का नाम नेतलदे, गुरु का नाम बालीनाथ, घोड़े का नाम लाली रा असवार। कहते हैं कि उन्होंने सभी देवी और देवताओं के दर्शन किए थे।
तुलसीदासजी- तुलसीदासजी प्रभु श्रीराम के अनन्य भक्त थे। उनकी भगवान दर्शन की कहानी भी अजीब है। एक प्रेत ने उन्हें हनुमानजी का पता बताया था। कहा था कि रामकथा के दौरान हनुमानजी वहां पर आते हैं। उनके पैर पकड़ लेना। वे आपको भगवान राम के दर्शन करवा सकते हैं। तुलसीदासजी ने यही किया। तुलसीदास उनके पैर जोर से पकड़ लिए और रोने लगे। अंत में हारकर कुष्ठी रूप में रामकथा सुन रहे हनुमानजी से भगवान के दर्शन करवाने का वचन दे दिया। फिर एक दिन मंदाकिनी के तट पर तुलसीदासजी चंदन घिस रहे थे। भगवान राम बालक रूप में आकर उनसे चंदन मांग-मांगकर लगा रहे थे, तब हनुमानजी ने तोता बनकर यह दोहा पढ़ा-
चित्रकूट के घाट पै भई संतनि भीर।
तुलसीदास चंदन घिसे, तिलक देत रघुवीर।।
बोलो सियाराम की जय। तुलसीदासजी दोनों बालकों को देखकर चौंक गए...। वे जब तक कुछ समझ पाते तब तक तो रघुनंदन चले गए। तुलसीदासजी ने रामचरित मानस लिखने के पहले हनुमान चालीसा लिखी। इसके बाद हनुमान अष्टक, बजरंग बाण, हनुमान बहुक आदि रचना ही उन्होंने ही लिखी। यह सब हनुमानजी की कृपा से ही संभव हो पाया।
राघवेन्द्र स्वामी- 1595 में जन्मे रामभक्त राघवेन्द्र स्वामी माधव समुदाय के एक गुरु के रूप में प्रतिष्ठित हैं। उनके जीवन से अनेक चमत्कारिक घटनाएं जुड़ी हुई हैं। उनके बारे में भी कहा जाता है कि उन्होंने भी हनुमानजी के साक्षात दर्शन किए थे। वे भी हनुमानजी के परम भक्त थे। उन्होंने 1671 में मंत्राल्यम में तुंगभद्रा नदी के तट पर जीवा समाधि में प्रवेश किया।
संत त्यागराज- 1767 में जन्मे और 1847 में ब्रह्मलीन संत त्यागराज श्रीराम और हनुमानजी के परम भक्त थे। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने 6 करोड़ बार श्रीराम के थारका नाम का पाठ किया और थिरुवियारु के थिरुमंजना स्ट्रीट पर अपने घर के सामने सीता देवी, लक्ष्मण और श्री अंजनेय के साथ श्रीराम के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त किया था।
नीम करोली बाबा- नीम करोली बाबा का वास्तविक नाम लक्ष्मीनारायण शर्मा था। उत्तरप्रदेश के अकबरपुर गांव में उनका जन्म 1900 के आसपास हुआ था। उन्होंने अपने शरीर का त्याग 11 सितंबर 1973 को वृंदावन में किया था। बाबा नीम करोली हनुमानजी के परम भक्त थे और उन्होंने देशभर में हनुमानजी के कई मंदिर बनवाए थे। नीम करोली बाबा के कई चमत्कारिक किस्से हैं। उनके बारे में कहा जाता है कि हनुमानजी और श्रीराम उन्हें साक्षात दर्शन देते थे।
लियोनेल ब्लेज़- ब्रिटिश शासन के दौरान, कर्नल लियोनेल ब्लेज़ चेन्नई के पास चेंगलपट्टू जिले के कलेक्टर थे। पास के शहर मदुरंतकम में एक विशाल झील है। हर साल मानसून की बारिश से झील भर जाती थी और कई बार यह ओवरफ्लो हो जाती थी या इसके किनारे टूट जाते थे। 1795 और 1799 के बीच ब्लेज़ ने कलेक्टरशिप के दौरान बैंकों की मरम्मत की देखरेख के लिए वहां डेरा डाला। जब उन्होंने प्रसिद्ध प्राचीन राम मंदिर में बड़े ग्रेनाइट स्तंभ को देखा तो उन्होंने कहा कि इसका उपयोग झील के किनारों को मजबूत करने के लिए किया जा सकता है।
पुजारियों ने यह कहते हुए प्रस्ताव पर आपत्ति जताई कि राम शहर की रक्षा करेंगे। लेकिन कलेक्टर ने जोर देकर कहा कि यदि भगवान झील की रक्षा कर सकते हैं तो यह कई बार क्यों टूटती है?
हालांकि कलेक्टर ने कोई दबाव नहीं डाला और वह यह जानना चाहता था कि पुजारी सही कह रहे हैं या नहीं। वह इस बारिश में झील के टूटने का इंतजार करना चाहता था और देखना चाहता था कि अगले कुछ दिनों की बारिश में क्या होता है। झील लबालब भरी हुई थी। चिंतित कलेक्टर रात के अंधेरे में बैंकों की निगरानी कर रहे थे। अचानक उसे प्रकाश की एक चमक दिखाई दी और झील के किनारे धनुष-बाण लिए दो व्यक्ति टहलते हुए नजर आए। बारिश भी रुक गई और कोई अनहोनी नहीं हुई। कलेक्टर को पता था कि यह भगवान राम और उनके भाई लक्ष्मण ही थे जो झील की रखवाली कर रहे थे। उन्होंने वो तस्वीरें स्थानीय मंदिर में देखी थीं। मंदिर के शिलालेख में कलेक्टर ब्लेज़ का नाम है और मंदिर का नाम बदलकर तमिल में 'एरी कथा रामर' रखा गया जिसका अर्थ है 'राम जिसने झील को बचाया' मंदिर। यह रिकॉर्ड में है कि कर्नल ब्लेज़ ने रॉबर्ट क्लाइव के साथ कांचीपुरम सहित उस क्षेत्र के मंदिरों को आभूषण दान किए थे और उन्होंने भगवान राम को देखा था।
ऐसे कई किस्से हैं जिससे यह पता चलता है कि कलयुग में श्री राम ने संतों और खास लोगों कोही नहीं कई आम लोगों को भी अपने होने का अहसास कराया है।