भारतीय इतिहास में रामायण और रामायण काल का संपूर्ण अखंड भारत पर गहरा असर हुआ है। रामायण काल से कई पुरातात्विक अवशेष आज भी मौजूद है। आओ जानते हैं रामायण काल की 10 खास बातें।
1. रामायण काल का समय : आर्यभट्ट के अनुसार महाभारत काल का युद्ध 3137 ईसा पूर्व में हुआ था, अर्थात सन् 2020 अनुसार 5157 वर्ष पूर्व हुआ था। इससे पूर्व श्रीराम हुए थे। भगवान श्रीराम का जन्म 5114 ईसा पूर्व चैत्र मास की नवमी को हुआ था। अर्थात 7134 वर्ष पूर्व। नए शोधानुसार यह सिंधुघाटी सभ्यता का प्रारंभिक काल था।
2. विचित्र किस्म की प्रजातियां : भगवान राम का काल ऐसा काल था जबकि धरती पर विचित्र किस्म के लोग और प्रजातियां रहती थीं, लेकिन प्राकृतिक आपदा या अन्य कारणों से ये प्रजातियां अब लुप्त हो गई। जैसे, वानर, गरूड़, रीछ आदि। माना जाता है कि रामायण काल में सभी पशु, पक्षी और मानव की काया विशालकाय होती थी। मनुष्य की ऊंचाई 21 फिट के लगभग थी।
3. रामायण काल के मायावी लोग : रामायण काल में ऐसे कई मायावी असुर, दानव, वानर और राक्षस थे जो आश्चर्यजनकरूप से शक्तिशाली थे। जैसे माल्यवान, सुमाली, माली, रावण, कालनेमि, सुबाहू, मारीच, कुंभकर्ण, कबंध, विराध, अहिरावण, खर और दूषण, मेघनाद, मयदानव, बालि आदि।
4.रामायण काल के अविष्कार : रामायण काल में कई वैज्ञानिक थे। नल, नील, मयदानव, विश्वकर्मा, अग्निवेश, सुबाहू, ऋषि अगत्स्य, वशिष्ठ, विश्वामित्र आदि कई वैज्ञानिक थे। रामायण काल में भी आज के युग जैसे अविष्कार हुए थे। रामायण काल में नाव, समुद्र जलपोत, विमान, शतरंज, रथ, धनुष-बाण और कई तरह के अस्त्र-शस्त्रों के नाम तो आपने सुने ही होंगे। लेकिन उस काल में लड़ाकू विमानों को नष्ट करने का यंत्र भी होता था।
रामायण काल में विभीषण के पास 'दूर नियंत्रण यंत्र' था जिसे 'मधुमक्खी' कहा और जो मोबाइल की तरह उपयोग होता था। लंका के 10,000 सैनिकों के पास 'त्रिशूल' नाम के यंत्र थे, जो दूर-दूर तक संदेश का आदान-प्रदान करते थे। इसके अलावा दर्पण यंत्र भी था, जो अंधकार में प्रकाश का आभास प्रकट करता था।
लड़ाकू विमानों को नष्ट करने के लिए रावण के पास भस्मलोचन जैसा वैज्ञानिक था जिसने एक विशाल 'दर्पण यंत्र' का निर्माण किया था। इससे प्रकाश पुंज वायुयान पर छोड़ने से यान आकाश में ही नष्ट हो जाते थे। लंका से निष्कासित किए जाते वक्त विभीषण भी अपने साथ कुछ दर्पण यंत्र ले आया था। इन्हीं 'दर्पण यंत्रों' में सुधार कर अग्निवेश ने इन यंत्रों को चौखटों पर कसा और इन यंत्रों से लंका के यानों की ओर प्रकाश पुंज फेंका जिससे लंका की यान शक्ति नष्ट होती चली गई। एक अन्य प्रकार का भी दर्पण यंत्र था जिसे ग्रंथों में 'त्रिकाल दृष्टा' कहा गया है, लेकिन यह यंत्र त्रिकालदृष्टा नहीं बल्कि दूरदर्शन जैसा कोई यंत्र था। लंका में यांत्रिक सेतु, यांत्रिक कपाट और ऐसे चबूतरे भी थे, जो बटन दबाने से ऊपर-नीचे होते थे। ये चबूतरे संभवत: लिफ्ट थे।
5. निर्माण कार्य : रामायण काल में भवन, पूल और अन्य निर्माण कार्यों का भी जिक्र मिलता है। इससे पता चलता है कि उस काल में भव्य रूप से निर्माण कार्य किए जाते थे और उस काल की वास्तु एवं स्थापत्य कला आज के काल से कई गुना आगे थी। उस युग में विश्वामित्र और मयासुर नामक दो प्रमुख वास्तु और ज्योतिष शास्त्री थे। दोनों ने ही कई बड़े बड़े नगर, महल और भवनों का निर्माण किया था। गीता प्रेस गोरखपुर से छपी पुस्तक 'श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण-कथा-सुख-सागर' में वर्णन है कि राम ने सेतु के नामकरण के अवसर पर उसका नाम 'नल सेतु' रखा। इसका यह कारण था कि लंका तक पहुंचने के लिए निर्मित पुल का निर्माण विश्वकर्मा के पुत्र नल द्वारा बताई गई तकनीक से संपन्न हुआ था। महाभारत में भी राम के नल सेतु का जिक्र आया है।
संदर्भ ग्रंथ सूची:-
1.वाल्मीकि रामायण।
2.रामकथा उत्पत्ति और विकास: डॉ. फादर कामिल बुल्के।
3.लंकेश्वर (उपन्यास): मदनमोहन शर्मा ‘शाही'।
4.हिन्दी प्रबंध काव्य में रावण: डॉ. सुरेशचंद्र निर्मल।
5.रावण-इतिहास: अशोक कुमार आर्य।
6.प्रमाण तो मिलते हैं: डॉ. ओमकारनाथ श्रीवास्तव (लेख) 27 मई 1973।
7.महर्षि भारद्वाज तपस्वी के भेष में एयरोनॉटिकल साइंटिस्ट (लेख) विचार मीमांसा 31. अक्टूबर 2007।
8.विजार्ड आर्ट।
9.चैरियट्स गॉड्स: ऐरिक फॉन डानिकेन।
10.क्या सचमुच देवता धरती पर उतरे थे डॉ. खड्ग सिंह वल्दिया (लेख) धर्मयुग 27 मई 1973।