• Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. व्रत-त्योहार
  3. अन्य त्योहार
  4. Tripurari Purnima ki katha
Written By
Last Modified: सोमवार, 7 नवंबर 2022 (13:27 IST)

त्रिपुरारी पूर्णिमा क्यों कहते हैं कार्तिकी पूनम को?

त्रिपुरारी पूर्णिमा क्यों कहते हैं कार्तिकी पूनम को? - Tripurari Purnima ki katha
Kartik Purnima 2022: कार्तिक मास की पूर्णिमा को कार्तिकी पूनम भी कहते हैं। इस दिन देव दिवाली रहती है। इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहते हैं। 8 नवंबर 2022 को कार्तिक पूर्णिमा यानी देव दिवाली के दिन चंद्र ग्रहण लगने वाला है। इस दिन श्री हरि विष्णुजी की पूजा के साथ ही शिवजी और हनुमानजी की पूजा भी की जाती है। आओ जानते हैं कि क्यों कहते हैं इसे त्रिपुरी पूर्णिमा।
 
कार्तिक पूर्णिमा का 4 घटनाओं से खास संबंध है। पहला इस दिन मत्स्य अवतार हुआ था, दूसरा तुलसी का प्राकट्य दिवस है, तीसरा श्रीकृष्ण जी को इस दिन आत्मबोध हुआ था और चौथा भगवान शिवजी ने त्रिपुरासुर का वध किया था।
 
देवता क्यों मनाते हैं यह दिवाली : भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध करके देवताओं को भय से मुक्ति कर पुन: स्वर्ग का राज्य सौंप दिया था। इसी की खुशी में देवता लोग गंगा और यमुना के तट पर एकत्रित होकर स्नान करते हैं और खुशी में दिवाली मनाते हैं। इसलिए इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहते हैं।
 
पौराणिक कथा : पौराणिक कथा के मुताबिक तारकासुर नाम का एक राक्षस था। उसके तीन पुत्र थे - तारकक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली...भगवान शिव के बड़े पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया।
अपने पिता की हत्या की खबर सुन तीनों पुत्र बहुत दुखी हुए।  तीनों ने मिलकर ब्रह्माजी से वरदान मांगने के लिए घोर तपस्या की। ब्रह्माजी तीनों की तपस्या से प्रसन्न हुए और बोले कि मांगों क्या वरदान मांगना चाहते हो। तीनों ने ब्रह्मा जी से अमर होने का वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्माजी ने उन्हें इसके अलावा कोई दूसरा वरदान मांगने को कहा। 
 
तीनों ने मिलकर फिर सोचा और इस बार ब्रह्माजी से तीन अलग नगरों का निर्माण करवाने के लिए कहा, जिसमें सभी बैठकर सारी पृथ्वी और आकाश में घूमा जा सके। एक हज़ार साल बाद जब हम मिलें और हम तीनों के नगर मिलकर एक हो जाएं, और जो देवता तीनों नगरों को एक ही बाण से नष्ट करने की क्षमता रखता हो, वही हमारी मृत्यु का कारण हो। ब्रह्माजी ने उन्हें ये वरदान दे दिया। 
 
तीनों वरदान पाकर बहुत खुश हुए। ब्रह्माजी के कहने पर मयदानव ने उनके लिए तीन नगरों का निर्माण किया। तारकक्ष के लिए सोने का, कमला के लिए चांदी का और विद्युन्माली के लिए लोहे का नगर बनाया गया। तीनों ने मिलकर तीनों लोकों पर अपना अधिकार जमा लिया। इंद्र देवता इन तीनों राक्षसों से भयभीत हुए और भगवान शंकर की शरण में गए। इंद्र की बात सुन भगवान शिव ने इन दानवों का नाश करने के लिए एक दिव्य रथ का निर्माण किया।  
 
इस दिव्य रथ की हर एक चीज़ देवताओं से बनी। चंद्रमा और सूर्य से पहिए बने। इंद्र, वरुण, यम और कुबेर रथ के चाल घोड़े बने। हिमालय धनुष बने और शेषनाग प्रत्यंचा बने। भगवान शिव खुद बाण बने और बाण की नोक बने अग्निदेव। इस दिव्य रथ पर सवार हुए खुद भगवान शिव। भगवानों से बनें इस रथ और तीनों भाइयों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। जैसे ही ये तीनों रथ एक सीध में आए, भगवान शिव ने बाण छोड़ तीनों का नाश कर दिया। इसी वध के बाद भगवान शिव को त्रिपुरारी कहा जाने लगा। यह वध कार्तिक मास की पूर्णिमा को हुआ, इसीलिए इस दिन को त्रिपुरी पूर्णिमा नाम से भी जाना जाने लगा।
 
ये भी पढ़ें
वैकुंठ चतुर्दशी का महत्व क्या है?