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नृसिंह जयंती की कथा क्या है? आरती, मंत्र, स्तुति, पूजा विधि, मुहूर्त और महत्व भी जानिए

नृसिंह जयंती की कथा क्या है? आरती, मंत्र, स्तुति, पूजा विधि, मुहूर्त और महत्व भी जानिए - Narasimha Jayanti 2023 Date n Muhurat
Narasimha Jayanti 2023 
 
वर्ष 2023 में वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन 4 मई, गुरुवार को नरसिंह जयंती (Narsingh Jayanti 2023) मनाई जाएगी। आइए यहां जानते हैं उनकी कथा, मंत्र, आरती, विधि, पूजन के शुभ मुहूर्त और स्तुति के बारे में... 
 
नृसिंह जयंती/अवतार की कथा- जब हिरण्याक्ष का वध हुआ तो उसका भाई हिरण्यकशिपु बहुत दुःखी हुआ। वह भगवान का घोर विरोधी बन गया। उसने अजेय बनने की भावना से कठोर तप किया। तप का फल उसे देवता, मनुष्य या पशु आदि से न मरने के वरदान के रूप में मिला। वरदान पाकर तो वह मानो अजेय हो गया।
 
हिरण्यकशिपु का शासन बहुत कठोर था। देव-दानव सभी उसके चरणों की वंदना में रत रहते थे। भगवान की पूजा करने वालों को वह कठोर दंड देता था और वह उन सभी से अपनी पूजा करवाता था। उसके शासन से सब लोक और लोकपाल घबरा गए। कहीं ओर कोई सहारा न पाकर वे भगवान की प्रार्थना करने लगे। देवताओं की स्तुति से प्रसन्न होकर भगवान नारायण ने हिरण्यकशिपु के वध का आश्वासन दिया।
 
उधर दैत्यराज का अत्याचार दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा था। यहां तक कि वह अपने ही पुत्र प्रहलाद को भगवान का नाम लेने के कारण तरह-तरह का कष्ट देने लगा। प्रहलाद बचपन से ही खेल-कूद छोड़कर भगवान के ध्यान में तन्मय हो जाया करता था। वह भगवान का परम भक्त था। वह समय-समय पर असुर-बालकों को धर्म का उपदेश भी देता रहता था।
 
असुर-बालकों को धर्म उपदेश की बात सुनकर हिरण्यकशिपु बहुत क्रोधित हुआ। उसने प्रहलाद को दरबार में बुलाया। प्रहलाद बड़ी नम्रता से दैत्यराज के सामने खड़ा हो गया। उसे देखकर दैत्यराज ने डांटते हुए कहा- 'मूर्ख! तू बड़ा उद्दंड हो गया है। तूने किसके बल पर मेरी आज्ञा के विरुद्ध काम किया है?' 
 
इस पर प्रहलाद ने कहा- 'पिता जी! ब्रह्मा से लेकर तिनके तक सब छोटे-बड़े, चर-अचर जीवों को भगवान ने ही अपने वश में कर रखा है। वह परमेश्वर ही अपनी शक्तियों द्वारा इस विश्व की रचना, रक्षा और संहार करते हैं। आप अपना यह भाव छोड़ अपने मन को सबके प्रति उदार बनाइए।'
 
प्रहलाद की बात को सुनकर हिरण्यकशिपु का शरीर क्रोध के मारे थर-थर कांपने लगा। उसने प्रहलाद से कहा- 'रे मंदबुद्धि! यदि तेरा भगवान हर जगह है तो बता इस खंभे में क्यों नहीं दिखता?' 
 
यह कहकर क्रोध से तमतमाया हुआ वह स्वयं तलवार लेकर सिंहासन से कूद पड़ा। उसने बड़े जोर से उस खंभे को एक घूंसा मारा। उसी समय उस खंभे के भीतर से नृसिंह भगवान प्रकट हुए। उनका आधा शरीर सिंह का और आधा मनुष्य के रूप में था। क्षणमात्र में ही नृसिंह भगवान ने हिरण्यकशिपु को अपने जांघों पर लेते हुए उसके सीने को अपने नाखूनों से फाड़ दिया और उसकी जीवन-लीला समाप्त करके अपने प्रिय भक्त प्रहलाद की रक्षा की। 
 
श्री नरसिंह भगवान की आरती- Shri Narasingh Aarti
 
आरती कीजै नरसिंह कुंवर की।
वेद विमल यश गाऊं मेरे प्रभुजी।।
 
पहली आरती प्रह्लाद उबारे,
हिरणाकुश नख उदर विदारे।
 
दूसरी आरती वामन सेवा,
बलि के द्वार पधारे हरि देवा।
आरती कीजै नरसिंह कुंवर की।
 
तीसरी आरती ब्रह्म पधारे,
सहसबाहु के भुजा उखारे।
 
चौथी आरती असुर संहारे,
भक्त विभीषण लंक पधारे।
आरती कीजै नरसिंह कुंवर की।
 
पांचवीं आरती कंस पछारे,
गोपी ग्वाल सखा प्रतिपाले।
 
तुलसी को पत्र कंठ मणि हीरा,
हरषि-निरखि गावें दास कबीरा।
 
आरती कीजै नरसिंह कुंवर की।
वेद विमल यश गाऊं मेरे प्रभुजी।।
 
मंत्र- Narasimha Jayanti Mantra 
 
- नृम नृम नृम नर सिंहाय नमः।
- ॐ श्री लक्ष्मीनृसिंहाय नम:।
- बीज मंत्र- 'श्रौं'/ क्ष्रौं।
- ध्याये न्नृसिंहं तरुणार्कनेत्रं सिताम्बुजातं ज्वलिताग्रिवक्त्रम्।
अनादिमध्यान्तमजं पुराणं परात्परेशं जगतां निधानम्।।
- ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्।
नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्यु मृत्युं नमाम्यहम्॥
 
श्री नृसिंह स्तुति/स्तोत्र- Lord Narasimha Stotram
 
ब्रह्मोवाच
नतोऽस्म्यनन्ताय दुरन्तशक्तये विचित्रवीर्याय पवित्रकर्मणे।
विश्वस्य सर्ग-स्थिति-संयमान्‌ गुणैः स्वलीलया सन्दधतेऽव्ययात्मने॥1॥
 
श्रीरुद्र उवाच
कोपकालो युगान्तस्ते हतोऽयमसुरोऽल्पकः।
तत्सुतं पाह्युपसृतं भक्तं ते भक्तवत्सल॥2॥
 
इंद्र उवाच
प्रत्यानीताः परम भवता त्रायतां नः स्वभागा।
दैत्याक्रान्तं हृदयकमलं स्वद्गृहं प्रत्यबोधि।
कालग्रस्तं कियदिदमहो नाथ शुश्रूषतां ते।
मुक्तिस्तेषां न हि बहुमता नारसिंहापरैः किम्‌॥3॥
 
ऋषय उवाच
त्वं नस्तपः परममात्थ यदात्मतेजो येनेदमादिपुरुषात्मगतं ससर्ज।
तद्विप्रलुप्तमनुनाऽद्य शरण्यपाल रक्षागृहीतवपुषा पुनरन्वमंस्थाः॥4॥
 
पितर ऊचुः
श्राद्धानि नोऽधिबुभुजे प्रसभं तनूजैर्दत्तानि तीर्थसमयेऽप्यपिबत्तिलाम्बु।
तस्योदरान्नखविदीर्णवपाद्य आर्च्छत्तस्मै नमो नृहरयेऽखिल धर्मगोप्त्रे॥5॥
 
सिद्धा ऊचु:
यो नो गतिं योगसिद्धामसाधुरहारषीद्योगतपोबलेन।
नानादर्पं तं नखैर्निर्ददार तस्मै तुभ्यं प्रणताः स्मो नृसिंह॥6॥
 
विद्याधरा ऊचु:
विद्यां पृथग्धारणयाऽनुराद्धां न्यषधदज्ञो बलवीर्यदृप्तः।
स येन संख्ये पशुवद्धतस्तं मायानृसिंहं प्रणताः स्म नित्यम्‌॥7॥
 
नागा ऊचु:
येन पापेन रत्नानि स्त्रीरत्नानि हृतानि नः।
तद्वक्षःपाटनेनासां दत्तानन्द नमोऽस्तु ते॥8॥
 
मनव ऊचु:
मनवो वयं तव निदेशकारिणो दितिजेन देव परिभूतसेतवः।
भवता खलः स उपसंहृतः प्रभो कर वाम ते किमनुशाधि किंकरान्‌॥9॥
 
रजापतय ऊचु:
प्रजेशा वयं ते परेशाभिसृष्टा न येन प्रजा वै सृजामो निषिद्धाः।
स एव त्वया भिन्नवक्षाऽनुशेते जगन्मंगलं सत्त्वमूर्तेऽवतारः॥10॥
 
गन्धर्वा ऊचु:
वयं विभो ते नटनाट्यगायका येनात्मसाद् वीर्यबलौजसा कृताः।
स एव नीतो भवता दशामिमां किमुत्पथस्थः कुशलाय कल्पते॥11॥
 
चारणा ऊचु:
हरे तवांग्घ्रिपंकजं भवापवर्गमाश्रिताः।
यदेष साधु हृच्छयस्त्वयाऽसुरः समापितः॥12॥
 
यक्षा ऊचु:
वयमनुचरमुख्याः कर्मभिस्ते मनोज्ञैस्त इह दितिसुतेन प्रापिता वाहकत्वम्‌।
स तु जनपरितापं तत्कृतं जानता ते नरहर उपनीतः पंचतां पंचविंशः॥13॥
 
किंपुरुषा ऊचु:
वयं किंपुरुषास्त्वं तु महापुरुष ईश्वरः।
अयं कुपुरुषो नष्टो धिक्कृतः साधुभिर्यदा॥14॥
 
वैतालिका ऊचु:
सभासु सत्रेषु तवामलं यशो गीत्वा सपर्यां महतीं लभामहे।
यस्तां व्यनैषीद् भृशमेष दुर्जनो दिष्ट्या हतस्ते भगवन्‌ यथाऽऽमयः॥15॥
 
किन्नरा ऊचु:
वयमीश किन्नरगणास्तवानुगा दितिजेन विष्टिममुनाऽनुकारिताः।
भवता हरे स वृजिनोऽवसादितो नरसिंह नाथ विभवाय नो भव॥16॥
 
विष्णुपार्षदा ऊचु:
अद्यैतद्धरिनररूपमद्भुतं ते दृष्टं नः शरणद सर्वलोकशर्म।
सोऽयं ते विधिकर ईश विप्रशप्तस्तस्येदं निधनमनुग्रहाय विद्मः॥17॥
 
॥ इति श्रीमद्भागवतान्तर्गते सप्तमस्कन्धेऽष्टमध्याये नृसिंहस्तोत्रं संपूर्णम्‌ ॥
 
पूजा विधि- Narasimha Jayanti 2023 Puja VIdhi 
 
- नृसिंह जयंती के दिन व्रतधारी प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में सोकर उठें।
- पूरे घर की साफ-सफाई करें।
- इसके बाद गंगा जल या गौमूत्र का छिड़काव कर पूरा घर पवित्र करें।
- तत्पश्चात निम्न मंत्र बोले- नृसिंह देवदेवेश तव जन्मदिने शुभे। उपवासं करिष्यामि सर्वभोगविवर्जितः॥
- इस मंत्र के साथ दोपहर के समय क्रमशः तिल, गोमूत्र, मृत्तिका और आंवला मल कर पृथक-पृथक चार बार स्नान करें। 
- इसके बाद शुद्ध जल से स्नान करना चाहिए।
- पूजा के स्थान को गोबर से लीपकर तथा कलश में तांबा इत्यादि डालकर उसमें अष्टदल कमल बनाना चाहिए।
- अष्टदल कमल पर सिंह, भगवान नृसिंह तथा लक्ष्मीजी की मूर्ति स्थापित करना चाहिए। 
- तत्पश्चात वेदमंत्रों से इनकी प्राण-प्रतिष्ठा कर षोडशोपचार से पूजन करना चाहिए।
- इस दिन व्रती को दिनभर उपवास रहना चाहिए।
- ब्रह्मचर्य का पालन करें।
- रात्रि में गायन, वादन, पुराण श्रवण या हरि संकीर्तन से जागरण करें। 
- दूसरे दिन फिर पूजन कर ब्राह्मणों को भोजन कराएं।
- अपने सामर्थ्य के अनुसार भू, गौ, तिल, स्वर्ण तथा वस्त्रादि का दान देना चाहिए।
- क्रोध, लोभ, मोह, झूठ, कुसंग तथा पापाचार का त्याग करना चाहिए।
 
नरसिंह जयंती के शुभ मुहूर्त एवं पारण समय 2023- Narasimha Jayanti 2023 Muhurat
 
नरसिंह जयंती : 4 मई 2023, गुरुवार
वैशाख शुक्ल चतुर्दशी तिथि का प्रारंभ- 03 मई 2023, बुधवार को 11.49 पी एम से
चतुर्दशी तिथि का समापन- 04 मई 2023, गुरुवार को 11.44 पी एम पर। 
नरसिंह जयंती संकल्प का समय (मध्याह्न)- 10.58 ए एम से 01.38 पी एम तक।
 
नरसिंह जयंती पूजन समय (सायंकाल में)- 04.18 पी एम से 06.58 पी एम तक। 
कुल अवधि- 02 घंटे 40 मिनट्स
नरसिंह जयंती पारण समय- अगले दिन 05.38 ए एम
 
04 मई 2023 : दिन का चौघड़िया
 
शुभ- 05.38 ए एम से 07.18 ए एम
चर- 10.38 ए एम से 12.18 पी एम
लाभ- 12.18 पी एम से 01.58 पी एम
अमृत- 01.58 पी एम से 03.38 पी एम
शुभ- 05.18 पी एम से 06.58 पी एम
 
रात का चौघड़िया
अमृत- 06.58 पी एम से 08.18 पी एम 
चर- 08.18 पी एम से 09.38 पी एम
लाभ- 12.18 ए एम से 5 मई को 01.38 ए एम
शुभ- 02.58 ए एम से 5 मई को 04.18 ए एम
अमृत- 04.18 ए एम से 5 मई को 05.38 ए एम तक। 
 
महत्व-Narasimha Jayanti Importmance 
 
वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को नृसिंह जयंती व्रत किया जाता है। इस वर्ष 4 मई 2023, गुरुवार को यह पर्व मनाया जाएगा। पुराणों के अनुसार इस पावन दिन भक्त प्रह्लाद की रक्षा करने के लिए भगवान विष्णु ने नृसिंह रूप में अवतार धारण किया था। इसी वजह से यह दिन भगवान नृसिंह के जयंती रूप में बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है।

इस दिन व्रतधारी को दिनभर उपवास रहना चाहिए, साथ ही ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए क्रोध, लोभ, मोह, झूठ, कुसंग तथा पापाचार का त्याग करना चाहिए। इसके साथ ही अपने सामर्थ्य के अनुसार भू, गौ, तिल, स्वर्ण तथा वस्त्रादि का दान देना चाहिए।

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