Luv Kush Jayanti 2022: श्रावण मास की पूर्णिमा यानी रक्षा बंधन के दिन लव और कुश की जयंती भी मनाई जाती है। प्रभु श्रीराम के लव और कुश जुड़वा पुत्र थे। लव और कुश के वंश के लोग आज भी हैं, जो लव और कुश की जयंती मनाते हैं। आओ जानते हैं इनके बारे में अनजाने तत्थ।
1. वाल्मीकि रामायण : वाल्मीकि रामायण में प्रभु श्रीराम के पुत्र लव और कुश की गाथा कर वर्णन किया गया है।
2. लव और कुश का जन्म : लव और कुश का जन्म वाल्मीकि आश्रम में हुआ था। माता सीता अयोध्या के महल को छोड़कर आश्रम में रहती थीं। वाल्मीकि आश्रम में सीता ने लव और कुश नामक 2 जुड़वां बच्चों को जन्म दिया।
3. शिक्षा दीक्षा : लव और कुश की पढ़ाई-लिखाई से लेकर विभिन्न कलाओं में निपुण होने के पीछे महर्षि वाल्मीकि का ही हाथ था। उन्होंने ही दोनों राजकुमारों को हर तरह की शिक्षा और विद्या में परंगत किया।
4. वाल्मीकि ने पढ़ाई रामायण : महर्षि वाल्मीकि ने लव और कुश को रामायण भी पढ़ाई थी। कहते हैं कि लव और कुश को बहुत समय तक यह ज्ञात नहीं था कि उनके पिता प्रभु श्रीराम हैं।
5. अश्वमेध का घोड़ा : कहते हैं कि एक बार श्रीराम ने अश्वमेध यज्ञ किया और यज्ञ का श्वेत अश्व (घोड़ा) छोड़ दिया। घोड़ा जहां-जहां जाता था वहां के राजा अयोध्या की अधीनता स्वीकार कर लेते या युद्ध करके पराजित हो जाते थे। यह घोड़ा भटकते हुए जंगल में आ गया। वहां लव और कुश ने इसे पकड़ लिया। घोड़ा पकड़ने का अर्थ है अयोध्या के राजा को चुनौती देना।
5. श्रीराम से लड़ाई : राम को जब यह पता चला कि किन्हीं सुकुमारों ने घोड़ा पकड़ लिया तो पहले उसका आशय जानने के लिए दूत भेजे। जब यह पता चला कि लव और कुश घोड़ा छोड़ने को तैयार नहीं है और वे चुनौती दे रहे हैं तो श्रीराम के भाइयों भरत, शत्रुघ्न और लक्ष्मण के साथ लव-कुश का युद्ध हुआ लेकिन सभी भाई पराजित होकर लौट आए। यह देखकर श्रीराम को खुद ही युद्ध करने आना पड़ा लेकिन युद्ध का कोई परिणाम नहीं निकला। तब राम ने दोनों बालकों की योग्यता देखते हुए उन्हें यज्ञ में शामिल होने का निमंत्रण दिया।
6. सीता की व्यथा का किया बखान : लड़ाई के बाद लव और कुश को यह पता चला कि श्रीराम तो उनके पिता हैं। फिर श्रीराम के निमंत्रण पर नगर में पहुंचकर लव और कुश ने श्रीराम की गाथा का गुणगाण किया और दरबार में उन्होंने माता सीता की व्यथा कथा गाकर सुनाई। यह सुन और देखकर प्रभु श्रीराम को ये पता चला गया कि लव और कुश उनके ही बेटे हैं। उन्हें तब बहुत दु:ख हुआ और वे सीता को पुन: राज महल ले आए।
7. लव और कुश का राज्याभिषेक : भरत के दो पुत्र थे- तार्क्ष और पुष्कर। लक्ष्मण के पुत्र- चित्रांगद और चन्द्रकेतु और शत्रुघ्न के पुत्र सुबाहु और शूरसेन थे। मथुरा का नाम पहले शूरसेन था। लव और कुश राम तथा सीता के जुड़वां बेटे थे। जब राम ने वानप्रस्थ लेने का निश्चय कर भरत का राज्याभिषेक करना चाहा तो भरत नहीं माने। अत: दक्षिण कोसल प्रदेश (छत्तीसगढ़) में कुश और उत्तर कोसल में लव का राज्य अभिषेक किया गया।
8. लव और कुश के राज्य : श्रीराम के काल में भी कोशल राज्य उत्तर कोशल और दक्षिण कोसल में विभाजित था। कालिदास के रघुवंश अनुसार राम ने अपने पुत्र लव को शरावती का और कुश को कुशावती का राज्य दिया था। शरावती को श्रावस्ती मानें तो निश्चय ही लव का राज्य उत्तर भारत में था और कुश का राज्य दक्षिण कोसल में। कुश की राजधानी कुशावती आज के बिलासपुर जिले में थी। कोसला को राम की माता कौशल्या की जन्मभूमि माना जाता है। रघुवंश के अनुसार कुश को अयोध्या जाने के लिए विंध्याचल को पार करना पड़ता था इससे भी सिद्ध होता है कि उनका राज्य दक्षिण कोसल में ही था।
9. लव और कुश के वंशज : राजा लव से राघव राजपूतों का जन्म हुआ जिनमें बर्गुजर, जयास और सिकरवारों का वंश चला। इसकी दूसरी शाखा थी सिसोदिया राजपूत वंश की जिनमें बैछला (बैसला) और गैहलोत (गुहिल) वंश के राजा हुए। कुश से कुशवाह (कछवाह) राजपूतों का वंश चला।
10. लव का लहौर : ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार लव ने लवपुरी नगर की स्थापना की थी, जो वर्तमान में पाकिस्तान स्थित शहर लाहौर है। यहां के एक किले में लव का एक मंदिर भी बना हुआ है। लवपुरी को बाद में लौहपुरी कहा जाने लगा। दक्षिण-पूर्व एशियाई देश लाओस, थाई नगर लोबपुरी, दोनों ही उनके नाम पर रखे गए स्थान हैं।
11. कुश का वंश ज्यादा बढ़ा : श्रीराम के दोनों पुत्रों में कुश का वंश आगे बढ़ा तो कुश से अतिथि और अतिथि से, निषधन से, नभ से, पुण्डरीक से, क्षेमन्धवा से, देवानीक से, अहीनक से, रुरु से, पारियात्र से, दल से, छल से, उक्थ से, वज्रनाभ से, गण से, व्युषिताश्व से, विश्वसह से, हिरण्यनाभ से, पुष्य से, ध्रुवसंधि से, सुदर्शन से, अग्रिवर्ण से, पद्मवर्ण से, शीघ्र से, मरु से, प्रयुश्रुत से, उदावसु से, नंदिवर्धन से, सकेतु से, देवरात से, बृहदुक्थ से, महावीर्य से, सुधृति से, धृष्टकेतु से, हर्यव से, मरु से, प्रतीन्धक से, कुतिरथ से, देवमीढ़ से, विबुध से, महाधृति से, कीर्तिरात से, महारोमा से, स्वर्णरोमा से और ह्रस्वरोमा से सीरध्वज का जन्म हुआ।
कुश वंश के राजा सीरध्वज को सीता नाम की एक पुत्री हुई। सूर्यवंश इसके आगे भी बढ़ा जिसमें कृति नामक राजा का पुत्र जनक हुआ जिसने योग मार्ग का रास्ता अपनाया था। कुश वंश से ही कुशवाह, मौर्य, सैनी, शाक्य संप्रदाय की स्थापना मानी जाती है।