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Last Updated : मंगलवार, 1 नवंबर 2016 (22:29 IST)

जरूरी हो गया था सायरस मिस्त्री को हटाना : रतन टाटा

जरूरी हो गया था सायरस मिस्त्री को हटाना : रतन टाटा - Ratan Tata, Cyrus Mistry, Tata Group Chairman
मुंबई। टाटा समूह के चेयरमैन पद से हटाए गए साइरस मिस्त्री और कंपनी के मौजूदा नेतृत्व के बीच वाकयुद्ध आज और तेज हो गया है जिसमें अंतरिम चेयरमैन रतन टाटा ने कहा कि समूह की सफलता के लिए मिस्त्री को हटाना ‘बहुत ही जरूरी’हो गया था। इससे पहले आज ही मिस्त्री के कार्यालय से जारी एक बयान में कहा गया था कि यह आक्षेप ‘गलत और शरारत भरा’है कि उन्होंने टाटा-डोकोमो मामले में जो कार्रवाई की वह अपनी मर्जी से की और रतन टाटा को उसकी जानकारी नहीं थी।
 टाटा समूह ने डोकोमो मामले को न्यायालय के विचाराधीन बताते हुए इस पर कोई टिप्पणी करने से इंकार किया और कहा कि अब ‘आक्षेपों की कल्पना की जा रही है।’रतन टाट्रा ने 100 अरब डॉलर से अधिक का कारोबार करने वाले अपने समूह के कर्मचारियों को लिखे एक संदेश में कहा है कि टाटा संस के नेतृत्व में परिवर्तन का फैसला सुविचारित था और इसे निदेशक मंडल के सदस्यों ने पूरी गंभीरता से यह फैसला किया था। यह कठिन फैसला सावधानीपूर्वक और सोच-विचार के साथ चर्चा के बाद लिया गया और निदेशक मंडल मानता है कि टाटा समूह की भविष्य की सफलता के लिए यह निर्णय नितांत आवश्यक था। 
 
टाटा ने मिस्त्री के बयान के ठीक बाद जारी इस पत्र में रतन टाटा (78) ने फिर से समूह की बागडोर संभालने के अपने निर्णय को उचित बताया और कहा कि उन्होंने यह ‘स्थिरता को बनाए रखने’ और ‘नेतृत्व की निरंतरता के लिए’फिर से अंतरिम चेयरमैन का पद संभाला है।
 
उन्होंने कर्मचारियों से वादा किया है कि वह समूह को एक ‘विश्वस्तरीय नेतृत्वकर्ता’ प्रदान करेंगे। मिस्त्री को पिछले महीने के आखिर में टाटा संस के चेयरमैन पद से अचानक से हटाकर रतन टाटा को चार माह के लिए अंतरिम चेयरमैन बनाया गया है। नए चेयरमैन की तलाश के लिए पांच सदस्यों की एक समिति बनायी गई है जिसमें रतन टाटा स्वयं शामिल हैं।
 
मिस्त्री के कार्यालय ने आज यहां जारी एक बयान में कहा कि ये आरोप भी निराधार है कि ‘उन्होंने डोकोमो के मुद्दे से निपटने का जो तरीका अपनाया वह टाटा घराने की संस्कृति और मूल्यों से मेल नहीं खाता।’ मिस्त्री ने इस तरह की बातों को भी खारिज किया है कि डोकोमों के खिलाफ जिस ढंग से मुकदमा लड़ा उसे रतन टाटा या समूह के न्यायासी शायद मंजूर नहीं करते। मिस्त्री का दावा है कि इस तरह की चर्चाएं, जो बातचीत हुई थी उसके विपरीत हैं।
 
बयान में कहा गया है, ‘टाटा-डोकोमो मामले में सभी निर्णय टाटा संस के निदेशक-मंडल की स्वीकृति से लिए गए और जो कार्रवाई की गई वह ऐसे प्रत्येक सामूहिक निर्णय के अनुरूप थी।’ बयान में कहा गया है कि ‘डोकोमो की स्थिति पर टाटा संस के निदेशक-मंडल में कई चर्चाएं हुई थी।’
 
मिस्त्री के कार्यालय द्वारा जारी इस बयान में कहा गया है, ‘मिस्त्री ने हमेशा कहा कि टाटा-समूह को कानून के अनुसार अपनी सभी प्रतिबद्धताओं का सम्मान करना चाहिए। यह रुख टाटा संस के निदेशक-मंडल के दृष्टिकोण पर आधारित है और एक के बाद एक निदेशक-मंडल की उन कई बैठकों के :दृष्टिकोण: के अनुरूप है जिसमें डोकोमो के मुद्दे पर चर्चा हुई थी।
 
रतन टाटा ने कंपनी के 6.6 लाख कर्मचारियों को संबोधित पत्र में कहा है कि उनके साथ एक बार फिर काम करने को लेकर उत्साहित हैं। उन्होंने कहा है कि आपकी कंपनी और टाटा समूह की उचित ढंग से देखभाल की जा रही है। आपके निदेशक मंडल के सदस्य और अधिकार प्राप्त नेतृत्व पहले की ही तरह पूरे जोश और नैतिक प्रतिबद्धताओं के साथ अपना काम कर रहे हैं।
 
उन्होंने कहा है कि हम टाटा की संस्कृति और मूल्यों को बनाए रखने के लिए संकल्पबद्ध हैं। क्योंकि हमने इसकी बड़े मेहनत से हिफाजत की है।  टाटा-डोकोमो मसले के संबंध में मिस्त्री का कहना है कि रतन टाटा को हर फैसले की पूरी जानकारी थी। 
 
गौरतलब है कि जापान की एनटीटी डोकोमो कंपनी का टाटा समूह के साथ शेयरों के भुगतान को लेकर मुकदमा चल रहा है। डोकोमो ने नवंबर 2009 में टाटा टेलीसर्विसेज में 26.5 प्रतिशत हिस्सेदारी ली थी। उस समय प्रति शेयर 117 रुपए के भाव पर सौदा 12,740 करोड़ रुपए का था। उस समय यह सहमति हुई थी कि पांच साल के अंदर कंपनी छोड़ने पर उसे अधिग्रहण की कीमत का कम से कम 50 प्रतिशत भुगतान वापस किया जाएगा।
 
डोकोमो ने अप्रैल 2014 में कंपनी से अलग होने का निर्णय किया और 58 रपए प्रति शेयर के हिसाब से 7,200 करोड़ रपए की मांग रखी। लेकिन टाटा समूह ने उसे रिजर्व बैंक के एक नियम का हवाला देते हुए 23.34 रपए प्रति शेयर की दर से भुगतान की पेशकश की। आरबीआई के नियम के अनुसार कोई विदेशी कंपनी यदि निवेश से बाहर निकलती है तो उसे शेयर पूंजी पर लाभ के आधार पर तय कीमत से अधिक का भुगतान नहीं किया जा सकता।
 
जापानी कंपनी अंतरराष्ट्रीय पंच निर्णय प्रक्रिया में चली गयी और उसके पक्ष में 1.17 अरब डालर की डिक्री हुई है। टाटा संस ने कहा है कि वह पंचनिर्णय के अनुपालन का विरोध करेगी क्यों कि वह भारत के स्थानीय कायदे कानूनों से बंधी है।
 
मिस्त्री की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि उनके नेतृत्व में टाटा समूह ने डोकोमो से अनुरोध किया कि वह इस माममे में उसके साथ मिल कर रिजर्व बैंक से अनुमति मांगे पर डोकोमो इस पर तैयार नहीं हुई। ‘बहरहाल टाटा समूह ने रिजर्व बैंक से मंजूरी के लिए आवेदन किया पर मंजूरी नहीं मिली तथा डोकोमो अंतरराष्ट्रीय पंचनिर्णय मंच में चली गई।
 
टाटा समूह ने ब्रिटेन के पंचनिर्णय अदालत के फैसले को चुनौती देने के बजाय रिजर्व बैंक से फैसले की राशि का भुगतान करने की अनुमति मांगी। आरबीआई ने उसे फिर इनकार कर दिया। डोकोमो ने भुगतान के निर्णय को लागू करवाने के लिए जब दिल्ली उच्च न्यायालय में दावा किया तो टाटा समूह ने 8,000 करोड़ रुपए अदालत में जमा करा दिए। बयान में दावा किया गया है कि इस पूरी प्रक्रिया में टाटा और न्यासी एनए सूनावाला को बराबर जानकारी दी जाती रही और ये दोनों मिस्त्री के साथ अलग अलग बैठकों में शामिल हुए थे। 
 
बयान के मुताबिक ‘वे इस मुकदमे में टाटा समूह की वकालत करने वाले वकील के साथ भी मिले थे जो दोराबजी ट्रस्ट के एक न्यासी भी थे। पत्र में दावा है कि हर बार रतन टाटा और सूनावाला ने टाटा समूह की कार्रवाई और वकील की सलाह का समर्थन किया था। मिस्त्री के कार्यालय से जारी बयान में कहा गया, ‘‘इन तथ्यों के प्रकाश में यह कहना कि मिस्त्री ने अपनी मर्जी से कारवाई की अथवा टाटा समूह के मूल्यों के खिलाफ काम किया या फिर रतन टाटा और सूनावाला की जानकारी के बिना कदम उठाया है गलत और शरारतपूर्ण है। (भाषा)