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Last Updated : मंगलवार, 29 मई 2018 (19:52 IST)

नीतीश ने बिहार के लिए विशेष राज्य का दर्जा मांगा, क्या एनडीए से होंगे अलग?

नीतीश ने बिहार के लिए विशेष राज्य का दर्जा मांगा, क्या एनडीए से होंगे अलग? - Nitish Kumar Bihar Chief Minister JDU Special State
नई दिल्ली। बिहार के मुख्‍यमंत्री और जदयू के मुखिया नीतीश कुमार ने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग को दोहराया है। उन्होंने ब्लॉग लिखकर यह भी बताया है कि आखिर बिहार को क्यों विशेष राज्य का दर्जा मिलना चाहिए।
 
नीतीश इस मुद्दे को ऐसे समय पर उठाया है, जब कुछ समय पूर्व ही आंध्रप्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग नामंजूर होने के बाद एनडीए से नाता तोड़ लिया था। ऐसे में अटकलें ऐसी भी हैं कि कोई आश्चर्य नहीं कि नीतीश भी इस मुद्दे पर मांग मंजूर नहीं होने की स्थिति में एनडीए से दूरी बना लें। नीतीश कुछ समय पहले नोटबंदी पर भी सवाल उठा चुके हैं। 
 
इसलिए नाराज हैं नीतीश : सूत्रों की मानें तो नीतीश की नाराजगी वित्त आयोग की अनुशंसा को लेकर है, जिसके चलते बिहार को मिलने वाली मदद में कटौती हो गई है। विशेष राज्य के दर्जे को लेकर नीतीश ने हमेशा इस मुद्दे पर कभी समझौता नहीं करने की बात कही है।
 
नीतीश ने ट्‍वीट कर वित्त आयोग से आग्रह किया है वह बिहार एवं पिछड़े राज्यों की विशेष आवश्यकताओं को एक अलग दृष्टिकोण से देखे। इस मुद्दे पर पटना से लेकर दिल्ली तक रैली कर चुके नीतीश के अगले कदम पर सबकी नजर है। हालांकि जानकार नीतीश के इस कदम को राजनीति दांव के रूप में भी देख रहे हैं।

नीतीश कुमार ने पिछड़ेपन के कारण प्रदेश को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी विशेष एवं विभेदित व्यवहार का हकदार बताते हुए कहा कि 15वें वित्त आयोग को बिहार जैसे पिछड़े राज्य को विकास के राष्ट्रीय स्तर पर लाने के लिए संसाधनों की कमी को चिह्नित कर विशेष सहायता देने की आवश्यकता है।

उन्होंने कहा कि उनकी बिहार के लिए विशेष राज्य के दर्जे की मांग इसी अवधारणा पर आधारित है। उन्होंने लगातार केंद्र सरकार से बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग की है। बिहार को यदि विशेष दर्जा मिलता है तो केन्द्र प्रायोजित योजनाओं में राज्यांश घटेगा जिससे राज्य को अतिरिक्त संसाधन उपलब्ध होंगे, बाह्य संसाधनों तक पहुंच बढ़ेगी, निजी निवेश को कर छूट एवं रियायतों के कारण प्रोत्साहन मिलेगा, रोजगार के अवसर पैदा होंगे और जीवन स्तर में सुधार होगा।
 
कुमार ने 15वें वित्त आयोग को बिहार से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपने विचार से अवगत कराते हुए कहा कि ऐतिहासिक रूप से पक्षपातपूर्ण नीतियों एवं विभिन्न सामाजिक और आर्थिक कारणों के चलते बिहार का विकास बाधित रहा है। वित्त आयोग एवं योजना आयोग के वित्तीय हस्तांतरण भी राज्यों के बीच संतुलन सुनिश्चित करने में असफल रहे हैं, जिससे क्षेत्रीय असंतुलन बढ़ा है और बिहार इसका सबसे बड़ा भुक्तभोगी रहा है। उन्होंने कहा कि बिहार एक स्थलरुद्ध राज्य है।
 
मुख्यमंत्री ने कहा कि पिछले 12-13 वर्षों में राज्य सरकार ने पिछड़ेपन को दूर करने तथा प्रदेश को विकास, समृद्धि एवं समरसता के पथ पर अग्रसर करने का अनवरत प्रयास किया है। इस अवधि में प्रतिकूल एवं भदेभावपूर्ण परिस्थितियों के बावजूद राज्य ने दहाई अंकों की विकास दर हासिल करने में सफलता पाई है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने दृढ़तापूवर्क न्याय के साथ विकास की बुनियाद रखी है। तेजी से प्रगति करने के बावजूद बिहार, प्रति व्यक्ति आय तथा शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक एवं आर्थिक सेवाओं पर प्रति व्यक्ति खर्च में अभी भी सबसे निचले पायदान पर है।
 
कुमार ने कहा कि बिहार के विभाजन के बाद प्रमुख उद्योगों के राज्य में नहीं रहने के कारण सरकारी एवं निजी निवेश पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। केन्द्र सरकार ने भी इस क्षेत्रीय विषमता को दूर करने के लिए राज्य को कोई विशेष मदद नहीं की है। इन कारणों से राज्य के विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है और आज राज्य की प्रतिव्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत से 68 प्रतिशत कम है। उन्होंने कहा कि ऐसे में वित्त आयोग को सबसे पहले एक वास्तविक समय-सीमा के तहत प्रति व्यक्ति आय की बढ़ती हुई विषमता को दूर करने के लिए ठोस सिफारिश करने की आवश्यकता है।
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