पिछले कुछ दिनों में भारत के सकल घरेलू उत्पाद या जीडीपी को लेकर कई आकलन एवं रिपोर्ट्स सामने आई हैं। भारत के केंद्रीय सांख्यिकी विभाग से लेकर वर्ल्ड बैंक तक, सभी यह अनुमान लगाने में जुटे हुए हैं कि आने वाले वित्तीय वर्षों में भारत की जीडीपी दर क्या होगी।
इन सभी रिपोर्ट्स में यह बात सामने आई है कि भारत की जीडीपी दर पिछले साल की तुलना में इस साल घटी है। पिछले वित्तीय वर्ष में जहां जीडीपी में वृद्धि दर 7.1% थी, वहीं इस बार इसके 6.5% से 6.7% तक रहने के अनुमान हैं। अब सवाल यह है कि जीडीपी दर में आए इस नकारात्मक बदलाव का आम लोगों की जिंदगी में कोई प्रभाव पड़ेगा या नहीं, और यदि पड़ेगा तो कितना?
आम लोगों से पहले, जीडीपी में वृद्धि की इन घटी हुई दरों से विपक्षी दलों को फायदा होने के अनुमान हैं। एक ओर जहां विपक्ष को मौजूदा सरकार के खिलाफ एक अहम मुद्दा मिल गया है, वहीं दूसरी ओर अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों से पहले मोदी खेमे के लिए थोड़ी सी परेशानी बढ़ी है।
अब यदि आपके और हमारे जैसे आम तबके के लोगों पर बात की जाए तो जीडीपी की घटती-बढ़ती दरों का आम जनजीवन पर प्रत्यक्ष रूप से कोई खास फर्क नहीं पड़ता है, परन्तु अप्रत्यक्ष रूप से जीडीपी की ये दर देश के हर नागरिक की जिंदगी को प्रभावित करती हैं।
भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार माने जाने वाले किसानों के लिए ये जीडीपी रिपोर्ट्स थोड़ी खराब साबित होती नजर आ रही है। पिछले वित्तीय वर्ष में एग्रीकल्चर सेक्टर की जीडीपी दर 4.9% थी, जिसके घटकर महज 2.1% रहने के अनुमान हैं।
यदि एग्रीकल्चर सेक्टर की वृद्धि दर घटी है तो इसके संभावित कारण क्या हैं? इसके जवाब में आपको कई लम्बी-लम्बी रिपोर्ट्स व आकलन पढ़ने मिल जाएंगे। आइए ऐसे ही कुछ संभावित कारणों पर हम भी नजर डाल लेते हैं-
1. खेती से जुड़े उत्पादों की पैदावार में कमी आने से इस सेक्टर की जीडीपी दर में कमी संभव है।
2. उम्मीद के अनुरूप पैदावार, लेकिन बाजार में कम दाम मिलने की वजह से भी यह दर घट सकती है।
3. अच्छे दाम मिलने की स्थिति में संभव है कि वह उत्पाद कम दामों पर आयात किया गया हो, जिससे घरेलू उत्पाद को नुकसान पहुंचा।
वजह चाहे तीनों में से कोई भी हो, लेकिन इससे एक बात स्पष्ट है। तीनों ही स्थितियों में किसानों को नुकसान उठाना पड़ेगा। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो घटती दर किसानों को प्रभावित कर रही है।
इसका दूसरा पहलू यह भी है कि किसानों को नुकसान होने की स्थिति में गांवों से पलायन बढ़ता है। किसान को मजबूरन मजदूरी के जरिए पेट पालना पड़ता है। यदि किसान मजदूरी करने लगे तो स्वाभाविक रूप से सब्जी मंडियों में दाम बढ़ेंगे। किसानों के मजदूर बनने की इस समस्या को सरकार द्वारा और भी गंभीरता से लेने की जरूरत है।
इसी तरह यदि निर्माण से जुड़े सेक्टर पर नजर डालें तो पिछले वित्तीय वर्ष में इस सेक्टर की वृद्धि दर 7.9% थी, जो घटकर 4.6% तक पहुंचती दिख रही है। एग्रीकल्चर की ही तरह इस सेक्टर में वृद्धि दर घटने की भी कई संभावित वजहें हो सकती हैं। हो सकता है कि निर्माण कम हुआ हो, या बाहरी बाजार के दखल से घरेलू उत्पादों को नुकसान हुआ हो।
वजह जो भी हो, एक बात स्पष्ट रूप से कही जा सकती है कि निर्माण में कमी का सीधा मतलब है बेरोजगारी में वृद्धि। अब भले ही आपको किसानों के नुकसान से फर्क न पड़े, लेकिन बेरोजगारी बढ़ने पर केवल आम लोग नहीं बल्कि पूरे समाज को नुकसान उठाना पड़ता है।
इस तरह यदि देखा जाए तो जीडीपी में वृद्धि की घटती दरों से आम लोगों को भी परेशान होने की जरूरत है, क्योंकि भले ही इसका तत्काल असर आपको नजर नहीं आ रहा हो लेकिन आने वाले समय में यह खतरे की घंटी साबित हो सकती है।
सरकार को परेशान करती सभी रिपोर्ट्स के बीच वर्ल्ड बैंक के द्वारा जारी की गई रिपोर्ट थोड़ी राहत का काम करती दिख रही है। वर्ल्ड बैंक के अनुसार इस साल भारत की जीडीपी दर 6.7% रहेगी, लेकिन अगले वित्तीय वर्ष में भारत 7.3% की दर हासिल करते हुए एक बार फिर सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में सामने आएगा।
हम तो यही प्रार्थना करते हैं कि वर्ल्ड बैंक की यह रिपोर्ट सच साबित हो जाए। शायद इसी जद्दोजहद में आज प्रधानमन्त्री मोदी भी आर्थिक नीति का विश्लेषण करने कुछ प्रमुख अर्थशास्त्रियों के साथ बैठक भी करने वाले हैं। उम्मीद है कि इस बैठक से आर्थिक नीति को नुकसान नहीं, बल्कि फायदा पहुंचे।