सुप्रीम कोर्ट सहित हाईकोर्ट ने भले ही कई बार चेतावनी देकर स्पष्ट एवं तीखे तेवर अपनाते हुए स्कूल वाहनों में बच्चों के आवागमन को सुरक्षित करने का आदेश दिया हो, लेकिन यह आदेश स्कूल के नवीन सत्र प्रारंभ होने के एक दो महीने के अंदर ही ठण्डे बस्ते में चला जाता है।
ऐसा लगता है कि प्रशासनिक ढांचे के अधिकारियों को बच्चों की सुरक्षा व्यवस्था से कोई मतलब ही नहीं रह गया है।
जहां स्कूल वाहनों समेत समस्त वाहनों में फर्स्ट एड किट, अग्निशामक यंत्र, आपातकालीन खिड़की की व्यवस्था होनी चाहिए वहीं इन स्कूल वाहनों में अनिवार्य तौर पर स्पीड गवर्नर, सीसीटीवी सहित स्पष्ट शब्दों में स्कूल का नाम पता, हेल्पलाइन नंबर, नियमित जांच सहित ड्राइवर पांच वर्ष से अधिक वाहन चालन में कुशल तथा साथ ही एक अन्य परिचालक भी होना चाहिए।
किन्तु सारे के सारे मापदंड स्कूल संचालकों के द्वारा धज्जियां उड़ाने और प्रशासनिक उपेक्षा के लिए ही बने हैं जिससे किसी का कोई वास्ता नहीं है।
निजी स्कूल संचालकों की मनमानी के चलते बच्चों की जान खतरे में है। आए दिनों स्कूल वाहन किसी न किसी दुर्घटना का शिकार होते रहते हैं किन्तु दुर्भाग्य देखिए इस देश एवं समाज का कि बच्चों की जान की परवाह अब किसी को नहीं रह गई है।
निजी स्कूलों के स्कूल वाहन धड़ल्ले से बेलगाम रफ्तार के साथ दौड़ रहे हैं, लेकिन यह वाहन संचालन योग्य हैं या नहीं इसकी कोई भी जांच नहीं करने वाला है।
ग्रामीण, कस्बाई एवं शहरी इलाकों में बेधड़क आटो, बस, वैन, जीप जो कंडम हो चुके थे उनमें भी बिना परमिट, फिटनेस सर्टिफिकेट के स्कूल संचालक चला रहे हैं।
इन वाहनों में ऐसी कोई जगह नहीं बचती जहां बच्चों को चारे-भूसे या अन्य सामान की तरह ठूंसकर न ले जाया होता हो। लेकिन यहां तो ‘अंधेर नगरी चौपट राजा’ वाली हालत है स्कूल संचालकों को तो व्यवसाय से मतलब है।
लेकिन जिनके जिम्मे व्यवस्था है वे बेसुध होकर बेफिक्री के साथ अपने ऑफिस की कुर्सियां पान चबाते हुए तोड़ रहे हैं और होटलों की टेबलों में दांव पेंच आजमाते हुए ठसक के साथ रौब गांठ रहे हैं।
पिछले वर्ष मप्र के बिरसिंहपुर में लकी कॉन्वेंट स्कूल के बस हादसे में आधे दर्जन छात्रों की मौत हो गई थी। इसके बाद प्रदेशभर में इस मामले की गूंज सुनाई दी किन्तु जैसे-जैसे समय बीतता गया प्रशासन अपनी मुस्तैदी दिखाने की बजाए चिरनिद्रा में सो गया।
भले ही उस मामले में स्कूल की मान्यता पिछले दिनों नवीन सत्र २०२० से समाप्त कर दी गई हो, लेकिन बच्चों की मौत के दोषियों को सजा आज तक नहीं हो पाई, इससे बड़े शर्म की बात और क्या होगी?
स्कूल वाहनों की बेलगाम रफ्तार के चलते आए दिन कई स्कूल वाहन दुर्घटना ग्रस्त होते रहे हैं तथा इसकी गति 2020 में भी उसी तरह रही आई।
पिछले वर्ष से अभी तक लगभग कई बार स्कूल वाहनों की अनियंत्रित गति एवं लापरवाही के कारण प्रदेशभर में ऐसे हादसे होते रहे आए।
भगवान की कृपा से इन हादसों में बच्चों की जान बच गई लेकिन यह सिलसिला आखिर थम क्यों नहीं रहा?
प्रशासन किस लिए है? कब तक पर्याप्त स्टाफ न होने का बहाना बनाया जाएगा?
गौर करिए यह वही प्रशासन है जो इतनी तत्परता के साथ कार्य करता है कि जहां से नोटों की बरसात होती है, वहां इन अफसरों को आधी रात को भी जांच करने का समय मिल जाता है। लेकिन बच्चों की सुरक्षा के लिए किसी को भी फुर्सत नहीं है।
प्रशासन खामोश! है और उसे कोई मतलब नहीं है कि बच्चे जिएं या मरें! क्यों यह तो एक मशीनरी है जिसमें संवेदनाओं का कोई अस्तित्व नहीं है। जहां से फायदा नहीं दिखेगा वहां काहे को कोई मशक्कत करेगा?
आखिर क्या कर रहा है प्रशासन?
परिवहन विभाग के जिम्मे क्या वाहन चेकिंग के नाम पर वसूली और भारी वाहनों की जांच ही रह गई है?
बच्चों की चिंता किसे है?
देश के भावी कर्णधारों की सुरक्षा और उनके जीवन मूल्यों के संरक्षण एवं संवर्द्धन के लिए बच्चों को सुरक्षित करने में कब अपने उत्तरदायित्वों को निभाएगा।
आखिर यह कब तक चलेगा? स्कूल शिक्षाधिकारी, परिवहन अधिकारी एवं जिले के आलाकमान कब अपनी खामोशी तोड़ेंगे और स्कूल संचालकों की भर्रेशाही पर लगाम कसेंगे?
अगर इन मामलों पर संजीदगी नहीं दिखाई जाती तो निजी स्कूल संचालकों की मनमानी के चलते बच्चों की जान खतरे में ही रही आएगी।
बच्चों के अभिवावक भी स्कूलों की समस्त व्यवस्थाओं की जानकारी लें और यह देखें कि शिक्षा के नाम पर चल रहे व्यवसाय में हमारे बच्चे सुरक्षित हाथों में हैं या नहीं?
अभिवावकों को स्कूल संचालकों को सख्त लहजे में कहना होगा कि हमारी गाढ़ी कमाई मोटी फीस के तौर पर इसीलिए देते हैं कि बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के साथ सुरक्षित आवागमन भी उपलब्ध करवाएं।
स्कूल संचालकों की मनमानी पर अंकुश लगाना आवश्यक ही नहीं बल्कि अनिवार्य हो चुका है, क्योंकि कब तक भगवान भरोसे बैठे रहेंगे?
हमें जागना होगा और प्रशासन को अपनी कमर कसनी ही होगी जिससे हमारे राष्ट्र का भविष्य उज्ज्वल हो सके।
राजनैतिक हुक्मरानों सहित शासन एवं प्रशासन तंत्र को तय करना होगा कि जांच और कार्रवाई का राग अलापने और राजनीतिक खेल खेलने की बजाए त्वरित कार्यवाही करें!
इसके साथ ही संचालित हो रहे समस्त निजी स्कूलों की वाहन व्यवस्था सहित सम्पूर्ण शैक्षणिक गतिविधियों की जांच तत्परता से करें और दोषियों को दण्डित करने की हिम्मत दिखाएं!!