- भूपेंद्र गुप्ता 'अगम'
देश की दुर्गा इंदिरा गांधी को आज दुनिया याद कर रही है इसलिए नहीं कि वे किसी देश की प्रधानमंत्री थीं बल्कि इसलिए कि दुनिया में उन्होंने स्त्री शक्ति की दक्षता और प्रशासनिक क्षमताओं को वैश्विक स्तर पर स्थापित किया। पुरुषों द्वारा शासित दुनिया में वे प्रथम पंक्ति में बैठती हैं जिसे कालांतर में गोल्डा मायर, मार्गरेट थ्रेचर, आदि ने भी सुशोभित किया। वे भारत की एक ऐसी गौरवमयी बेटी थीं जिसने देश के इतिहास को तो बदला ही भूगोल भी बदल दिया समता पूर्ण नीतियों से संसाधनों को गरीब नागरिकों की पहुंच तक भेजा और राजा तथा रंक को एक ही सफ पर बैठाकर विषमता के मकड़जाल को काट दिया।
इंदिरा गांधी के लोकतांत्रिक जीवन की शुरुआत ही तानों, व्यंग्यवाणों के बीच हुई थी, जब उनके नेतृत्व का प्रश्न आया, तब मोरारजी जैसे नेताओं ने भी उनके विधवा होने के कारण अपशकुनी होने के छिछले व्यंग्य किए थे, किन्तु 160 से अधिक मतों से जीतकर उन्होंने इन चौधरियों को धूल चटा दी थी। वे लोकतांत्रिक तरीके से जीतकर कांग्रेस के शीर्ष पर पहुंची थीं।
जब उन्होंने देश संभाला तब भारत अन्न के अभाव से जूझ रहा था, अंतरराष्ट्रीय शक्तियां सहयोग देने की बजाय दबाव बना रही थीं, देश के अंदर भी यह कहा जा रहा था कि भारत बिना बाहरी सहायता के भूखा मर जाएगा, किन्तु वे हार मानने वाली कहां थीं। आधुनिक कृषि वैज्ञानिक प्रोत्साहन और संसाधनों की प्राथमिकता से उन्होंने हरित क्रांति कर डाली और 1972 आते-आते देश में 1967 की अभावग्रस्तता के मुकाबले तीन गुना खाद्यान्न उत्पादन कर विश्व को चकित कर दिया! भारत अब खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर हो गया था।
तब उन्होंने बैंकिंग व्यवस्था से देश के संसाधनों को बृहद समाज तक भेजने का निर्णय किया, बैंकों के राष्ट्रीयकरण से अभिजात्य हाथों में संकुचित बैंकिंग 'मास बैंकिंग' में तब्दील हो गई, जो आज सोशल बैंकिंग से चलकर कल्याणकारी वेलफेयर बैंकिंग तक पहुंच गई है। गरीबों की संपदा गरीबों के उत्थान में काम आने लगी, बल्कि आज देश नोटबंदी जैसे हादसों को इसीलिए झेल पाया, क्योंकि देश में राष्ट्रीयकरण के कारण डेढ़ लाख बैंकों की शाखाएं बनीं और लोग लाइन में लग सके। अगर इतनी शाखाएं न होतीं तो 100 नहीं हजारों लोगों की जान जाती।
वे जानतीं थीं खेती की आय से किसान की जिंदगी में खुशहाली लाना कठिन कार्य है। इसलिए दुग्ध क्रांति ऑपरेशन फ्लड टू उन्होंने शुरू किया। नेशनल डेरी डेवलपमेंट बोर्ड की स्थापना और आनंद में अखिल भारतीय ग्रामीण प्रबंधन संस्थान की स्थापना की। इस दूरगामी लक्ष्य को लेकर की गई पहल से निकले छात्रों ने दुग्ध क्रांति के साथ-साथ सोया क्रांति में हिस्सेदारी की। भारत की खाद्य तेलों के आयात पर निर्भरता कम हुई।
अंतरराष्ट्रीय ताकतों के असहयोग के बावजूद उन्होंने भारत के तेल क्षेत्रों की खोज को आगे बढ़ाया और असम तथा बाम्बे हाई जैसे तेल क्षेत्रों को उत्पादक बनाया, कृष्णा कावेरी बेसिन पर शोध हुआ और इसीलिए आज देश अपनी जरूरतों का लगभग 25% खनिज तेल का उत्पादन करता है। हमारे गैस के निरंतर भंडारों ने घरेलू इंधन की जरूरतों की आपूर्ति की है जिससे हम जंगलों की ईंधन के लिए कटाई को नियंत्रित कर सके हैं।
देश में आज जिस पूर्व-सक्रिय (एक्ट ईस्ट) नीति की मार्केटिंग की जाती है, उसे इंदिराजी ने 1969 में ही नॉर्थ ईस्ट कौंसिल की स्थापना करके शुरू कर दिया था, फिर उन्होंने इन राज्यों को भारत के पक्ष में प्रेरित किया। वहां की स्वायत्तता की अभीप्सा को समझा और अरुणाचल को पूर्ण राज्य का दर्जा देकर तथा सिक्किम के भारत में विलय की घोषणा कर चीन का एक रास्ता बंद कर दिया। आगे चलकर भूटान से संधि, नागालैंड, मिजोरम, मणिपुर को व्यवस्थित कर उन्होंने पूरे उत्तर पूर्व को अपने जीवनकाल में ही सुरक्षित कर दिया था। चीन की ओर से सीमाओं को ठीक करने के बाद उन्होंने पाकिस्तान की सीमाओं पर भी उतनी ही तेजी से काम किया।
जब पाकिस्तान में लोकतांत्रिक तरीके से जीते हुए शेख मुजीबुर्रहमान को पाकिस्तानी पंजाब के नेताओं ने सत्ता हस्तांतरित करने से इनकार कर बंगालियों का आम नरसंहार किया तब उन्होंने साहसपूर्वक न केवल मुजीबुर्रहमान को सहायता दी बल्कि मुक्तिवाहिनी को सैन्य प्रशिक्षण दिया और अंततः पाकिस्तान के 90 हजार सैनिकों से हथियार डलवाकर दुनिया के सबसे बड़े सैन्य आत्मसमर्पण का रिकॉर्ड बनाया। बांग्लादेश को एक अलग राष्ट्र के रूप में मान्यता देकर अपने कूटनीतिक कौशल का लोहा मनवाया। वे न तो अमेरिका के सातवें बेड़े से डरीं और न ही घेराबंदी से घबराईं। उनके इस साहस ने ही भारत को तीसरी दुनिया का सरताज बना दिया।
इंदिरा का युग विश्व की दो ध्रुवीय राजनीति को तीसरी दुनिया को स्वीकार करने को विवश करने का युग बना और भारत 100 से अधिक देशों का नेतृत्व कर इस तीसरी दुनिया का सर्व स्वीकार्य नेता बना। यह वही भारत था जिसे जब इंदिरा ने संभाला तब कहा जा रहा था कि अगर किसी दूसरे देश ने हमें खाद्यान्न नहीं दिया तो भारत भूखा मर जाएगा। इंदिरा गांधी ने ये सारे कारनामे मात्र 8 सालों में ही करके दुनिया को चमत्कृत कर दिया था। यही कारण था कि अटल बिहारी वाजपेयी जैसे सजग नेता ने उन्हें दुर्गा के रूप में स्वीकारा और इंदिराजी ने भी उनकी मेधा का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उपयोग किया।
परमाणु शक्ति संपन्नता, सैन्य आत्मनिर्भरता, सैन्य अधुनिकीकरण, उपग्रह विकास, देशी मिसाइल और टेंकों का निर्माण, विमानन, ऊर्जा आयोग के क्षेत्रों में तीव्र गति से काम कर उन्होंने भारत को एक सैन्य शक्ति संपन्न राष्ट्र बनाया। वे देश की भावी जरूरतों के प्रति पल-पल चिंतित रहतीं थी और इसीलिए वे सेम पित्रोदा जैसी प्रतिभाओं को भारत ला सकीं, जिन्होंने भारत के संचार दृश्य को ही बदल दिया और भारत स्ट्राउजर तकनीकी से निकलकर डिजिटल टेलीफोनी तक जा सका, दुनिया की रुचि भारत की सी-डेक टेक्नोलॉजी में जागी, उसके बाद तो सुपर कंप्यूटर गणक से लेकर तकनीकी मिशन तक उन्होंने विश्व के वैज्ञानिक जगत में भारत और उसके वैज्ञानिकों का झंडा फहरा दिया।
इंदिरा गांधी जैसा नेतृत्व सदियों में मिलता है जो मातृभूमि के लिए पल-पल जीता है और मातृभूमि पर ही बलिदान हो जाता है। ऐसे ही लोगों के बस में यह होता है कि वे कह सकें कि अगर मैं कल न रहूं तो भी मेरे खून की एक-एक बूंद देश के काम आएगी और भारत को अनुप्राणित करेगी। वे मिट्टी में एक चेतना बनकर समां जाती हैं और विकास बनकर पुनः-पुनः अंकुरित होती हैं। इंदिराजी जैसी युगांतकारी चेतना को देश अनंतकाल तक याद करेगा। शत-शत नमन।
(लेखक मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के विचार विभाग के अध्यक्ष हैं)