मंगलवार, 22 अक्टूबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. मेरा ब्लॉग
  4. india-china

अपने एजेंडे के लिए ‘ड्रेगन’ से प्रेम देश के साथ ‘राष्‍ट्रद्रोह’

अपने एजेंडे के लिए ‘ड्रेगन’ से प्रेम देश के साथ ‘राष्‍ट्रद्रोह’ - india-china
चीन की साम्राज्यवादी कुटिल प्रवृत्ति एवं विश्वासघात दूसरा, पर्याय ड्रैगन इस समय चोरी-छिपे घात कर रहा है, उस पर अपने को ताकतवर समझने की खुमारी इस कदर छाई है कि वह आए दिनों भारतीय क्षेत्र में घुस आता है लेकिन हमारे सैन्य बल उसके नापाक मंसूबों को नाकाम करने के लिए अपने मोर्चे पर बड़े ही दमखम के साथ डटे हुए हैं तथा उसे हर बार मुंह की खानी पड़ती है।

चाहे वह 2017 में डोकलाम से खदेड़कर भगाना हो या कि वर्तमान की परिस्थिति हो हमारे भारतीय सैनिक अपने प्राण हथेली पर रखकर चीनी सेना के हौसलों को बुरी तरह पस्त ही नहीं कर रहे हैं बल्कि उसे छठी का दूध भी याद दिलवा रहे हैं।

भले ही गलवान घाटी के संघर्ष में हमारे बीसों वीर जवान  चीनी सेना से झड़प में आहुति बन गए लेकिन उन्होंने अपने अदम्य साहस के साथ माँ भारती के भाल को किसी भी परिस्थिति में झुकने नहीं दिया तथा चीन के चालीस से ज्यादा सैनिकों का संहार कर यह बतला दिया है कि वे किसी भी हाल में अपने राष्ट्र की जमीन पर दुश्मन को आने नहीं देंगे। अगर किसी ने ऐसी कायरता दिखलाई तो उसे मुंह तोड़ जवाब देने के लिए सभी तरह से देश सक्षम व समर्थ है। राष्ट्रसपूतों के बलिदान से जहां समूचा देश दु:खी है, वहीं गौरवान्वित भी हैं।

क्योंकि जवान सेना में अपने इसी शौर्य के चलते गए थे, उनका जज्बा, जुनून और वास्तव में अपने प्राणों को राष्ट्रयज्ञ की बलिवेदी में आहुति करने का भाव ही उनके पराक्रम की निशानी है।उनका यह बलिदान कभी भी व्यर्थ नहीं जाएगा। समूचे राष्ट्र को उन पर गर्व है तथा उनका ऋण हम सभी पर है। हमारे आपके लिए हमारा घर-परिवार पहली प्राथमिकता में भले रहता हो लेकिन एक सैनिक के लिए राष्ट्र प्रथम होता है, न कि उसके लिए परिवार। क्योंकि समूचा राष्ट्र ही उसका परिवार होता है। हमारे राष्ट्र के वीरों ने सर्वदा अपने अभूतपूर्व पराक्रम से मां भारती के अमर ध्वज को अनंत गगन में फहराया है उनके शौर्य पर समूचे देश को भरोसा है तथा वे किसी भी परिस्थिति से निपटने के लिए सदैव तत्पर एवं तैयार हैं।

किन्तु सबसे पीड़ादायक जो है वह यह है कि देश के अन्दर स्वयं को तथाकथित बुध्दिजीवी और मूर्धन्य मानने वाले बौध्दिक नक्सली (पत्रकार, लेखक, सिनेमाई दलाल इत्यादि) एवं राजनैतिक पार्टियों के वे लोग जो सत्ताधारी दल का विरोध करने के लिए कभी पाकिस्तान तो कभी चीन की मुखालफत करने लगते हैं। इनकी कायराना हरकतों से ऐसा लगता है जैसे कि पाकिस्तान और चीन के प्रवक्ता बैठे हों।

इनकी गैंग भारत -चीन की युध्द जैसी परिस्थिति में भी वर्तमान सरकार और उसके मुखिया अर्थात् प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विरोध करने के लिए इस स्तर पर पहुंच आए हैं कि- उन्हें सरकार के विरोध और देश तथा सेना के विरुद्ध होने में कोई अंतर नहीं मालूम हो रहा है। देश के आन्तरिक मुद्दों पर सरकार को घेरना अच्छी बात है लेकिन जब कभी भी बात सैन्य एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्र की एकता, अखण्डता,सम्प्रभुता, अस्मिता एवं आत्मगौरव की हो उस समय ऐसी निकृष्टता दिखलाना राष्ट्रद्रोह कहलाता है।

इन दिनों लद्दाख में लगभग तीन-चार दिन से चल रहे घटनाक्रम के साथ ही राजनैतिक टिप्पणियां और सोशल मीडिया सहित विभिन्न माध्यमों के माध्यम से देश के अन्दर एक खास तबका अपने सारे लाव-लश्कर के साथ एक्टिव मोड में आ चुका है जो कि इन हालातों में भी वह सरकार और सेना को घेरने के लिए एड़ी-चोटी लगाने पर अमादा है। बन्धु! दुर्भाग्य तो देखिए कि इन लोगों की इतनी हिमाकत हो चुकी है कि वे ऐसी परिस्थिति को भी सरकार को घेरने का एक अच्छा एजेंडा और मुद्दा मानते हैं जिसको भुनाने के लिए वे किसी भी स्तर तक नीचे गिर सकते हैं। सत्ता से मतभेद होने की स्थिति एवं नीतियों से सहमति-असहमति एक अलग मामला है लेकिन यहां तो गजब यह हो रहा है कि मानों ऐसा लग रहा है जैसे भारत की सेना चीन के खिलाफ नहीं बल्कि इनके खिलाफ मोर्चे में आ डटी है। आखिर ये कौन से लोग हैं?

जिन्हें भारतीय जवानों के बलिदान में राष्ट्र की हानि नहीं बल्कि चीन के प्रति सहानुभूति और उसका राष्ट्र से श्रेष्ठतर आंकलन कर सरकार को नीचा दिखलाने की सनक में अपनी जीत दिख रही है। समझ में यह नहीं आ रहा है कि ऐसा करके ये लोग हासिल क्या करना चाहते हैं? जब देश की सरकार और सेना के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा होनें एवं उसकी हौसलाअफजाई का वक्त है तब ऐसे वक्त में इनके द्वारा की जाने वाली टिप्पणियां और वक्तव्य क्या यह राष्ट्रघाती कार्य नहीं है? सरकार से लाख असहमति हो सकती है लेकिन सरकार के विरोध में इतने भी अंधे भी नहीं होना चाहिये कि राष्ट्रद्रोह और दुश्मनपरस्ती भी आपको अपना एजेंडा चलाने एवं सरकार विरोध का एक उपाय और अवसर समझ में आने लगे।

हमने स्वातंत्र्योत्तर काल से अपने राष्ट्र का बहुत बड़ा भाग गवांया है जिसमें पीओके और अक्साई चि‍न हमारे अधिकार क्षेत्र से बाहर चला गया तथा जिस एलएसी पर यह स्थिति उत्पन्न हो रही है वह हमारे साथ चीन के विश्वासघात और "हिन्दी-चीनी भाई-भाई" वाले नारे की विफलता एवं कम्युनिस्ट नीतियों के प्रति नेहरू की सहानुभूति एवं झुकाव के चलते उत्पन्न हुई नेहरू की अदूरदर्शी सोच एवं गच्चे खाने वाले कच्चे निर्णय का उदाहरण है। यदि नेहरू ने अपना हिन्दी-चीनी भाई-भाई का वह नारा गढ़कर, अक्साई चिन क्षेत्र को गैर उपजाऊ एवं गैर जरूरी समझने की भूल न की होती तो शायद ही ऐसी परिस्थिति निर्मित न होती। खैर यह इतिहास है जो किसी को माफ नहीं करेगा भले ही उनके चाहने वालों को इससे तिलमिलाहट लगने लगे।

लेकिन उस समय सत्ता की चाटुकारिता में मदान्ध कम्युनिस्टों ने चीन के प्रति ही सदाशयता दिखलाई थी तथा वे चीन को आक्रमणकारी मानने से भी गुरेज करते रहे। वहीं अब उनकी लॉबी एवं सत्ता से बेदखल राजनैतिक पार्टियों की सारी टीमें इस कदर उतावली हो चुकी हैं जैसे उन्हें शिकार करने का कोई सुनहर अवसर मिल गया है।उनकी सारी टीमें अब एक्टिवेट मोड पर आ चुकी हैं तथा वह गलवान घाटी में झड़प की सूचना मिलने के साथ ही चीन के पक्ष और भारतीयों को हताश करने के लिए अपने नैरेटिव सेट करने पर लग गए हैं। बेशर्मियत की एक हद होती है लेकिन इनके अगर शर्म-हया बची होगी तब न अपनी इन हरकतों से बाज आएंगे।

इनकी टिप्पणियों और कथनों से ऐसा लग रहा है कि मानों चीन उनके एजेंडे को चालू करने का अवसर दे रहा है, जबकि उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि यदि भारत के बीस सैनिक बलिदान हुए हैं तो भारत ने बदले में चालीस की संख्या से ज्यादा चीनी सैनिकों को परलोक का रास्ता दिखलाया है।

देश में जब कभी भी चीन के खिलाफ कोई बात होती है चाहे आम जन समूह चीनी सामानों के बहिष्‍कार की बात करता हो या कि सरकार उस दिशा में कुछ करने की इच्छाशक्ति दिखलाती हो। तब उस समय ये ऐसे फड़फड़ाने क्यों लगते हैं? जैसे कि इनके प्राण-पखेरू ही उड़े जा रहे हों। इनकी छटपटाहट और व्याकुलता में चीन का पक्ष लेना क्या दिखलाता है? ये खाते देश का हैं, रहते देश में हैं लेकिन चीन प्रेम का इनका रहस्य क्या है? कौन लोग हैं ये जो चीन की विजय की ख्वाहिश रखते हैं? यह मत भूलिए कि यह 1962 का नहीं अपितु सन् 2020 का भारत है जो राजनीतिक-सामरिक-कूटनीतिक तीनों स्तरों पर मजबूत ही नहीं बल्कि बेहद सशक्त है।

राजनैतिक साहस और विदेश नीति से लेकर तीनों सेनाओं के मध्य सामंजस्य के साथ ही युध्दक सामग्रियों में भारत को चाइनीज प्रेम के चलते कमतर आंकने का काम न करिए। क्योंकि जिस तरह से चीन से समूचा विश्व खिसिया बैठा हुआ है, वह बस किसी भी मौके की तलाश में है कि ऐसा कोई मौका आए और चीन की गर्दन को मरोड़ दिया जाए और बात जब ऊपर से भारत की हो तो यह और ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है। क्योंकि यदि समूचे विश्व में आशा भरी निगाहों से किसी की ओर देखा जा रहा है तो वह भारत ही है। हम साम्राज्यवाद की कवायद नहीं करते लेकिन यदि कोई भी हमारी ओर आंखें तरेरकर देखने का दुस्साहस करेगा तो ध्यान रखिए कि सेना और सरकार किसी की ओर मदद के लिए ताके बैठने की बजाय स्वयं किसी भी स्थिति का सामना करने और मुंहतोड़ जवाब देने के लिए सशक्त और सक्षम है।

इसलिए इस भ्रम में न रहिए कि आपके एजेंडा चलाने से किसी भी प्रकार का कोई भी फर्क पड़ने वाला है क्योंकि सरकार और सेना अब न तो चुप बैठने वाले हैं न ही किसी भी प्रकार की कार्रवाई को करने से चूकेंगे। आपका यह चीन प्रेम बेशर्मी की अंतिम पराकाष्ठा ही नहीं बल्कि राष्ट्रद्रोह है। वर्तमान में आपके पास भी मौका है कि अपनी इस प्रकार की कायराना राष्ट्रघाती हरकतों को जितना जल्दी संभव हो बन्द करिए। अन्यथा गद्दारों का जो हाल होता है वह किसी से छिपा नहीं है।

(नोट: इस लेख में व्‍यक्‍त व‍िचार लेखक की न‍िजी अभिव्‍यक्‍त‍ि है। वेबदुन‍िया का इससे कोई संबंध नहीं है।)