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Hyderabad case : सड़कों पर उतरने के लिए वीभत्स की तलाश है हमें

Hyderabad case : सड़कों पर उतरने के लिए वीभत्स की तलाश है हमें - Hyderabad Bangalore High way case
निर्भया से प्रियंका के बीच हमारे आसपास बीसियों और देश में हज़ारों बलात्कार हुए हैं। निर्भया, प्रियंका और मंदसौर तीनों घटनाओं में एक समानता यह थी कि बेहद वहशियाना तरीके से पीड़िता के साथ दरिंदगी की हद पार कर दी गई। लेकिन एक मंदसौर की घटना को छोड़ दें तो अन्य स्थानीय मामलों में हमारा खून कभी उबाल नहीं खाया।
 
मंदसौर के अलावा अन्य बलात्कारों को हमने चर्चा योग्य भी नहीं समझा। साफ़ है कि हमने बलात्कार को श्रेणियों में बांट दिया है - एक सामान्य बलात्कार दूसरा वीभत्स या ब्रूटल; एक हाइप्ड रेप तो दूसरा नॉन-हाइप्ड रेप।
 
सामान्य बलात्कारों की खबरें आने पर हम उन पर ध्यान नहीं देते, चर्चा भी नहीं करते और पीड़िता को न्याय दिलाने की मांग भी नहीं करते। लेकिन जब पीड़िता के साथ निर्भया जैसी हैवानियत की गई हो, रेप के बाद प्रियंका की तरह जला दिया गया हो या पीड़ित मंदसौर की तरह बच्ची हो तब हम उसके लिए न्याय की आवाज़ बुलंद करने निकलते हैं, जैसे हमने बलात्कार को तो स्वीकृति दे दी हो, बस बलात्कार के वहशियाना तरीके से ऐतराज़ हो। 
 
मुझे नहीं लगता कि जब तक बलात्कार के प्रकारों में हम भेद करते रहेंगे, तब तक बलात्कार के ख़िलाफ़ कोई प्रभावी हल खोज पाएंगे। 
 
हम सड़कों पर आने के लिए वीभत्स की तलाश में हैं। हमने अपनी संवेदनाशीलता के स्तर को इतना बढ़ा लिया है कि आमतौर पर यदि पीड़िता स्वयं बलात्कार की रिपोर्ट लिखाने योग्य हो तो उसके लिए न्याय की मांग हम नहीं करते, यह हम उसी पर छोड़ देते हैं। 
 
दूसरा पहलू हाइप्ड और नॉन-हाइप्ड का है। 
 
जिस मामले को ज़्यादा मीडिया कवरेज मिला, जिस मामले पर अधिकांश लोग चर्चा कर रहे हैं तब सामाजिक संगठनों के तौर पर हम उस अन्याय की ही बात करते हैं। किसी व्यक्तिगत लड़ाई को या अन्याय के विरुद्ध व्यक्तिगत संघर्ष को तब तक लोगों और समाज का साथ नहीं मिलता जब तक कि चर्चित ना हो।
 
रेप पीड़िताओं के मामले में यह दोहरा आचरण हमारे दोगलेपन को उजागर करता है। यह बताता है कि हम नि:स्वार्थ भाव से पीड़िता के लिए न्याय की मांग करने के लिए नहीं खड़े हुए हैं, बल्कि हम हमारी बर्दाश्त करने की सीमा पार होने के बाद मात्र अपनी भड़ास और आक्रोश व्यक्त करने के लिए खड़े हुए हैं। ऐसे में क्या यह उन पीड़िताओं के साथ अन्याय नहीं, जो अपने साथ हुई ज्यादती के विरुद्ध बलात्कारी को सजा दिलाने का संघर्ष अकेले तय करती हैं?
 
बलात्कार की खबरों पर हमारी संवेदनशीलता बढ़ाने की आवश्यकता है। बलात्कार अपने आप में ही किसी प्राणी के खिलाफ एक क्रूर अपराध है, हमें इसी के ख़िलाफ़ खड़ा होना चाहिए, बलात्कार के विरुद्ध आवाज़ उठाने के लिए बलात्कार पीड़िताओं के मरने, जलने और नाबालिग होने की शर्त ना रखें तो बेहतर होगा।