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Written By राजेश ज्वेल

मिस्टर ट्रंप, पत्रकारिता के नियम हमारे हैं, आपके नहीं

मिस्टर ट्रंप, पत्रकारिता के नियम हमारे हैं, आपके नहीं - Donald Trump, American president oath ceremony, journalist, journalism
अमेरिका फर्स्ट क्यों है? क्यों वह दुनिया का चौधरी कहलाता है और आर्थिक संपन्नता के  मामले में भी अमेरिका तमाम मंदी के बावजूद सर्वोच्च क्यों बना हुआ है? इन सवालों के जवाब  ट्रंपकाल की शुरुआत में ही बड़ी आसानी से खोजे जा सकते हैं।
लोकतंत्र की खूबसूरती दमदार विपक्ष के रूप में ही देखने को मिलती है और अमेरिकी समाज ने  बता दिया कि वह तंगदिल नहीं, बल्कि खुली सोच का हिमायती है। अमेरिका के 45वें राष्ट्रपति  बने डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी शपथ में 'मेक इन अमेरिका' के नारे के साथ 'बाय अमेरिकन-हायर अमेरिकन' की बात कही है।
 
उनके शपथ ग्रहण समारोह का बहिष्कार जहां 60 डेमोक्रेटिक सांसदों ने किया, तो जाने-माने हॉलीवुड अभिनेता रॉबर्ट डी नीरो ने भी खुलेआम खिलाफत की। जनता ने भी सड़कों पर उतरकर  ट्रंप का विरोध किया। मगर देश में किसी ने भी इन विरोधियों को देशद्रोही करार नहीं दिया।  पक्ष और विपक्ष एकसाथ नजर आए। न किसी तरह की झड़प, न कोई विवाद और न ही  आमने-सामने की कटुता नजर आई। 
 
भारत में किसी फिल्म कलाकार या मीडिया द्वारा भी अगर कोई बात कह दी जाती है तो उसको लेकर बखेड़ा खड़ा हो जाता है और 'पाकिस्तान चले जाने' की धमकी के साथ फिल्मों के बहिष्कार का सिलसिला शुरू हो जाता है, मगर ट्रंप की खिलाफत करने वाले रॉबर्ट डी नीरो के लिए इस तरह की कोई बात अमेरिका में सुनाई नहीं दी। यहां तक कि वहां के जाने-माने  मीडिया समूह ने भी डोनाल्ड ट्रंप के शपथ भाषण की आलोचना करने से कोई परहेज नहीं  किया। 'न्यूयॉर्क पोस्ट' ने तो रंगीनमिजाजी के लिए चर्चित ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद देश  में एक नए माफिया युग की शुरुआत कहा, तो 'द न्यूयॉर्क टाइम्स' ने लिखा कि उनके ऐसे भाषण की उम्मीद किसी को नहीं थी। ऐसा लगा मानो वे अमेरिका की नहीं, किसी और ही देश की बात कर रहे थे।
 
कुल मिलाकर बात समझने की यह है कि जब अमेरिका के राष्ट्रपति को वहां का एक आम या  खास आदमी इस तरह लतिया सकता है तो हमारे देश में मुद्दों और तर्कों की बात कहने-सुनने  की सहिष्णुता कहां चली गई? देशद्रोही करार देने से लेकर 'पाकिस्तान चले जाने' की बात बड़ी  आसानी से विरोध करने वालों के लिए कह दी जाती है।
 
उल्लेखनीय है कि डोनाल्ड ट्रंप अपनी विवादित बातों और ट्वीट के लिए चर्चित रहे हैं और  उनका मीडिया के साथ भी जमकर पंगा चल रहा है। यहां सलाम करना चाहिए अमेरिका के  मीडिया को जिसने डोनाल्ड ट्रंप को शपथ लेने से पहले ही आईना दिखाते हुए एक कड़ा और  मौजूं पत्र लिखा। अमेरिका के साथ-साथ दुनियाभर के मीडियाकर्मियों को यह पत्र पढ़ना चाहिए,  क्योंकि मौजूदा वक्त में दुनियाभर का मीडिया ऐसी ही परिस्थितियों का सामना कर रहा है।  अमेरिकन प्रेस कोर का यह पत्र दुनियाभर में अब चर्चित हो रहा है।
 
एनडीटीवी के जाने-माने एंकर रवीश कुमार ने इसी पत्र के आधार पर एक बेहतरीन प्राइम टाइम  भी 19 जनवरी को प्रस्तुत किया था, उसे भी यूट्यूब पर जाकर देखा जाना चाहिए। अमेरिकी  राष्ट्रपति को लिखे इस पत्र का मजमून इस प्रकार है-
 
श्रीमान् नवनिर्वाचित राष्ट्रपति... 
आपके कार्यकाल के शुरू होने के अंतिम दिनों में हमने अभी ही साफ कर देना सही समझा कि  हम आपके प्रशासन और अमेरिकी प्रेस के रिश्तों को कैसे देखते हैं। हम मानते हैं कि दोनों के  रिश्तों में तनाव है। रिपोर्ट बताती है कि आपके प्रेस सचिव व्हाइट हाउस से मीडिया के दफ्तरों  को बंद करने की सोच रहे हैं। आपने खुद को कवर करने से कई न्यूज संगठनों को बैन किया  है। 
 
आपने ट्विटर पर नाम लेकर पत्रकारों पर ताने कसे हैं, धमकाया है। अपने समर्थकों को भी  ऐसा करने के लिए कहा है। आपने एक रिपोर्टर का यह कहकर मजाक उड़ाया है कि उसकी बातें  इसलिए अच्छी नहीं लगीं कि वह विकलांग है। हमारा संविधान प्रेस की आजादी का संरक्षक है।  उसमें कहीं नहीं लिखा है कि राष्ट्रपति कब प्रेस कॉन्‍फ्रेंस करें और प्रेस का सम्मान करें। प्रेस से  संबंध रखने के नियम आपके होंगे। हमारा भी यही अधिकार है, क्योंकि टीवी और अखबार में  वो जगह हमारी है, जहां आप प्रभावित करने का प्रयास करेंगे। वहां आप नहीं, हम तय करते हैं  कि पाठक, श्रोता या दर्शक के लिए क्या अच्छा रहेगा। अपने प्रशासन तक रिपोर्टर की पहुंच समाप्त कर गलती करेंगे। हम सूचना हासिल करने के तरह-तरह के रास्ते खोजने में माहिर हैं।
 
आपने अपने अभियान के दौरान जिन न्यूज संगठनों को बैन किया था, उनकी कई रिपोर्ट्स  बेहतरीन रही हैं। हम इस चुनौती को स्वीकार करते हैं। पत्रकारिता के नियम हमारे हैं, आपके  नहीं हैं। हम चाहें तो आपके अधिकारियों से ऑफ द रिकॉर्ड बात करें या न करें। हम चाहें तो  ऑफ द रिकॉर्ड ब्रीफिंग में आएं न आएं। अगर आप यह सोचते हैं कि रिपोर्टर को चुप करा देने  या भगा देने से स्टोरी नहीं मिलेगी तो गलत है। हम आपका पक्ष लेने का प्रयास करेंगे, लेकिन  हम सच्चाई को तोड़ने-मरोड़ने वालों को जगह नहीं देंगे। वे जब भी ऐसा करेंगे, हम उन्हें भगा  देंगे। यह हमारा अधिकार है। 
 
हम आपके झूठ को नहीं दोहराएंगे। आपकी बात छापेंगे लेकिन सच्चाई का पता करेंगे। आप  और आपका स्टाफ व्हाइट हाउस में बैठा रहे, लेकिन अमेरिकी सरकार काफी फैली हुई है। हम  सरकार के चारों तरफ अपने रिपोर्टर तैनात कर देंगे। आपकी एजेंसियों में घुसा देंगे और  नौकरशाहों से खबरें निकाल लाएंगे। हो सकता है कि आप अपने प्रशासनिक इमारत से आने  वाली खबरों को रोक लें लेकिन हम आपकी नीतियों की समीक्षा करके दिखा देंगे। 
 
हम अपने लिए पहले से कहीं ज्यादा ऊंचे मानक कायम करेंगे। हम आपको इसका श्रेय देते हैं  कि आपने मीडिया की गिरती साख को उभारा है। हमारे लिए भी यह जागने का समय है। हमें  भी भरोसा हासिल करना होगा। हम इसे सही, साहसिक रिपोर्टिंग से हासिल कर लेंगे। अपनी  गलतियों को मानेंगे और पेशेवर नैतिकता का पालन करेंगे। ज्यादा से ज्यादा आप 8 साल ही  राष्ट्रपति के पद पर रह सकते हैं लेकिन हम तो तब से हैं, जबसे अमेरिकी गणतंत्र की स्थापना हुई है। इस महान लोकतंत्र में हमारी भूमिका हर दौर में सराही गई है। तलाशी गई है। आपने  हमें मजबूर किया है कि हम अपने बारे में फिर से यह बुनियादी सवाल करें कि हम कौन हैं। हम किसलिए यहां हैं। हम आपके आभारी हैं। अपने कार्यकाल के आरंभ का लुत्फ उठाइए।
 
कोलंबिया जर्नलिज्म रिव्यू ने अमेरिकन प्रेस कोर के इस पत्र को प्रकाशित किया है। यहां ये भी  महत्वपूर्ण है कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपना पद छोड़ने के 48 घंटे पहले  व्हाइट हाउस में पत्रकारों से बात करते हुए अंग्रेजी में एक वाक्य कहा- 'You are not  supposed to be sycophants, you are supposed to  be skeptics' यानी पत्रकारों को संदेहवादी या प्रश्नवादी होना चाहिए।
 
ओबामा ने स्पष्ट कहा कि अमेरिका को पत्रकारों की जरूरत है। लोकतंत्र को पत्रकारों की जरूरत  है। इसके विपरित अमेरिका के नए राष्ट्रपति ट्रंप मीडिया के समक्ष इस तरह पेश आए, जैसे उसका काम उनके कथनों को टाइप करना है, प्रश्न करना नहीं। अमेरिका में आम जनता के साथ-साथ प्रेस के संवैधानिक अधिकार भारत की तुलना में कई ज्यादा और बेहतर हैं।
 
प्रेस की स्वतंत्रता की सूची में दुनिया के 180 देशों में से अमेरिका का स्थान 41वां है। पहले,  दूसरे और तीसरे स्थानों पर फिनलैंड, नीदरलैंड्स और न्यूजीलैंड आते हैं। दुनिया के चौधरी यानी  अमेरिकी राष्ट्रपति को आईना दिखाने वाले अमेरिकी पत्रकारों के संगठन अमेरिकन प्रेस कोर को वाकई लाख सलाम जिसने भारत सहित दुनियाभर के मीडिया का माथा ऊंचा कर दिया है। 
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