भारत और चीन का सीमा विवाद दोनों के बीच सैनिक टकराव का कारण तो बनता है, पर वह उतना पुराना नहीं है जितना पुराना दोनों के बीच का प्राकृतिक टकराव है। भारतीय उपमहाद्वीप पिछले करीब 5 करोड़ वर्षों से उस यूरेशियाई (यूरोपीय-एशियाई) प्लेट को टक्करें मार रहा है जिस पर तिब्बत को हड़प जाने वाला चीन बसा हुआ है। भारतीय प्लेट प्रतिवर्ष लगभग 5 सेंटीमीटर की गति से अब भी यूरेशियाई प्लेट की तरफ यानी चीन की तरफ बढ़ रही है, तो क्या भारत अंतत: कभी लुप्त हो जाएगा? GFZ की भूभौतिकीविद् सबरीना मेत्सगर कहती हैं, यदि भारत यूरेशियाई प्लेट के नीचे रहकर आगे बढ़ता रहा तो वह अंतत: गायब हो जाएगा।
वैज्ञानिकों का कहना है कि हमारी पृथ्वी की भूपर्पटी (अर्थक्रस्ट) कहलाने वाली ऊपरी सतह किसी पहेली की तरह कई मोटे-मोटे टुकड़ों वाली प्लेटों की बनी है। विशालकाय आकारों वाली कुछ थोड़ी-सी प्लेटों पर हमारे सागर-महासागर ठांठे मार रहे हैं तो उनसे कहीं छोटे आकार वाली प्लेटों पर एशिया, अफ्रीका और यूरोप, अमेरिका जैसे सारे महाद्वीप बसे हुए हैं। महाद्वीपों से भी छोटी और अत्यंत छोटी प्लेटों की संख्या कितनी है, इस पर वैज्ञानिक एकमत नहीं हैं।
प्लेटें मैग्मा पर तैर रही हैं : ठोस प्लेटों के नीचे उबलता-पिघलता वह मैग्मा होता है, जो ज्वालामुखी उद्गारों के समय बाहर निकलकर ज़मीन पर फैलने-पसारने लगता है। महासागरीय और महाद्वीपीय प्लेटें अपने नीचे के इस अतितप्त मैग्मा पर मानो तैर रही होती हैं। मैग्मा क्योंकि बहुत मंद गति से बह रहा होता है, इसलिए उसके ऊपर की प्लेटें भी उसके साथ प्रतिवर्ष कुछेक सेंटीमीटर की गति से खिसक रही होती हैं।
यह सब आज से नहीं, अरबों वर्षों से हो रहा है। खिसकने के दौरान प्लेटें एक-दूसरे से टकराती हैं, निकट या परे जाती हैं, कोई एक प्लेट किसी दूसरी प्लेट के नीचे चली जाती है या उसके ऊपर चढ़ने लगती है। समय-समय पर आने वाले भूकंप पृथ्वी के गर्भ में चल रही इसी क्रिया की अभिव्यक्ति होते हैं। इस क्रिया को 'प्लेट-टेक्टोनिक' (प्लेट विवर्तन) कहा जाता है।
भारत की यूरेशियाई प्लेट से टक्कर : 5 करोड़ वर्ष पूर्व भारतीय उपमहाद्वीप प्रतिवर्ष लगभग 20 सेंटीमीटर की गति से विशाल यूरेशियाई महाद्वीप वाली प्लेट से टकराया था और तभी से उसे धकेल रहा है। जर्मनी में बर्लिन के पड़ोसी शहर पोट्सडाम में स्थित भू-अनुसंधान केंद्र (GFZ) के वैज्ञानिक 2007 में इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि इसी टकराव से हिमालय पर्वत का बनना और लगातार ऊपर उठते रहना शुरू हुआ था।
हिमालय की ऊंचाई आज भी इसी कारण बढ़ रही है। इसी कारण उत्तरी भारत, नेपाल, तिब्बत और चीन में भी जब तब भूकंप आते रहते हैं। हिमालय के उत्तर में स्थित विशाल तिब्बती पठार भी भारतीय उपमहाद्वीप वाली प्लेट से मिल रही इसी टक्कर का परिणाम है। भारतीय उपमहाद्वीप वाली प्लेट उस यूरेशियाई प्लेट के नीचे धंसती हुई उसे ऊपर उठा रही है जिस पर तिब्बत और चीन बसे हुए हैं।
भारत का जन्मदाता था गोंडवानालैंड : कोई 14 करोड़ वर्ष पहले तक भारतीय उपमहाद्वीप गोंडवानालैंड कहलाने वाले एक अतिशय विराट महाद्वीप का हिस्सा हुआ करता था। समय के साथ गोंडवानालैंड टूटता गया। मैग्मा पर तैरते उसके विभिन्न हिस्से अलग-अलग गति से बिखरते गए। उन्हीं को अब भारत, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, अंटार्कटिका और दक्षिण अमेरिका कहा जाता है।
प्रश्न उठता है कि भारत, गोंडवानालैंड के अन्य हिस्सों की तुलना में इतनी तेज़ी से आगे क्यों बढ़ रहा था? इसका उत्तर जर्मनी के पोट्सडाम नगर में स्थित GFZ द्वारा विकसित एक नई भूकंप मापन विधि से मिला है। यह विधि आज की तथाकथित 'लिथोस्फेरिक' प्लेटों की मोटाई को बड़ी सटीकता के साथ मापने में समर्थ है। लिथोस्फेरिक प्लेटें कई परतों के रूप में पृथ्वी का सबसे ऊपरी वह आवरण हैं, जो पूर्णत: ठोस एवं चट्टानी है।
भारतीय प्लेट 100 किलोमीटर मोटी है : नई भूकंप मापन विधि से पता चला कि भारतीय प्लेट केवल 100 किलोमीटर मोटी है जबकि गोंडवानालैंड की अन्य प्लेटों की मोटाई भारतीय प्लेट की तुलना में दोगुनी अधिक यानी लगभग 200 किलोमीटर है। गोंडवानालैंड के टूटने का कारण बहुत गर्म हो गए एक विशाल चट्टानी बुलबुले को माना जाता है। उसने गोंडवानालैंड को संभवत: नीचे से इतना अधिक गर्म कर दिया कि ज्वालामुखी विस्फोट हुए और गोंडवानालैंड के कई टुकड़े बने। भारत, गोंडवानालैंड का संभवत: एक ऐसा ही निचला हिस्सा है।
भारतीय प्लेट प्रतिवर्ष लगभग 5 सेंटीमीटर की गति से अब भी यूरेशियाई प्लेट की तरफ यानी चीन की तरफ बढ़ रही है, तो क्या भारत अंतत: कभी लुप्त हो जाएगा? GFZ की भूभौतिकीविद् सबरीना मेत्सगर कहती हैं, यदि भारत यूरेशियाई प्लेट के नीचे रहकर आगे बढ़ता रहा तो वह अंतत: गायब हो जाएगा। हालांकि मेत्सगर का यह भी मानना है कि जिस गति से भारतीय प्लेट यूरेशियाई प्लेट से टकरा रही है, वह गति समय के साथ कम होती रहेगीः टकरावों के साथ यह आम बात है कि वे किसी बिंदु पर रुक जाते हैं।
भारत का भविष्य : कुछ करोड़ वर्ष पहले भारतीय प्लेट की टकराव गति बहुत तेज थी। अब यह गति धीमी पड़ी है। समय के साथ वह और धीमी होगी। पोट्सडाम के वैज्ञानिक मानते हैं कि इस 'प्लेट टेक्टोनिक्स' से इसलिए घबराने का कोई कारण नहीं है। भारत पूर्णत: एक अलग कारण से अपनी काफ़ी भूमि खो सकता है- जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र का जल स्तर बढ़ते रहने से। भारत के लिए समुद्री जल स्तर कहीं अधिक चिंता का विषय बनेगा। भगवान श्रीकृष्ण की द्वारिका की तरह कई तटवर्ती शहर और इलाके समुद्र की भेंट चढ़ सकते हैं।
(इस लेख में व्यक्त विचार/ विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/ विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई जिम्मेदारी नहीं लेती है।)