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भारत ने ‘संकट’ में भी सबकी चिंता करने का चरित्र पेश किया

भारत ने ‘संकट’ में भी सबकी चिंता करने का चरित्र पेश किया - Corona and janta curfew
यह दृश्य निश्चय ही पूरी दुनिया के लिए प्रेरक था। दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संघ यानी सार्क देशों के नेता वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए कोरोना वायरस और उसके होने वाले अन्य प्रभावों से लड़ने के लिए एक दूसरे के साथ सहयोग की पेशकश कर रहे थे।

बड़े देशों के नेता यह अवश्य कहते हैं कि साझा चुनौतियां का सामना मिलकर करना चाहिए, यहां तक कहा जाता है कि अगर किसी महामारी या प्राकृतिक आपदा से कोई एक या कई देश जूझ रहा हो तो विश्व समुदाय को एकजुट होकर उसका सहयोग करना चाहिए, पर व्यवहार में इस समय ऐसा होता नहीं दिखता। कोरोना वायरस से घबराए और अपने को बचाने में लगे देश विश्व की तो छोड़िए, पड़ोसियों तक की चिंता नहीं कर रहे। उसमें भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सार्क देशों के बीच सहयोग की पहल कर भारत की विश्व बंधुत्व और वसुधैव कुटुम्बकम पर आधारित परंपरागत चरित्र का परिचय दिया है।

जब उन्होंने ट्वीट किया कि सार्क देशों के नेताओं को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए साझा रणनीति बनाने तथा सहयोग करने पर चर्चा करनी चाहिए तो पाकिस्तान को छोड़कर सभी देशों के प्रमुखों ने इसका स्वागत किया। ट्वीट में मोदी ने कहा था कि हम वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अपने नागरिकों को स्वस्थ रखने के उपायों पर चर्चा कर सकते हैं। हम एकजुट होकर दुनिया के सामने एक मिसाल पेश कर सकते हैं और इसे स्वस्थ रखने में योगदान दे सकते हैं। तय समय पर कॉन्फ्रेंस हुआ और पाकिस्तान को छोड़कर सभी देशों ने सकारात्मक बातचीत की।

ऐसा भी नहीं था यह कॉन्फ्रेंस केवल औपचारिक बातचीत तक सीमित रही। सार्क देशों में कोरोना से निपटने के लिए कोविड-19 इमरजेंसी फंड बनाने की घोषणा करते हुए मोदी ने भारत की ओर से इसमें एक करोड़ अमेरिकी डॉलर (लगभग 74 करोड़ रुपये) देने का एलान किया। मोदी ने यह भी कहा कि भारत के विशेषज्ञ डॉक्टरों, स्वास्थ्य कर्मियों व वैज्ञानिकों की टीम सार्क के देशों के कहने पर कहीं भी जाने के लिए पूरी तरह तैयार है। मोदी के प्रस्ताव के अनुसार एक हफ्ते के भीतर सार्क देशों में कोरोना से निपटने में जुटे विशेषज्ञों की वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये बैठक बुलाई जाएगी, जिसमें वे अपने-अपने अनुभवों को साझा करने के साथ ही एक-दूसरे की मदद करने योग्य मुद्दों पर चर्चा करेंगे। मोदी ने कहा कि भारत सार्क के साथी देशों के साथ इस महामारी पर निगरानी के सॉफ्टवेयर को भी साझा करने को तैयार हैं। साथ ही इसके इस्तेमाल का प्रशिक्षण भी दिया जाएगा।

मोदी ने सभी देशों को अपने देश की उन्नत चिकित्सा सुविधा साझा करने की पेशकश की। इस तरह मोदी ने सार्क के बीच पहल कर विश्व समुदाय के लिए एक उदाहरण पेश किया है। पाकिस्तान को छोड़कर सभी सार्क देशों ने इसे सकारात्मक ढंग से लिया। मोदी के ट्वीट प्रस्ताव के साथ ही सबने इस पहल की प्रशंसा करते हुए इसमें भागीदारी की बात की थी। सम्मेलन में श्रीलंका, नेपाल, मालदीव, भूटान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के राष्ट्राध्यक्ष मौजूद थे। नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने तो खराब स्वास्थ्य के बावजूद इसमें हिस्सा लिया।

लेकिन पाकिस्तान ने प्रधानमंत्री इमरान खान की जगह स्वास्थ्य मामलों के विशेष सहायक जफर मिर्जा को भेज दिया। सम्मेलन के दौरान भी सभी सार्क देश कोरोना से निपटने के लिए साझा रणनीति पर चर्चा कर रहे थे, वहीं पाकिस्तान ने इससे निपटने में चीन का गुणगान करते हुए उससे सीखने की सलाह के साथ कश्मीर मुद्द उठाया। प्रधानमंत्री मोदी ने समय की नजाकत को भांपते हुए पाकिस्तान  की हरकत की अनदेखी की तथा लक्ष्य के अनुरुप बैठक का सकारात्मक माहौल में अंत किया।

देखा जाए तो यहां से केवल कोरोना वायरस में सहयोग का ही नहीं सार्क के जीवन में भी एक नए दौर की शुरुआत हुई है। पाकिस्तान के रवैये को देखते हुए भारत ने उसे दरकिनार कर अन्य देशों के साथ द्विपक्षीय सहयोग को प्रमुखता दिया है तथा सार्क सम्मेलन पिछले चार सालों से स्थगित है। इस्लामाबाद सम्मेलन का भारत के बहिष्कार का साथ अन्य सभी देशों ने दिया था।

भारत ने इसकी जगह बिम्सटेक को महत्व देना शुरु किया था। पूरी दुनिया को आतंकित करने वाले कोरोना वायरस से लड़ने के साथ कायम हुई एकजुटता यदि ठोस परिणाम लाता है जिसकी संभावना है तो फिर भविष्य में इसका विस्तार अन्य क्षेत्रों में हो सकता है। वैसे भी भारत ने अपने वायदे के अनुरुप सार्क देशों के लिए एक उपग्रह का प्रक्षेपण कर दिया है।

सार्क देशों में दुनिया की पूरी आबादी का पांचवां हिस्सा रहता है। इस नाते यहां सहयोग की संभावनां व्यापक हैं। मोदी ने सहयोग एवं साझेदारी की पहले भले अब की है लेकिन भारत ने कोरोना वायरस सामने आने के साथ ही अपने देश को रक्षित करने के समानांतर भारत की वैश्विक भूमिका का निर्वहन करना आरंभ कर दिया था। सम्मेलन के दौरान बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना और मालदीव के राष्ट्रपति इब्राहिम मुहम्मद सालिह ने कोरोना ग्रस्त इलाकों से अपने नागरिकों को बचाने के लिए मोदी की तारीफ की।

अगर भारत ने इनके नागरिकों को दुष्प्रभावित देशों से नहीं निकाला होता तो ये भारत का आभार कैसे व्यक्त करते। यह तथ्य कम लोगों को मालूम है कि चीन में कोरोना वायरस का प्रकोप सामने आने ही मोदी ने वहां के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को मदद की पेशकश की, विस्तृत पत्र लिखा। चीन को सबसे पहले चिकिस्ता सामग्री भेजने वाला देश भारत था।

सबसे अंतिम 26 फरवरी को भारत ने 15 टन सामग्री वुहान भेजी थी। विदेश मंत्रलय के नेतृत्व में वहां से भारत के अलावा सात दूसरे देशों के 36 नागरिकों को भी निकाला गया। इसमें मेडागास्कर, दक्षिण अफ्रीका व अमेरिका के भी नागरिक थे। जापान से जब 27 फरवरी को भारतीयों को निकाला गया तो उनके साथ दक्षिण अमेरिकी देश पेरू समेत पांच दूसरे देशों के नागरिकों को भी निकाला गया। ईरान में तो चार वैज्ञानिक दलों के साथ एक पूरी लेबोरेटरी भेजी गई है।

दक्षिण कोरिया को मदद की पेशकश की गई तो सिंगापुर को भी। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से मोदी ने टेलीफोन पर बातचीत की तो उन्होंने कोरोनावायरस से लड़ने के लिए मास्क समेत अन्य चिकित्सा सामग्रियों की मांग की और भारत ने इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया। वास्तव में मोदी लगातार दुनिया के नेताओं से बातचीत कर रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मोरिसन से लेकर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉन्सन इनमें शामिल हैं।

प्रधानमंत्री अब जी 20 देशों के बीच सहयोग पर बातचीत कर रहे हैं। वे नेताओं को कोरोना वायरस को लेकर एक सामूहिक नीति बनाने तथा एक दूसरे के बीच सहयोग विकसित करने पर बातचीत कर रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने कहा है कि मैं इस बात से भी अवगत हूं कि पीएम मोदी जी20 देशों के बीच सामंजस्य बनाने को उत्सुक दिख रहे हैं। मेरे ख्याल से यह सराहनीय प्रसास है। ऑस्ट्रेलिया निश्चित रूप से इसका समर्थन करता है और यह संदेश भेजा जा चुका है।

हालांकि विदेश मंत्रालय ने कहा है कि भारत की तरफ से समूह-20 की बैठक बुलाने का कोई आह्वान अभी नहीं किया गया है लेकिन प्रधानमंत्री की वैश्विक नेताओं के साथ बातचीत में एक साझा रणनीति बनाने का सुझाव जरूर दिया गया है। दुनिया की स्थिति इसके विपरीत है। चीन और अमेरिका के बीच एक तरह से कूटनीतिक लड़ाई शुरू हो गई है। पहले अमेरिका की तरफ से चीन पर आरोप लगाया गया कि उसने महामारी को रोकने की कोशिशों में सुस्ती बरती और दुनिया को इस हालात में पहुंचाने का वह दोषी है।

चीन की तरफ से अमेरिकी सेना पर यह दोषारोपण किया गया कि वुहान में कोरोना वायरस को लाने में उसकी भूमिका संदिग्ध है। हालांकि चीन के आरोप पर कोई देश विश्वास करने वाला नहीं है। पर इसमें तनातनी देखी जा सकती है। अमेरिका द्वारा यूरोप से आवागमन पर प्रतिबंध लगाने के कारण कई यूरोपीय देशों ने नाराजगी व्यक्त कर दी है।

कहने का तात्पर्य यह कि दुनिया के देश या तो अपने में उलझे हैं या फिर उनके बीच आपस में तनाव है। एकमात्र भारत ही है जिसके नेता ने पड़ोसियों के साथ सहयोग की पहल की और उसे विस्तारित करते हुए विश्व समुदाय की चिंता करने वाले देश के रुप में स्वयं को प्रस्तुत किया है। वैसे भी वैश्विक महामारी के लिए वैश्विक रणनीति और सहयोग का ढांचा होना चाहिए।

यह काम इस समय भारत के अलावा कोई नहीं कर रहा। मोदी ने इस मामले में पड़ोसी प्रथम नीति के तहत सार्क देशों के साथ सहयोग के एक ढांचे की शुरुआत की और उसके बाद विश्व स्तर पर पहल किया है। ऐसे ही संकट में किसी देश और उसके नेतृत्व की पहचान होती है। अभी तक भारत एवं उसका नेतृत्व दुनिया के लिए श्रेष्ठ उदाहरण बनकर उभरा है जिसका असर लंबे समय मे विश्व पटल पर कई रुपों में दिखाई देगा।
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