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motivation for students: सिर्फ परीक्षा में असफल बच्चे और उनके माता-पिता ही इसे पढ़ें

आज के बच्चे हर रोज़ लिख रहे अपने उज्जवल भविष्य का रिजल्ट

motivation for students: सिर्फ परीक्षा में असफल बच्चे और उनके माता-पिता ही इसे पढ़ें - Motivation for students
-प्रथमेश व्यास 
आजकल एक स्कूल जाने वाले बच्चे का जीवन भी किसी नौकरीपेशा व्यक्ति के जीवन से कम नहीं होता। उसे भी कई ऐसे दबावों के बीच रहना पड़ता है, जिनका अंदाजा शायद उसके माता-पिता, स्कूल टीचर्स और कोचिंग क्लास वाले भी नहीं लगा सकते। पूरे साल वो बच्चा हर विषय में कड़ी मेहनत करता है। इस बीच उसे कई सारे कॉन्सेप्ट्स समझना होता है, सवालों के लम्बे-लम्बे जवाबों को रटना होता है।

स्कूल के नोट्स कम्पलीट करने के साथ ट्यूशन का होमवर्क करना होता है और परीक्षा में बगल वाले शर्मा जी के बेटे से ज्यादा प्रतिशत भी प्राप्त करने होते हैं। स्कूल की भारी-भरकम किताबें पढ़ने के साथ साथ कुछ विषयों में उसे रेफ़्रेन्स बुक का भी सहारा लेना पड़ता है। इतने प्रयासों के बाद भी अगर वह वार्षिक परीक्षा में असफल हो जाता है, तो माता-पिता और शिक्षकों के साथ-साथ वो लोग भी उसकी काबिलियत पर सवाल उठाने लगते हैं, जिन्हें ये भी नहीं पता की वो किस क्लास में हैं।  
 
एग्जाम का रिजल्ट किसी बच्चे की योग्यता के बारे में जानने का एकमात्र तरीका नहीं है। ईश्वर ने हर इंसान को दूसरों से अलग बनाया है। कोई बच्चा खेल में अच्छा होता है, तो कोई चित्रकारी में, किसी की रूचि संगीत में होती है, तो किसी की अदाकारी में। हम हर बच्चे से डॉक्टर, इंजीनियर या सिविल सर्वेंट बनने के अपेक्षा नहीं कर सकते। माता-पिता तो बच्चे के प्रति अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त होने के लिए उन्हें ट्यूशन में भेज देते हैं। फिर, चीज़ों को समझने की बजाय रटने पर जोर देने वाली शिक्षा प्रणाली का शिकार अकेले बच्चे ही क्यों बनें ?

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था - 'By education, I mean all-round development of a child' लेकिन, देखा जाए तो हमारे देश में व्यावहारिक शिक्षा पर उतना जोर नहीं दिया जाता जितना दिया जाना चाहिए। दुनिया में ऐसे भी कई महान लोग हैं, जो स्कूल में अच्छे अंक नहीं लाया करते थे, लेकिन आज उन्होंने अपने हुनर और मेहनत के दम पर अपने-अपने क्षेत्रों में बड़ा मुकाम हासिल किया है। सचिन तेंदुलकर को इस बात के सबसे बड़े उदाहरण के रूप में देखा जा सकता है, जो 10वीं कक्षा में Fail हो गए थे। लेकिन अपने दृढ़-निश्चय के बल पर उन्होंने दुनिया भर में ऐसी कीर्ति कमाई कि आज उसी महाराष्ट्र बोर्ड की इंग्लिश बुक में उनके नाम पर एक चैप्टर है, जिसके द्वारा बच्चों को ये पढ़ाया जाता है कि 'ज़िन्दगी में सफल होने के लिए पढ़ाई में अव्वल होना ज़रूरी नहीं।  
 
भारतीय परिवारों में व्याप्त 'पढ़ोगे-लिखोगे तो बनोगे नवाब, खेलोगे-कूदोगे तो बनोगे ख़राब' वाली प्रवृत्ति को सुधारा जाना चाहिए।नई शिक्षा नीति में व्यावहारिक ज्ञान को बढ़ावा दिए जाने के साथ-साथ बच्चों के चारित्रिक गुणों के विकास पर ध्यान देने की बात भी कही गई है। अब किसी अच्छे कॉलेज में एडमिशन प्राप्त करने के लिए 12वीं के परीक्षा परिणाम का अच्छा होना भी आवश्यक नहीं है। 
 
माता-पिता को पता होना चाहिए कि उनके बच्चों का पढ़ाई में ध्यान लग रहा है या नहीं, यदि नहीं तो इसके पीछे की वजह क्या है? बच्चों को ये समझना चाहिए कि उनमें कौनसी ऐसी खूबी है, जिसकी मदद से वो अपने उज्जवल भविष्य की कहानी लिख सकते हैं। पढ़ाई के साथ बच्चों को खेल, नृत्य, संगीत, चित्रकारी, अभिनय आदि गतिविधियों में भी हिस्सा लेना चाहिए, जिससे उनके मस्तिष्क पर पढ़ाई का दबाव ज्यादा ना बढ़े, और वो ये जान पाएं कि आखिर उनके जीवन का लक्ष्य क्या है।
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