विपक्षी दलों का आरोप है कि कटमनी विवाद से साफ है कि सत्तारुढ़ पार्टी गले तक भ्रष्टाचार में डूबी है। अब लोगों का उससे मोहभंग हो गया है।
पश्चिम बंगाल में सत्तारुढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के लिए कटमनी यानी सरकारी योजनाओं में कमीशन का मुद्दा गले की फांस बनता जा रहा है। अब बीते लगभग दो महीनों से पार्टी के कई नेता गांव वालों के दबाव में यह रकम लौटा रहे हैं तो कई लोगों ने इसमें नाकाम रहने पर आत्महत्या तक कर ली है। कुछ लोगों को गांववालों के हाथों मार भी खानी पड़ी है। कथित तौर पर जलपाईगुड़ी जिले की एक महिला ने जब स्थानीय टीएमसी नेता से अपनी कटमनी वापस मांगी तो उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया।
क्या है कटमनी
स्थानीय भाषा में कटमनी उस रकम को कहा जाता है जो सत्तारुढ़ पार्टी के नेता सरकारी परियजोनाओं के लिए आवंटित रकम में से कमीशन के तौर पर लेते हैं। निचले स्तर के नेताओं और कार्यकर्ताओं की ओर से ली जाने वाली यह रकम ऊपर तक पहुंचती है। अब इस मुद्दे को लपकते हुए विपक्षी राजनीतिक दलों ने मुख्यमंत्री और टीएमसी अध्यक्ष ममता बनर्जी व उनके सांसद भतीजे अभिषेक बनर्जी तक को कटघरे में खड़ा कर दिया है। विपक्षी सदस्य विधानसभा में भी इस मुद्दे पर हंगामा करते हुए वाकआउट कर चुके हैं। इस मुद्दे पर विवाद तेज होते देख कर टीएमसी को सफाई तक देनी पड़ी है।
सरकारी परियोजनाओं के लिए आवंटित रकम में से तृणमूल कांग्रेस नेताओं की ओर से लिए जाने वाले कमीशन पर मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी की टिप्पणी ने जहां विवादों का पिटारा खोल दिया है वहीं इसने विपक्ष को भी एक मजबूत मुद्दा थमा दिया है। लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद ममता ने तृणमूल कांग्रेस के पार्षदों के साथ एक बैठक में कहा था कि वह चोरों को पार्टी में नहीं रखना चाहतीं।
उनका कहना था, "कुछ नेता गरीबों को मकान के लिए मिलने वाली अनुदान की रकम में से 25 फीसदी कमीशन मांग रहे हैं। यह तुरंत बंद होना चाहिए।” ममता ने कहा था कि अगर किसी ने ऐसा कमीशन लिया है तो वह इसे फौरन वापस लौटा दे। अब कटमनी लेने वालों को गिरफ्तार कर लिया जाएगा।
ममता की इस टिप्पणी के बाद ही विवाद पैदा हो गया। उसके बाद राज्य के विभिन्न इलाकों में तृणमूल नेताओं, पार्षदों और पंचायत प्रतिनिधियों को आम लोगों की नाराजगी का सामना करना पड़ रहा है। कई जगह तो उनके साथ मार-पीट की घटनाएं भी हुई हैं। पार्टी के कई नेताओं और पार्षदों को भी ममता की यह टिप्पणी नागवार गुजरी है।
नदिया जिले के एक टीएमसी नेता नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं, "यह हमारा अपमान है। अगर हमने कमीशन लिया है तो उसका बड़ा हिस्सा शीर्ष नेताओं तक भी पहुंचाया है।” वह सवाल करते हैं, "दीदी ने हमें तो गिरफ्तारी की चेतावनी दी है। लेकिन बड़े नेताओं का क्या होगा? क्या वह पैसा वापस करेंगे?”
टीएमसी सांसद शताब्दी राय का कहना है कि कमीशन का यह सिलसिला काफी दूर तक जाता है। वह कहती हैं, "सरकारी परियोजनाओं में से कटमनी या कमीशन लेने वाला व्यक्ति तो महज एक मोहरा होता है। उसके पीछे कई लोग होते हैं। ममता को काफी पहले ही इस आदत पर रोक लगाने की पहल करनी चाहिए थी।”
बढ़ता विवाद
दूसरी ओर, विपक्ष ने इस मुद्दे को लपक लिया है। कांग्रेस, बीजेपी और सीपीएम इस मुद्दे पर विधानसभा के भीतर व बाहर हंगामा कर चुकी है। विधानसभा में विपक्ष के नेता अब्दुल मन्नान ने इस मामले की जांच के लिए एक आयोग के गठन की मांग उठाई है। उनका कहना है, "कटमनी मामले से अनगिनत लोग जुड़े हैं। इसकी वजह से कानून व व्यवस्था की स्थिति बिगड़ रही है। सरकार को तुरंत एक आयोग का गठन कर इस मामले की जांच करानी चाहिए।"
विपक्षी दलों का आरोप है कि निचले स्तर के नेताओं ने 25 फीसदी कमीशन लिया है जबकि बड़े नेताओं ने 75 फीसदी। ऐसे में सिर्फ 25 फीसदी रकम वापस देने से ही काम नहीं चलेगा। पूरी रकम वापस करनी होगी। सदन के भीतर व बाहर प्रदर्शन करने वाले विपक्षी दलों के सदस्यों ने अपने गले में जो तख्तियां लटका रखी थीं उन पर लिखा था—कटमनी का संक्षिप्त रूप सीएम है। उनमें से एक तख्ती पर ममता को निशाना बनाते हुए लिखा गया था कि पेंटिंग की बिक्री से मिली 1।86 करोड़ रुपए का कटमनी कौन लौटाएगा? विपक्ष ने सरकार से इस मुद्दे पर श्वेतपत्र जारी करने की भी मांग की है।
प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष कहते हैं, "अब तृणमूल कांग्रेस नेताओं के भ्रष्टाचार से पर्दा हट गया है। यह खुला रहस्य है कि तृणमूल के नेता कटमनी और कमीशन लेते हैं। अब आम लोग इसके विरोध में सामने आ रहे हैं।” कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सोमेन मित्र ने तृणमूल कांग्रेस के तमाम नेताओं, सांसदों, विधायकों और पार्षदों की संपत्ति का ब्योरा सार्वजनिक करने की मांग की है। सीपीएम नेता सूर्यकांत मिश्र कहते हैं, "अब टीएमसी का असली चरित्र सामने आ गया है।”
टीएमसी की मुसीबत
इस बीच, आम लोगों तक सीधी पहुंच बनाने के मकसद से पश्चिम बंगाल में हाल में शुरू हुआ "दीदी के बोलो" अभियान तृणमूल कांग्रेस के लिए दुधारी तलवार साबित हो रहा है। इससे पार्टी के नेताओं को जहां आम लोगों से जुड़ने में सहायता मिल रही है वहीं उनको लोगों के परेशान करने वाले सवालों और वसूली, कटमनी और भ्रष्टाचार के आरोपों का भी सामना करना पड़ रहा है।
लोकसभा चुनावों में भाजपा की ओर से लगे झटकों के बाद चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की सलाह पर पार्टी ने "दीदी के बोलो" नामक एक वेबसाइट के साथ ही एक हेल्पलाइन नंबर भी जारी किया था ताकि आम लोग अपनी समस्याएं और शिकायतें सीधे मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तक पहुंचा सकें। लेकिन यह डिजिटल पहल तृणमूल कांग्रेस के लिए सिरदर्द भी बन गया है।
एक तृणमूल नेता ने बताया कि हजारों लोग पार्टी के स्थानीय नेतृत्व के खिलाफ जबरन उगाही, भ्रष्टाचार और कटमनी की शिकायतें भी कर रहे हैं। गांवों में पहुंचने वाले तृणमूल नेताओं को भी इन मुद्दों पर स्थानीय लोगों के असहज सवालों का सामना करना पड़ रहा है। एक नेता ने माना कि उनको ऐसे सवालों का जवाब देने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। लोग सवाल उठा रहे हैं कि पार्टी भ्रष्ट नेताओं के खिलाफ कार्रवाई से आखिर हिचकिचा क्यों रही है?
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि बीते लोकसभा चुनावों में भ्रष्टाचार को मुद्दा बना कर ही बीजेपी को बंगाल में भारी कामयाबी मिली थी। राजनीति विज्ञान के एक प्रोफेसर प्रोफेसर मइदुल हक कहते हैं, "अगले विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए बीजेपी अब भ्रष्टाचार के मुद्दे पर टीएमसी की मजबूत घेरेबंदी कर रही है। इसमें कटमनी विवाद अहम भूमिका निभाएगा। अभी यह कहना मुश्किल है कि इस विवाद से ममता व उनकी पार्टी की छवि को जो नुकसान पहुंचा है वह प्रशांत किशोर जैसे चुनावी रणनीतिकार की मदद से भी ठीक हो सकेगा या नहीं।” पर्यवेक्षकों का कहना है कि आने वाले समय में कटमनी और भ्रष्टाचार के दूसरे मामले टीएमसी और उसकी प्रमुख ममता बनर्जी के लिए भारी सिरदर्द साबित हो सकते हैं।
रिपोर्ट प्रभाकर, कोलकाता