DNA of Indian Muslims: भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश सहित नेपाल, श्रीलंका और बर्मा तक के अधिकतर लोगों का डीएनए एक ही माना गया है। प्राचीन काल में अखंड भारत में ऋषि कश्यप, यायाति, सूर्य, चंद्र, नाग, यदु, तुर्वसु, द्रुहु, पुरु तथा अनु की संतानों का ही संपूर्ण जम्मूद्वीप पर शासन था। इन्हीं की संतानों के कई कुल या वंश के लोग हिंदूकुश से अरुणाचल और कश्मीर से लेकर श्रीलंका तक फैली हुई थी। यह आर्य और अनार्य में विभक्त थे।
कालांतर में आक्रमणकारियों के कारण इन्हीं की संतानों में से कुछ कुल के लोगों ने किसी काररवश इस्लाम या ईसाई धर्म को अपना लिया। हमारे देश में बाहर से आए ईरानी, तुर्की और अरबी मुगलों ने हिन्दू जनता को धर्मांतरित करके उन्हें मुसलमान बनाया। मुगल काल में खासकर औरंगजेब के काल में हिन्दुओं के पास तीन ही विकल्प थे, मौत, मुसलमान या जजिया कर। लेकिन खासकर ब्रह्माणों के पास दो ही विकल्प थे- मरने के लिए तैयार रहना या मुस्लिम धर्म अपनाना। कुछ ने पहला विकल्प अपनाया तो ज्यादातर ने दूसरा।
कभी मंदिर, कभी मस्जिद, कभी आरक्षण और कभी शिक्षा, तो कभी सरकार की सहूलियतों के नाम पर राजनीतिक पार्टियां हिन्दू और मुसलमानों को अलग-अलग करने की कोशिश करती रहती हैं। लेकिन सच यह है कि हिन्दू और मुस्लिम आपस में भाई-भाई ही हैं। उनके खून का रंग ही नहीं बल्कि उनके जीन्स भी एक जैसे हैं।
कुछ वर्ष पूर्व लखनऊ के एसजीपीजीआई के वैज्ञानिकों ने फ्लोरिडा और स्पेन के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर किए गए अनुवांशिकी शोध के बाद यह निष्कर्ष निकाला है। शोध लखनऊ, रामपुर, बरेली और कानपुर जैसे शहरों के करीब 2400 मुसलमानों और हिंदुओं पर किया गया था। वैज्ञानिक इस शोध को चिकित्सा स्वास्थ्य की दिशा में बड़ी सफलता मानते हैं। इस शोध के बाद चिकित्सा स्वास्थ्य से जुड़ी तमाम बीमारियों के इलाज को लेकर अब रिसर्च शुरू हो गई है।
अमेरिका की फ्लोरिडा अंतरराष्ट्रीय यूनिवर्सिटी के डिर्पाटमेंट ऑफ बायोलॉजिकल साइंस के डॉ. मारिया सी टेरेरोस, डेयान रोवाल्ड, रेने जे हेरेरा, स्पेन की यूनिवर्सिटी डि विगो के डिपार्टमेंट ऑफ जेनटिक्स के डॉ.ज़ेवियर आर ल्यूस और लखनऊ स्थित संजय गांधी पीजीआई के अनुवांशिकी रोग विभाग की प्रोफेसर सुरक्षा अग्रवाल और डॉ. फैजल खान ने शिया और सुन्नी मुसलमानों के जीन पर लंबे शोध के बाद यह निष्कर्ष निकाला है।
इनके शोध को अमेरिकन जर्नल ऑफ़ फिजिकल एंथ्रोपॉलॉजी ने भी स्वीकार किया है। प्रोफेसर सुरक्षा अग्रवाल बताती हैं कि रिसर्च शुरू करने से पहले उन्होंने मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के साथ ही एसजीपीजीआई से नीतिगत सहमति हासिल की। इसके बाद उन्होंने उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में रहने वाले मुस्लिम परिवारों का एक डेटा बेस तैयार किया। उसे एक्सेल शीट पर लिस्टेड किया गया। इसके बाद स्टेटिस्टिकल टेबल के माध्यम से रैडमली नामों और जानकारियों को सेलेक्ट किया गया।
इसके बाद टीम ने सेलेक्ट किए गए लोगों से मुलाकात की। उनके साथ इंटरव्यू किया। साथ ही उन्हें इस रिसर्च के बारे में पूरी जानकारी दी गई। उन्हें बताया गया कि इस रिसर्च से उन्हें कोई फायदा नहीं होगा। लेकिन मेडिकल की दुनिया में आगे के रास्ते ज़रूर खुल सकते हैं। इसके बाद उनकी सहमति होने के बाद ब्लड सैंपल्स इकट्ठा किए और उनमें से डीएनए अलग किए गए।
रिसर्च में पता चला कि प्रदेश के शिया और सुन्नी मुसलमान और हिंदुओं के जीन में कोई अंतर नहीं है। इतना ही नहीं विज्ञानियों ने तुलनात्मक अध्ययन में भारतीय हिंदुओं, अरब देशों, सेंट्रल एशिया, नॉर्थ ईस्ट अफ्रीकी देशों के मुसलमानों के जीन के बीच भी किया तो पाया कि भारतीय मुसलमानों के जीन भारतीय हिंदुओं से पूरी तरह मेल खाते हैं। इनके जीन विदेशी मुसलमानों से मेल ही नहीं खाते।
चूंकि ये सैंपल उत्तर प्रदेश के ही मुस्लिमों के लिए गए, इसलिए यह साफ हो गया कि भारतीय खासतौर पर प्रदेश के मुसलमान की जड़े यहीं है। किसी दूसरे मुल्क से में नहीं। इसके अलावा हिन्दुओं में ब्राह्मण, कायस्थ, खत्री, वैश्य और अनसूचित जाति एवं पिछड़ी जाति के लोगों के जीन का तुलनात्मक अध्ययन किया गया तो पाया इन सभी जातियों के जीन आपस में एक होने के साथ ही मुसलमानों के जीन से भी मिलते हैं।
इस रिसर्च के आधार पर किसी बीमारी या इलाज को लेकर शोध होने के सवाल पर प्रोफेसर सुरक्षा कहती हैं कि उन लोगों का लक्ष्य जीन्स के रिलेशन का पता लगाना था। वह इस रिसर्च में पता चल गया। जाहिर है कि रिसर्च पूरी तरह से कम्प्लीट हो गई और काम हो गया। इसके बाद कई लोग इस रिपोर्ट के आगे भी रिसर्च कर रहे हैं, लेकिन फिलहाल वह इसमें शामिल नहीं हैं। (एजेंसियां)