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बाल गीत : कौआ बोला

बाल गीत : कौआ बोला - Crow poem
कौआ बोला कांव-कांव जी
बार-बार बस कांव-कांव जी।
 
बोली मुन्नी, छत पर चलना,
मुझे अभी कौए से मिलना।
कौआ सोता कहां बताओ?
कथा अभी उसकी सुनाओ जी।
 
कौआ सुबह-सुबह क्यों आता?
खुद का घर क्यों नहीं बनाता?
अपनी मां से लड़ता है क्या,
बात मुझे सच्ची बताओ जी।
 
कहती दादी, कौआ आया
खबर कोई अच्छी सी लाया।
अतिथि कोई है आनेवाला,
चाय-नाश्ता तो बनाओ जी।
 
दादी की बातें क्या सच हैं,
बातें क्या सच में ही सच हैं।
या ये बातें मनगढंत हैं,
मुझको यह सच-सच बताओ जी।
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