महामारी : 1400 साल पहले हजरत मुहम्मद साहब ने क्या दी थी हिदायत, जानिए
इस्लाम धर्म के अंतिम पैगम्बर हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने 1400 साल पहले ही लोगों को महामारी से बचने के तरीके बता दिए थे।
एक बार खाना-ए-काबा और ऐतराफ़ में ये वाकया आया था कि तेज बारिश के कारण पानी भर गया था। सर्दी और बारिश ज्यादा थी तो ऐसे में अपने सहाबियों से ये ऐलान करवाया कि लोगों से कह दो कि वे अपनी जो फर्ज नमाज है वो अपनी कयामगाहो में अदा करें।- सहीह बुखारी शरीफ हदीस नं. 666 में इसका उल्लेख मिलता है।
यह तो हुई नार्मल दिनों की बात, जबकि बारिश और सर्दी अधिक थी। इसके बाद बात आती है जुमे की नामज की। इसी हादिस में आगे कहा गया कि आज जुमे की नमा में ‘हैया अलस्सलाह’ (आओ नमाज की तरफ) नहीं कहेंगे। कहेंगे ‘अस्सलाह फ़िर्रिहाल’ (नमाज अपने घरों में पढ़ लो)। अर्थात नमाज अपने कयामगाहो में अदा करो। हजरत मोहम्मद साहब सर्दी की रातों में भी मुअज़्ज़िन को हुक्म देते थे कि, लोगों से अपने घरों में नमाज अदा करने का एलान करो।- सहीह बुखारी शरीफ हदीस नं. 668. में इसका उल्लेख मिलता है।
जब अल्लाह के नबी ने सिर्फ सर्दी और बारिश के लिए ये बात कही है तो फिर महामारी तो बड़ी आफत है।
यह भी कहा जाता है कि अल्लाह के नबी ने महामारी से बचने के लिए भी हिदायत दी थी। जब उन्होंने एक बार अपने एक साथी से कहा था कि स्वस्थ के साथ बीमार को मत बैठाओ। पैगंबर साहब के समय कुष्ठ रोग एक संक्रामक बीमारी थी। उस काल में इसका कोई इलाज नहीं था।
यह भी कहा जाता है कि अल्लाह के नबी ने एक हदिस में कहा, तुम्हें मालूम हो कि किसी शहर में बवा (महामारी) फैली हुई है तो तुम वहां न जाओ। और अगर तुम जिस शहर में रहते हो और उस शहर में महामारी हो तो भी तुम उस शहर को छोड़कर न जाओ। आपको यदि ऐसी बीमारी हो जाए जिससे दूसरे इंसानों को खतरा है तो तुम खुद को बाकी लोगों से अलग कर लो।
सही बुखारी शरीफ के पार्ट 1 में सफा नंबर 122 हदीस नंबर 666 एवं सफा नंबर 123 हदीस नंबर 667 के हवाले से भी नमाज की हितायत की बात कही जा रही है। हालांकि यहां समझने वाली बात यह है सभी मुसलमानों सहित मुल्क के सभी लोगों की जान हिफाजत में रहे।