• Webdunia Deals
  1. समाचार
  2. मुख्य ख़बरें
  3. अंतरराष्ट्रीय
  4. Who is George Sorosh
Written By
Last Updated : शनिवार, 18 फ़रवरी 2023 (00:11 IST)

कौन हैं जॉर्ज सोरोस, जिनके बयान ने भारतीय राजनीति में ला दिया उबाल

कौन हैं जॉर्ज सोरोस, जिनके बयान ने भारतीय राजनीति में ला दिया उबाल - Who is George Sorosh
गौतम अडाणी मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ अपनी टिप्पणी को लेकर विवादों में घिरे जॉर्ज सोरोस हंगरी मूल के अमेरिकी फाइनेंसर एवं परोपकारी उद्यमी हैं। एक निवेशक के तौर पर मिली सफलता ने उन्हें दुनिया के सबसे अमीर लोगों में से एक बना दिया। इसके साथ ही उनकी पहचान उदार सामाजिक उद्देश्यों के एक सशक्त एवं असरदार समर्थक के रूप में भी है।
 
अरबपति सोरोस ने बृहस्पतिवार को म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में कहा था कि गौतम अडाणी के कारोबारी साम्राज्य में जारी उठापटक सरकार पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पकड़ को कमजोर कर सकती है। उनके इस बयान को सत्तारूढ़ भाजपा ने भारतीय लोकतंत्र पर हमले के रूप पेश किया है।
 
करीब 8.5 अरब डॉलर के नेटवर्थ वाले सोरोस 'ओपन सोसाइटी फ़ाउंडेशंस' के संस्थापक हैं। यह संस्था लोकतंत्र, पारदर्शिता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बढ़ावा देने वाले समूहों और व्यक्तियों को अनुदान देती है।
 
पहचान छिपाई : वर्ष 1930 में हंगरी के बुडापेस्ट में एक समृद्ध यहूदी परिवार में जन्मे सोरोस का शुरुआती जीवन 1944 में नाजियों के आगमन से बुरी तरह प्रभावित हुआ। परिवार अलग हो गया और नाजी शिविरों में भेजे जाने से बचने के लिए उसने फर्जी कागजात का सहारा लिया। उसी समय परिवार के सदस्यों ने अपने उपनाम को 'श्वार्ज' से बदलकर 'सोरोस' कर दिया ताकि यहूदी पहचान उजागर न हो। फिर वर्ष 1947 में वे लंदन चले गए।
 
एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका के मुताबिक, सोरोस ने रेलवे कुली एवं वेटर के रूप में भी काम किया और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स तक पहुंच गए। वहां पर उन्होंने कार्ल पॉपर के मार्गदर्शन में दर्शनशास्त्र का अध्ययन किया, लेकिन उनका मन दर्शन में नहीं लगा। उनका रुझान निवेश बैंकिंग की तरफ हुआ और वह लंदन स्थित मर्चेंट बैंक 'सिंगर एंड फ्रीडलैंडर' के साथ काम करने लगे।
 
विश्लेषक के रूप में छोड़ी छाप : सोरोस वर्ष 1956 में न्यूयॉर्क चले गए जहां उन्होंने यूरोपीय प्रतिभूतियों के विश्लेषक के रूप अपनी छाप छोड़ी। उन्होंने 1969 में अपने पहले हेज फंड 'डबल ईगल' की शुरुआत की और उसके चार साल बाद 'सोरोस फंड मैनेजमेंट' (बाद में क्वांटम एंडोमेंट फंड) शुरू किया। इस हेज फंड ने उन्हें आगे चलकर अमेरिकी इतिहास के सबसे सफल निवेशकों में से एक बनाया।
 
उन्होंने वर्ष 1992 में ब्रिटिश मुद्रा पाउंड को ‘शॉर्ट’ कर कथित तौर पर एक अरब डॉलर का मुनाफा कमाया था। उस साल सितंबर में पाउंड स्टर्लिंग का अवमूल्यन होने के पहले सोरोस ने उधार पर लिए गए अरबों पाउंड की बिक्री की। इसकी वजह से उन्हें 'बैंक ऑफ इंग्लैंड' को नुकसान पहुंचाने वाला व्यक्ति के रूप में जाना जाने लगा।
 
करोड़ों डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा : हालांकि इसके दो साल बाद उन्हें जापानी येन के मुकाबले डॉलर की कमजोर संबंधी आकलन को लेकर करोड़ों डॉलर का नुकसान भी उठाना पड़ा था। उनका नाम 1997 के दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के वित्तीय संकट से भी जोड़ा गया। मलेशिया के तत्कालीन प्रधानमंत्री महाथिर बिन मोहम्मद ने रिंगिट की गिरावट के लिए सोरोस को ही जिम्मेदार बताया था।
 
दिसंबर 2002 में एक फ्रांसीसी अदालत ने सोरोस को 1988 के एक शेयर सौदे में भेदिया कारोबार की दोषी ठहराते हुए उन पर 22 लाख यूरो का जुर्माना लगाया था। हेज फंड के बारे में नए संघीय नियमों को देखते हुए सोरोस ने जुलाई 2011 में घोषणा की कि क्वांटम एंडोमेंट फंड अब बाहरी निवेशकों के धन का प्रबंधन नहीं करेगा। इसके बजाय यह फंड केवल सोरोस और उनके परिवार की संपत्ति को ही संभालेगा।
 
परोपकारी फाउंडेशन : सोरोस ने अपनी संपत्ति के कुछ हिस्सों का उपयोग करके 1984 में 'ओपन सोसाइटी फाउंडेशन' नाम के एक परोपकारी संगठन की स्थापना की थी। सोरोस ने इस फाउंडेशन के कामकाज के लिए अपनी निजी संपत्ति में से 32 अरब डॉलर का अंशदान दिया था।
 
सोरोस पर अपने धन और रसूख का इस्तेमाल राजनीति को आकार देने और सत्ता परिवर्तन को वित्तपोषित करने का आरोप लगता रहा है। उन्होंने वर्ष 2020 में राष्ट्रवाद के प्रसार को रोकने के लिए एक नए विश्वविद्यालय नेटवर्क को एक अरब डॉलर का वित्त देने का वादा किया।
 
ट्रंप और जिनपिंग के आलोचक : सोरोस चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग और पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भी आलोचक रहे हैं। उन्होंने वर्ष 2020 में भी दावोस में विश्व आर्थिक मंच की बैठक में मोदी सरकार की आलोचना करते हुए कहा था कि राष्ट्रवाद आगे बढ़ रहा है और भारत में 'सबसे बड़ा झटका' देखा जा रहा है।
 
मोदी को लेकर क्या कहा था : उस समय सोरोस ने कहा था कि सबसे बड़ा और सबसे भयावह आघात भारत में लगा जहां लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित नरेंद्र मोदी एक हिंदू राष्ट्रवादी राज्य का निर्माण कर रहे हैं, एक अर्ध-स्वायत्त मुस्लिम क्षेत्र कश्मीर पर बंदिशें लगा रहे हैं और लाखों मुसलमानों को नागरिकता से वंचित करने की धमकी भी दी जा रही है। अपने इस रुख को कायम रखते हुए सोरोस ने कहा कि मोदी को अडाणी समूह पर लगे आरोपों के बारे में विदेशी निवेशकों और संसद के सवालों के जवाब देने होंगे।
 
हिंडनबर्ग रिसर्च की एक रिपोर्ट में अडाणी समूह पर धोखाधड़ी और शेयरों के भाव में हेराफेरी के गंभीर आरोप लगाए गए थे। उसके बाद से समूह की कंपनियों के शेयरों में लगातार उठापटक जारी है। (भाषा)
Edited by: Vrijendra Singh Jhala