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गफूर खां की बजरिया वाला बना जावरा का नवाब

गफूर खां की बजरिया वाला बना जावरा का नवाब - Gafoor Khan's Bajariawala became the Nawab of Javra
गफूर खां एक अफगान था जिसके पुरखे अपना भाग्य आजमाने के लिए हिंदुस्तान चले आए थे। गफूर खां ने मोहम्मद अयाज की पुत्री से विवाह किया था, जो जोधपुर दरबार का एक उच्चाधिकारी था। उसकी दूसरी पुत्री का विवाह अमीर खां से हुआ, जो राजपुताने में एक प्रभावशाली सैनिक अधिकारी था। अमीर खां ने अपने रिश्तेदार गफूर खां को अपनी सेवा में रख लिया और उसकी नियुक्ति होलकर दरबार में अपने विश्वसनीय प्रतिनिधि के रूप में की। इस प्रकार 19वीं सदी के प्रथम दशक में गफूर खां इंदौर राज्य से संपर्क में आया।
 
योद्धा यशवंतराव होलकर के देहांत के पश्चात होलकर दरबार परस्पर गुटबंदियों, षड्‌यंत्रों और सैनिक खेमे-बंदियों का शिकार हो गया जिसमें पिंडारी नेता अमीर खां अपना प्रभाव बढ़ाने में कामयाब हो गया। इंदौर राजबाड़े के समीप ही उत्तरी भाग में गफूर खां की सैनिक टुकड़ी रहती थी। इसी स्थान को गफूर खां की बजरिया कहा जाने लगा, जो आज तक प्रचलित है। इसी स्थान पर रहकर गफूर खां होलकर राज्य के प्रशासन व सैनिक मामलों में हस्तक्षेप करने लगा। 1816-17 तक यह हस्तक्षेप मराठा सरदारों व गफूर खां के मध्य संघर्ष का कारण बन गया था। पठानों के हितों की सुरक्षा का बहाना बनाकर गफूर खां ने नियमित बटालियनों के बहुत से सैनिक अपने पक्ष में कर लिए थे।
 
पठान सिपाहियों ने शह पाकर अंतत: 1817 केदिसंबर माह में उस समय विद्रोह खड़ा कर दिया, जब तुलसाबाई के नेतृत्व में अंगरेजों से लोहा लेने के लिए होलकर सेना आलोट दुर्ग में थी। तुलसाबाई का वध कर दिया गया। 21 दिसंबर 1817 को ब्रिटिश सेना ने अवसर पाकर होलकर सेना पर आक्रमण कर दिया। होलकर सेना के केवलरी दस्ते ने, जिसका नेतृत्व गफूर खां कर रहा था, युद्ध में भाग नहीं लिया, फलत: होलकर सेना पराजित हुई और 1818 में मंदसौर की संधि पर होलकर को हस्ताक्षर करने पड़े।
 
उक्त संधि की 12वीं धारा के अनुसार गफूर खां को अपने द्वारा किए गए विश्वासघात का पुरस्कार 'जावरा' राज्य के रूप में मिला। गफूर खां को होलकर राज्य की भूमि में से संजीत, ताल, मल्हारगढ़, मूंदवाल, जावरा, बुरोद आदि प्रदेशों के साथ ही पिपलौदा से ट्रिब्यूट प्राप्ति का अधिकार भी मिला। इस व्यवस्था व जावरा राज्य की स्थापना का अमीर खां ने भी विरोध किया, किंतु अंगरेज गफूर खां को मालामाल करने के लिए प्रतिबद्ध थे सो विरोध अस्वीकार कर दिया। गफूर खां का प्रतिनिधि या पारिवारिक सदस्य प्रतिवर्ष इंदौर में होलकर दरबार में दशहरे पर हाजिर होकर अपना सम्मान प्रकट करते रहे।