मालवा भूमि हर दृष्टि से उर्वरा रही। इसने केवल फसल ही नहीं अपितु प्रत्येक क्षेत्र में अनेक विभूतियां, कलाकार, योगी, विद्वान प्रदान किए हैं। उनमें से एक विभूति थे श्री वेद विज्ञानाचार्य, जिन्होंने वेदों पर अनन्य परिश्रम कर वेदश्रमी नाम सार्थक किया।
पं. वीरसेन का जन्म 5 दिसंबर 1908 तदनुसार मार्गशीर्ष सुदी त्रयोदशी, शनिवार को देवास (ब्राह्मणवाड़ी) में हुआ। बाल्यकाल उन्होंने वृंदावन (मथुरा) में व्यतीत किया। यहीं के गुरुकुल विश्वविद्यालय से आयुर्वेद शिरोमणि की प्रतिष्ठित स्नातक (गोल्ड मेडलिस्ट) डिग्री 1930 में प्राप्त की। शिक्षा के उपरांत उन्होंने गुरुकुल विश्वविद्यालय के आयुर्वेदिक विभाग में कार्य प्रारंभ किया व बाद में वेद विभाग में स्थानांतरित कर दिए गए।
इसी दौरान उनका वेदों के प्रति ऐसा अनुराग उत्पन्न हुआ कि इसे ही उन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया।
पं. वीरसेन ने वेदों का सस्वर पाठ का अभ्यास वेदशास्त्र संपन्न पं. रामानंद देशकर (नागपुर) के सान्निाध्य में 3 वर्ष तक किया तथा वेदशास्त्र संपन्न गुरुवर्य विनायक आत्माराम वाजपेयी से वर्षों तक शिक्षा ली। ऋग्वेद का सस्वर पाठ गुरुवर्य श्री यशवंत अनंत पटवर्धन (घनपाठी) तथा सामवेद का वेदमूर्ति श्री नानूराम गोटेलालजी अग्निहोत्री बुरहानपुर वालों से अभ्यास का सौभाग्य पाया।
पं. वीरसेन की स्मरण शक्ति बड़ी अद्भुत थी। वे यजुर्वेद के कई मंत्रों का ही नहीं अपितु कई अध्यायों के भी अनुलोम-विलोम तथा अक्षरों व विलोम पाठ किया करते थे। पंडितजी अच्छे साधक भी थे। एक बार उन्होंने कहा था वेद में विज्ञान के रहस्य का परिचय उन्हें साधन से प्राप्त हुआ।
याज्ञिक वृष्टि विज्ञान में उन्होंने बहुत कार्य किया। एक बार देश में अवृष्टि के दौरान श्री कामराज ने कहा था, जो मंत्रों से वृष्टि कर देगा, उसे मंत्री बना दिया जाएगा। इस पर डॉ. संपूर्णानंदजी (तत्कालीन राज्यपाल, उप्र) ने पंडितजी को यह चुनौती स्वीकारने की प्रेरणा दी तथा कहा कि इसकी सूचना प्रेस को भी दे दें। पंडितजी ने ऐसा ही किया। सभी समाचार पत्रों ने इस समाचार को स्थान दिया। कामराज चुनौती स्वीकार नहीं कर पाए।
यज्ञ द्वारा वृष्टि के उन्होंने अनेक प्रयोग किए (24से अधिक)। उनकी सफलता ने उन्हें प्रोत्साहित किया। इस हेतु उन्होंने भारत सरकार से भी पत्र व्यवहार किया, लेकिन बात आगे नहीं बढ़ पा रही थी। वैज्ञानिकों के अपने वैज्ञानिक होने का अहम आड़े आ रहा था तो सरकार को धर्म के साथ ही अनेक कठिनाइयां सामने आ रही थीं।
जब बाबू जगजीवनराम कृषि मंत्री थे, तब वे डॉ. शंकरदयाल शर्मा के साथ भोपाल में चल रहे बड़े यज्ञ में पधारे।
उस यज्ञ के ब्रह्मा पंडितजी थे, जब उन्हें यज्ञ के ब्रह्मा के रूप में आशीर्वाद देने को कहा गया तो उन्होंने कहा- 'आप कृषि मंत्री हैं, यज्ञ में पधारे हैं। यज्ञ वृष्टि कर्ता है, इसलिए मेरा यही आशीर्वाद है कि इस बार संपूर्ण भारत में पर्याप्त वर्षा होगी।' ऐसा हुआ भी- उस वर्ष पूरे भारत में अच्छी वर्षा हुई। इसके तत्काल बाद यज्ञ द्वारा वृष्टि प्रोजेक्ट को स्वीकार कर लिया गया, लेकिन बाबूजी के दूसरे मंत्रालय में जाते ही वैज्ञानिकों एवं अधिकारियों ने इसमें रुचि लेना बंद कर दिया।
वैदिक साहित्य पर उन्होंने अनेक लेख एवं पुस्तकों की रचना की। उनमें प्रमुख हैं-
वैदिक संपदा : वेद में आधुनिक समस्या पर फुलस्केप के 500 से अधिक पृष्ठ कई बार प्रकाशित - गंगाप्रसाद उपाध्याय इलाहाबाद सम्मान से सम्मानित। गोविंदराम हासानंद सम्मान (दिल्ली) तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरणसिंह के कर कमलों से सम्मानित।
यज्ञ : यज्ञ विज्ञान द्वारा विश्व की समस्याओं के निराकरण पर
यज्ञ महाविज्ञान : यज्ञ संबंधी 17 लेखों का संग्रह
याज्ञिक आचार संहिता : यज्ञ की क्रिया, रहस्य एवं विधिविधान (कतिपय कर्मकांड विद्यालयों के पाठ्यक्रम में शामिल)
संध्या योग रहस्य : इसमें मंत्र के साथ मंत्रार्थ भावना, जीवन व्यवहार में साधना का लाभ, योग सूत्रों से समन्वय
वैदिक अध्यात्म, वैदिक समाजवाद
पुत्रेष्टि यज्ञ : विधि-विधान मंत्र, औषधि सहित
वेद कथा
गायत्री मंत्र : प्रकृति-विकृति पाठ समलकृत- गायत्री मंत्र के पद, क्रम, लय, धनादि पाठ
वैदिक सूक्त संग्रह : इसके अतिरिक्त पंडितजी ने अनेक नित्य उपयोगी सूक्तों को भी प्रकाशित किया। आत्मपावन सूक्त, वैदिक सरस्वती सूक्तम्, वैदिक सुमंगलम् सूक्तम्, वैदिक श्री सूक्तम्, वैदिक वाणिज्य सूक्त वेद महिम्न स्तोत्र
अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित पुस्तकें
3 Main current problems and their solution through science of yagya
The science of yagya in rain formation
yagya- A foremost excellant project for universal flourishment
विशिष्ट सम्मान
*शरीर विज्ञान पर वैदिक टिप्पणियां- विद्यालय वृंदावन- मथुरा से सम्मानित
*वाराणसी संस्कृत विश्वविद्यालय में सामवेद के प्राध्यापक रखने की सिलेक्शन कमेटी सदस्य 1967 कुलपति राज्यपाल द्वारा नामांकित
*वैदिक संपदा पर गंगाप्रसाद उपाध्याय सम्मान इलाहाबाद 1975
*गोविंदराम हासानंद सम्मान तत्कालीन प्रधानमंत्री चौ. चरणसिंह के हाथों
*वाराणसी में आयोजित वेद सम्मेलन के अध्यक्ष 1976
*विश्व वेद परिषद प्रधान कार्यालय लखनऊ के अध्यक्ष 1980 से
*इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स इंडिया द्वारा उनकी पत्रिका में प्रकाशित पर्यावरण एवं अन्य लेखों के लिए सम्मानित प्रमाण पत्र
*महर्षि शताब्दी समारोह (अजमेर) वैदिक साहित्य के लिए सम्मानित
*भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली द्वारा यज्ञ द्वारा वृष्टि के लिए आयोजित एवं भारतीय मौसम विज्ञान द्वारा ऋतु सुधार के लिए आयोजित सेमिनारों में विशेष रूप से आमंत्रित।