शांता सिन्हा : 10 लाख बच्चों के बचपन में जहर घुलने से बचाया...
बचपन जो फूल-सा कोमल होता है। उसे बहुत प्यार से सहजने की जरूरत होती है। लेकिन गरीबी कई बच्चों के बचपन में ही जिम्मेदारियों को बोझ ढाह देती है। और बचपन में ही उनके जीवन में जहर घुल जाता है जिसका प्रभाव उनके आने वाले जीवन पर निश्चित रूप से पड़ता है।
लेकिन बाल उम्र में काम करने को मजबूर बच्चों को शांता सिन्हा ने उनका बचपन लौटाया। देश के चौथे सर्वोच्च सम्मान पद्मश्री से सम्मानित शांता सिन्हा पिछले 30 वर्षों से बाल जीवन को बचा रही है। 7 जनवरी 1950 को उनका जन्म हुआ था। आइए जानते हैं कुछ खास बातें उनके इस खास दिन पर -
शांता सिन्हा ने अपनी प्राथमिकी शिक्षा सेंट एन्स हाई स्कूल, सिकंदराबाद से उन्होने कक्षा 8 तक की शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने 9 से 12 तक की शिक्ष हाई स्कूल फॉर गर्ल्स, सिकंदराबाद से प्राप्त की। पॉलिटिकल साइंस में उस्मानिया यूनिवर्सिटी से 1972 में एम.ए. की परीक्षा पास की तथा 1976 में उन्होंने जवाहरलाल यूनिवर्सिटी से डॉक्ट्रेट की उपाधि प्राप्त की।
उनकी दो बेटियां थी। शांता सिन्हा ने अपने क्लासमेट से ही शादी कर ली थी। जिंदगी आराम से गुजर रही थी। तभी उनके पति को मस्तिष्क में बीमारी हुई। और अपने पति को खो दिया। इसके बाद शांता सिन्हा के जीवन में नया मोड़ आया। शांता सिंह ने मममीदिपुड़ी वेंकटारागैया फाउंडेशन की स्थापना की। जिसका वे संस्थापक भी हैं।
अपनी पति के गुजर जाने के बाद शांता सिन्हा हैदराबाद लौट आई और यहां आसपास के गांवों में उन्होंने जाना शुरू कर दिया। वहां जा कर लोगों से मिली, बातचीत की। दलित परिवार, बंधुआ मजदूरों से मिली। ऐसे करते-करते लोगों से मिलने का सिलसिला शुरू हुआ। लोगों को पढ़ाना शुरू किया।
बंधुआ मजदूरों में करीब 40 फीसदी बच्चे थे। इतनी बड़ी संख्या देखकर शांता सिन्हा ने बच्चों को पढ़ाने का प्रयास। आसपास लोगों को जागरूक किया। शांता सिन्हा ने खुद ही बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। गरीब बच्चों की अच्छी शिक्षा के लिए बच्चों की मदद करना शुरू कर दिया। इस फाउंडेशन की मदद से लागों की बेहतर शिक्षा देने का प्रयास किया।
अपने इस फाउंडेशन के माध्यम से शांता सिन्हा अभी तक करीब 10 लाख से अधिक बच्चों को परिश्रम से मुक्त कराया जा चुका है। अपने अथक प्रयास से करीब 168 गांव बाल श्रम मुक्त कर हो चुके। और कई बच्चों का स्कूल में एडमिशन भी कराया गया है।
शांता सिन्हा के इतने बड़े साहसिक कदम से लाखों बच्चों की जिंदगी संवर गई। 1998 में उन्हें उनके कार्य के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया गया। वहीं 2003 में उन्होंने अल्बर्ट शंकर अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार और मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया। गांधीवादी दृष्टिकोण को अपनाकर शांता सिन्हा ने लाखों बच्चों की जिंदगी बचा ली।