* महाराणा प्रताप का जीवन परिचय।
* कब है महाराणा प्रताप की जयंती और पुण्यतिथि।
* संक्षिप्त में महाराणा प्रताप का परिचय।
History of Maharana Pratap : धर्म की रक्षार्थ अपना बलिदान देने वाले वीर तेजस्वी राजा महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई, 1540 ईस्वी को राजस्थान के कुंभलगढ़ दुर्ग में हुआ था। विक्रमी संवत् के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष तृतीया को उनकी जयंती मनाई जाती है तथा 19 जनवरी को उनका बलिदान दिवस मनाया जाता है। उन्हें सिर्फ राजस्थान का ही नहीं अपितु संपूर्ण भारत का वीर सपूत कहा जाता है।
आपको बता दें कि मेवाड़ के इतिहास का स्रोत वीर विनोद में उनकी पुण्यतिथि माघ शुक्ल एकादशी को बताई गई है और उनके निधन के दिन यह एकादशी 29 जनवरी को ही थी। इसका उल्लेख करते मेवाड़ के सबसे प्रामाणिक ग्रंथ के लेखक और इतिहासकार श्यामलदास ने यही तिथि बताई है तथा विकीपीडिया पर महाराणा प्रताप की पुण्यतिथि 19 जनवरी को दर्ज है।
आइए यहां जानते हैं महाराणा प्रताप सिंह सिसौदिया के संपूर्ण जीवन परिचय के बारे में-
नाम- कुंवर प्रताप जी (श्री महाराणा प्रताप सिंह जी)
जन्म दिनांक- 9 मई, 1540 ई.
पंचांग तिथि : ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष तृतीया
जन्म भूमि- कुंभलगढ़, राजस्थान
पुण्यतिथि- 29 जनवरी, 1597 ई.
पिता- श्री महाराणा उदयसिंह जी
माता- राणी जीवत कँवर जी
राज्य- मेवाड़
राजधानी : उदयपुर
शासन काल- 1568–1597ई.
शासन अवधि- 29 वर्ष
वंश- सूर्यवंश
राजवंश- सिसोदिया
राजघराना- राजपूताना
धार्मिक मान्यता- हिंदू धर्म
युद्ध- हल्दीघाटी का युद्ध
राजधानी- उदयपुर
पूर्वाधिकारी- महाराणा उदयसिंह
उत्तराधिकारी- राणा अमर सिंह
घोड़े का नाम : चेतक
भाले का वजन : 80 किलोग्राम
कवच का वजन : 80 किलोग्राम। कवच, भाला, ढाल, और हाथ में तलवार का वजन मिलाएं तो कुल वजन 207 किलो था।
खास बातें....
* महाराणा प्रताप का वजन 110 किलो और लंबाई 7'5' थी।
* वीर सपूत महाराणा प्रताप ने सोने, चांदी और महलों का त्याग करके 20 वर्षों तक मेवाड़ के जंगलों में भटकते रहें।
* हल्दी घाटी युद्ध में मेवाड़ से 20000 सैनिक और तुर्क अकबर की ओर से 85000 सैनिक युद्ध में सम्मिलित थे।
* अपनी मृत्यु से पहले महाराणा प्रताप ने अपना खोया हुआ 85% मेवाड़ फिर से जीत लिया था।
* महाराणा प्रताप ने जब महलों का त्याग किया, तब उनके साथ लुहार जाति के हजारों लोगों ने भी घर छोड़ा और दिन-रात महाराणा की फौज के लिए तलवारें बनाईं। * हल्दी घाटी के युद्ध के 300 साल बाद भी वहां जमीनों में तलवारें पाई गई। आखिरी बार तलवारों का जखीरा 1985 में हल्दी घाटी में मिला था।
* महाराणा प्रताप के साथी रहे मेवाड़ के लुहार और आदिवासी भील समाज ने हल्दी घाटी में अकबर की सेना के छक्के छुड़ा दिए थे।
* एक बार जब अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन भारत के दौरे पर आ रहे थे, तो उन्होंने अपनी मां से पूछा… 'मैं आपके लिए भारत से क्या लेकर आऊं, तो उनकी मां ने कहा था भारत से तुम हल्दी घाटी की मिट्टी लेकर आना, जिसे हजारों वीरों ने अपने खून से सींचा है।' महाराणा प्रताप ने धन-दौलत सबकुछ छोड़ दिया लेकिन कभी अपना सिर नहीं झुकाया और हिन्द के सभी राजकुमारों में अकेले ही उन्होंने अपना सम्मान कायम रखा।'
* आज भी महाराणा प्रताप की तलवार, कवच आदि सामान उदयपुर राजघराने के संग्रहालय में सुरक्षित हैं।