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Written By WD Feature Desk

6 जनवरी : ब्रेल लिपि के जनक लुई ब्रेल की पुण्यतिथि पर विशेष

Louis Braille Death Anniversary | 6 जनवरी : ब्रेल लिपि के जनक लुई ब्रेल की पुण्यतिथि पर विशेष
lui brail : आज लुई ब्रेल की पुण्यतिथि है। मात्र 43 वर्ष की उम्र में लुई ब्रेल का निधन 6 जनवरी 1852 को हो गया था। आज उनकी पुण्यतिथि है। आइए जानते हैं उनके बारे में- 
 
लुई ब्रेल (लुइस ब्रेल) का जन्म 4 जनवरी सन् 1809 में फ्रांस (France) की राजधानी पेरिस (Peris) से 40 किमी दूर कूपरे नामक गांव में हुआ था। लुई ब्रेल स्वयं दृष्टिहीन (blind) थे। लुई चार भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। 
 
लुई की माता मोनिक ब्रेल एक घरेलू महिला तथा पिता सायमन ब्रेल घोड़ों की जीन बनाने का एक कारखाना चलाते थे। लुई ने अपने आसपास ऐसे बहुत-से लोग देखे होंगे जिनकी आंखें तो हैं, पर दृष्टि या नजर नहीं है अर्थात् आंखें होने के बावजूद वे कुछ भी देखने में असमर्थ होते हैं। आज हम ऐसे दृष्टिहीन लोगों को बहुत सामर्थ्य के साथ अनेक जगहों पर काम करते हुए देखते हैं, लेकिन पहले ऐसा नहीं था। 
 
अंधे व्यक्ति या तो किसी के आश्रित होते थे या उन्हें भीख मांगकर अपना जीवन गुजारना पड़ता था। फ्रांस के लुई ब्रेल ने स्वयं एक दृष्टिहीन होने के बावजूद दृष्टिहीनों को पढ़ने-लिखने के योग्य बनाया। सामान्य बच्चे या तो रोमन लिपि (Roman Lipi) में पढ़ते हैं या देवनागरी लिपि (Devnagari Lipi) में, लेकिन दृष्टिहीन बच्चों के पढ़ने के लिए लुई ब्रेल ने एक अलग लिपि विकसित की और उसे ब्रेल लिपि (brail lipi) नाम मिला। 
 
जब महज 3 साल की उम्र में लुई ब्रेल ने एक दिन खेलते-खेलते उन्होंने जीन के लिए चाकू से चमड़ा काटने का प्रयास किया, तब चाकू आंख में जा लगा और लुई की एक आंख हमेशा के लिए दृष्टिहीन हो गई। उस आंख में हुए संक्रमण की वजह से कुछ दिनों बाद उन्हें दूसरी आंख से भी दिखना बंद हो गया और वे पूरी तरह दृष्टिहीन हो गए। लुई के जीवन 7 वर्ष ऐसे ही गुजरे, 10 वर्ष की उम्र में उनके पिता ने उन्हें पेरिस के रॉयल नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर ब्लाइंड चिल्ड्रन (Royal National Institute for the Blind Children) में भर्ती करवा दिया। 
 
उस स्कूल में वेलंटीन होउ द्वारा बनाई गई लिपि से पढ़ाई होती थी, पर यह लिपि अधूरी थी। लुई ने यहां इतिहास, भूगोल और गणित में कुशलता हासिल की थी। इसी स्कूल में एक बार फ्रांस की सेना के एक अधिकारी कैप्टन चार्ल्स बार्बियर एक प्रशिक्षण के सिलसिले में आए और उन्होंने सैनिकों द्वारा अंधेरे में पढ़ी जाने वाली 'नाइट राइटिंग' या 'सोनोग्राफी' लिपि के बारे में बताया। 
 
यह लिपि कागज पर अक्षरों को उभार कर बनाई जाती थी और इसमें 12 बिंदुओं को 6-6 की दो पंक्तियों को रखा जाता था, पर इसमें विराम चिह्न, संख्‍या, गणितीय चिह्न आदि का अभाव था। प्रखर बुद्धि के लुई ने इसी लिपि को आधार बनाकर 12 की बजाय मात्र 6 बिंदुओं का उपयोग कर 64 अक्षर और चिह्न बनाए और उसमें न केवल विराम चिह्न बल्कि गणितीय चिह्न और संगीत के नोटेशन भी लिखे जा सकते थे। यही लिपि आज सर्वमान्य है। मात्र 15 वर्ष के उम्र में लुई ने यह लिपि बनाई। 
 
इस‍ लिपि में स्कूली बच्चों के लिए पाठ्‍यपुस्तकों के अलावा रामायण, महाभारत जैसे ग्रंथ प्रतिवर्ष छपने वाला कालनिर्णय पंचांग आदि उपलब्ध हैं। ब्रेल लिपि में पुस्तकें भी निकलती हैं। बाद में लुई ब्रेल को उसी विद्यालय में शिक्षक के रूप में नियुक्ति दी गई। व्याकरण, भूगोल, गणित में उन्हें महारत हासिल थी। लेकिन अच्‍छा काम करने वालों को शुरुआत में अक्सर उपेक्षा का सामना करना पड़ता है, लुई ब्रेल के साथ भी यह हुआ। उनके जीवनकाल में ब्रेल लिपि को मान्यता नहीं मिली। 
 
सन् 1851 में लुई ब्रेल की तबियत बिगड़ने लगी और 6 जनवरी 1852 को मात्र 43 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया था। नेत्रहीनों के लिए ब्रेल लिपि का निर्माण करने वाले लुई ब्रेल की याद में 4 और 6 जनवरी को खास दिन मनाया जाता है, क्योंकि लुई ब्रेल के अथक प्रयासों की वजह से ही नेत्रहीनों को पढ़ने का मौका मिला। उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया गया है। उन्होंने दृष्टिहीन बच्चों के लिखने तथा पढ़ने की प्रणाली विकसित की। यह पद्धति वाज 'ब्रेल' नाम से जगप्रसिद्ध है। 
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