HIGHLIGHTS
• लाल बहादुर शास्त्री भारत के दूसरे प्रधानमंत्री थे।
• शास्त्री जी स्वाधीनता आंदोलन में अहम योगदान दिया।
• भारत में हरित क्रांति लाने में शास्त्री जी का अहम योगदान रहा।
Lal Bahadur Shastri : 11 जनवरी को लाल बहादुर शास्त्री की पुण्यतिथि है। आज भी भारतवासी उनकी सादगी, देशभक्ति और ईमानदारी के लिए श्रद्धापूर्वक याद और नमन करता है। आइए जानते हैं उनकी पुण्यतिथि पर उनके जीवन के बारे में 22 खास बातें-
1. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख राजनेता लाल बहादुर शास्त्री का जन्म मुगलसराय, उत्तरप्रदेश में 2 अक्टूबर, 1904 को 'मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव' के घर हुआ था। उनकी माता का नाम 'रामदुलारी' था।
2. लाल बहादुर शास्त्री के पिता प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक थे। ऐसे में सब उन्हें 'मुंशी जी' ही कहते थे। बाद में उन्होंने राजस्व विभाग में क्लर्क की नौकरी कर ली थी।
3. बालक लाल बहादुर के परिवार में सबसे छोटा होने के कारण उन्हें घर वाले प्यार से 'नन्हे' कहकर ही बुलाया करते थे।
4. जब नन्हे 18 महीने के हुए तब दुर्भाग्य से उनके पिता का निधन हो गया। उनकी मां रामदुलारी अपने पिता हजारीलाल के घर मिर्जापुर चली गईं। कुछ समय बाद उसके नाना भी नहीं रहे।
5. बिना पिता के बालक नन्हे की परवरिश करने में उसके मौसा रघुनाथ प्रसाद ने उसकी मां का बहुत सहयोग किया। ननिहाल में रहते हुए नन्हे ने प्राथमिक शिक्षा ग्रहण की। उसके बाद की शिक्षा हरिश्चंद्र हाई स्कूल और काशी विद्यापीठ में हुई।
6. काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि मिलते ही शास्त्री जी ने अपने नाम के साथ जन्म से चला आ रहा जातिसूचक शब्द श्रीवास्तव हमेशा के लिए हटा दिया और अपने नाम के आगे शास्त्री लगा लिया। इसके पश्चात 'शास्त्री' शब्द 'लाल बहादुर' के नाम का पर्याय ही बन गया।
7. बाद के दिनों में 'मरो नहीं, मारो' का नारा लाल बहादुर शास्त्री ने दिया जिसने एक क्रांति को पूरे देश में प्रचंड किया।
8. उनका दिया हुआ एक और नारा 'जय जवान-जय किसान' तो आज भी लोगों की जुबान पर है।
9. भारत में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए असहयोग आंदोलन के एक कार्यकर्ता लाल बहादुर शास्त्री सन् 1921 में थोड़े समय के लिए जेल गए। रिहा होने पर उन्होंने एक राष्ट्रवादी विश्वविद्यालय काशी विद्यापीठ (वर्तमान में महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ) में अध्ययन किया और स्नातकोत्तर शास्त्री (शास्त्रों का विद्वान) की उपाधि पाई।
10. संस्कृत भाषा में स्नातक स्तर तक की शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे भारत सेवक संघ से जुड़ गए और देशसेवा का व्रत लेते हुए यहीं से अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत की और भारतीय स्वाधीनता संग्राम में अपनी महत्वूपर्ण भागीदारी निभाई।
11. शास्त्री जी सच्चे गांधीवादी थे जिन्होंने अपना सारा जीवन सादगी से बिताया और उसे गरीबों की सेवा में लगाया।
12. भारतीय स्वाधीनता संग्राम के सभी महत्वपूर्ण कार्यक्रमों व आंदोलनों में उनकी सक्रिय भागीदारी रही और उसके परिणामस्वरूप उन्हें कई बार जेलों में भी रहना पड़ा।
13. स्वाधीनता संग्राम के जिन आंदोलनों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही उनमें 1921 का असहयोग आंदोलन, 1930 का दांडी मार्च तथा 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन उल्लेखनीय हैं।
14. शास्त्री जी के राजनीतिक दिग्दर्शकों में पुरुषोत्तम दास टंडन और पंडित गोविंद बल्लभ पंत के अतिरिक्त जवाहरलाल नेहरू भी शामिल थे।
15. सबसे पहले 1929 में इलाहाबाद आने के बाद उन्होंने टंडन जी के साथ भारत सेवक संघ की इलाहाबाद इकाई के सचिव के रूप में काम करना शुरू किया।
16. इलाहाबाद में रहते हुए ही नेहरू जी के साथ उनकी निकटता बढ़ी। इसके बाद तो शास्त्री जी का कद निरंतर बढ़ता ही चला गया और एक के बाद एक सफलता की सीढियां चढ़ते हुए वे नेहरू जी के मंत्रिमंडल में गृहमंत्री के प्रमुख पद तक जा पहुंचे।
17. 1961 में गृह मंत्री के प्रभावशाली पद पर नियुक्ति के बाद उन्हें एक कुशल मध्यस्थ के रूप में प्रतिष्ठा मिली।
18. 3 साल बाद जवाहरलाल नेहरू के बीमार पड़ने पर उन्हें बिना किसी विभाग का मंत्री नियुक्त किया गया और नेहरू की मृत्यु के बाद जून 1964 में वह भारत के प्रधानमंत्री बने।
19. उन्होंने अपने प्रथम संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि उनकी पहली प्राथमिकता खाद्यान्न मूल्यों को बढ़ने से रोकना है और वे ऐसा करने में सफल भी रहे। उनके क्रियाकलाप सैद्धांतिक न होकर पूरी तरह से व्यावहारिक और जनता की आवश्यकताओं के अनुरूप थे। निष्पक्ष रूप से देखा जाए तो शास्त्री जी का शासन काल बेहद कठिन रहा।
20. भारत की आर्थिक समस्याओं से प्रभावी ढंग से न निपट पाने के कारण शास्त्री जी की आलोचना भी हुई, लेकिन जम्मू-कश्मीर के विवादित प्रांत पर पड़ोसी पाकिस्तान के साथ 1965 में हुए युद्ध में उनके द्वारा दिखाई गई दृढ़ता के लिए उनकी बहुत प्रशंसा हुई।
21. ताशकंद में पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के साथ युद्ध न करने की ताशकंद घोषणा के समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद इस महान पुरुष का 11 जनवरी 1966 को हृदयगति रुक जाने से निधन हो गया।
22. वर्ष 1966 में उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया।