• Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. नन्ही दुनिया
  3. प्रेरक व्यक्तित्व
  4. Indian Freedom Fighter Tatya Tope
Written By

आपको जानना जरूरी है तात्या टोपे के बारे में ये विशेष 7 बातें

आपको जानना जरूरी है तात्या टोपे के बारे में ये विशेष 7 बातें - Indian Freedom Fighter Tatya Tope
Tatya Tope Life Story
 
जन्म - 1814
मृत्यु - 18 अप्रैल, 1859
 
तात्या टोपे का जन्म 1814 में येवला में हुआ। तात्या का वास्तविक नाम रामचंद्र पांडुरंग राव था, परंतु लोग स्नेह से उन्हें तात्या के नाम से पुकारते थे। पिता का नाम पांडुरंग त्र्यंबक भट था तथा माता का नाम रुक्मिणी बाई था। वे एक देशस्थ कुलकर्णी परिवार में जन्मे थे।


उनके पिता बाजीराव पेशवा के धर्मदाय विभाग के प्रमुख थे। उनकी विद्वत्ता एवं कर्तव्य परायणता देखकर बाजीराव ने उन्हें राज्सभा में बहुमूल्य नवरत्न नवरत्नों से जड़ी हुई टोपी देकर उनका सम्मान किया था, तबसे उनका उपनाम 'टोपे' पड़ गया।
 
 
तात्या टोपे को सन् 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणीय वीरों में उच्च स्थान प्राप्त है। उनका जीवन अद्वितीय शौर्य गाथा से भरा हुआ है। आइए जानते हैं तात्या के बारे में कुछ विशेष बातें- 
 
* पेशवाई की समाप्ति के पश्चात बाजीराव ब्रह्मावर्त चले गए। वहां तात्या ने पेशवाओं की राज्यसभा का पदभार ग्रहण किया।
 
* 1857 की क्रांति का समय जैसे-जैसे निकट आता गया, वैसे-वैसे वे नानासाहेब पेशवा के प्रमुख परामर्शदाता बन गए।
 
 
* तात्या ने 1857 की क्रांति में अंग्रेजों से अकेले सफल संघर्ष किया।
 
* 3 जून 1858 को रावसाहेब पेशवा ने तात्या को सेनापति के पद से सुशोभित किया। भरी राज्यसभा में उन्हें एक रत्नजड़‍ित तलवार भेंट कर उनका सम्मान किया गया।
 
* तात्या ने 18 जून 1858 को रानी लक्ष्मीबाई के वीरगति के पश्चात गुरिल्ला युद्ध पद्धति की रणनीति अपनाई। तात्या टोपे द्वारा गुना जिले के चंदेरी, ईसागढ़ के साथ ही शिवपुरी जिले के पोहरी, कोलारस के वनों में गुरिल्ला युद्ध करने की अनेक दंतकथाएं हैं।
 
 
* 7 अप्रैल 1859 को तात्या शिवपुरी-गुना के जंगलों में सोते हुए धोखे से पकड़े गए। बाद में अंग्रेजों ने शीघ्रता से मुकदमा चलाकर 15 अप्रैल को 1859 को राष्ट्रद्रोह में तात्या को फांसी की सजा सुना दी।
 
* 18 अप्रैल 1859 की शाम ग्वालियर के पास शिप्री दुर्ग के निकट क्रांतिवीर के अमर शहीद तात्या टोपे को फांसी दे दी गई। इसी दिन वे फांसी का फंदा अपने गले में डालते हुए मातृभूमि के लिए न्यौछावर हो गए थे।