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Last Modified: गुरुवार, 14 दिसंबर 2017 (20:30 IST)

'स्मरण श्रीराम ताम्रकर' में 'सद्‍गति' का सशक्त प्रदर्शन

'स्मरण श्रीराम ताम्रकर' में 'सद्‍गति' का सशक्त प्रदर्शन - Shriram Tamarkar, Seminar, Satyajit Ray, Documentary Film
इंदौर। मध्यप्रदेश सरकार के संस्कृति विभाग द्वारा सुप्रतिष्ठित फिल्म विश्लेषक एवं संपादक स्व. श्रीराम ताम्रकर की स्मृति में आयोजित दो दिवसीय गोष्ठी के दूसरे दिन सुबह के सत्र में सत्यजीत रे की डाक्यूमेंट्री 'सद्‍गति' का प्रदर्शन किया गया। डॉ. अनिल चौबे ने इस डाक्यूमेंट्री की पृष्‍ठभूमि से लेकर सत्यजीत रे के विराट व्यक्तित्व को साझा किया।
 
डॉ. चौबे ने बताया कि सत्यजीत रे ने अपने फिल्मी जीवनकाल में 36 कथा चित्र और डाक्यूमेंट्री फिल्में बनाईं। गैर बांग्ला भाषा में उन्होंने दो ही टेलीफिल्में बनाईं और दोनों ही हिंदी फिल्में मुंशी प्रेमचंद की कहानियों पर आधारित थीं। 
 
इन टेलीफिल्मों में से एक थी 'शतरंज के खिलाड़ी' और दूसरी सद्‍गति'। शतरंज के खिलाड़ी को आप शुद्ध हिंदी फिल्म नहीं कह सकते, क्योंकि उसमें अंग्रेजी और अ‍वधि भाषा का अधिक प्रयोग हुआ। हां, 'सद्गति' में शुद्ध रूप से हिंदी का प्रयोग हुआ। 
डॉ. चौबे ने बताया कि सत्यजीत रे अपनी हर फिल्म की पटकथा खुद ही लिखते थे। 'सद्गति' की मूल कथा में उन्होंने कोई बदलाव नहीं किया। वे शूटिंग के लिए बकायदा छत्तीसगढ़ आए और 3 गांवों की लोकेशन देखी। तब छत्तीसगढ़ मध्यप्रदेश का हिस्सा हुआ करता था। संस्कृति मंत्री थे अशोक वाजपेयी और रायपुर के कलेक्टर थे नजीब जंग, जो बाद में दिल्ली के उपराज्यपाल भी बने।
 
सत्यजीत ने जब शूटिंग के लिए गांवों का दौरा किया तो उन्हें कई जगह रावण की सीमेंट की मूर्ति दिखाई दीं। अपनी पटकथा के कवर पेज पर उन्होंने रावण के साथ अपना फोटो भी खिंचवाया। जब उन्होंने 50 मिनट की ये डाक्यूमेंटी बनाई तो अपने बेटे अमृत रे को भी साथ रखा।
 
डॉ. चौबे के अनुसार, सत्यजीत रे ने बहुत कम कलर फिल्में बनाईं। इनमें उन्होंने 'सद्गति' को भी शामिल किया। स्मिता पाटिल और ओमपुरी के साथ वे अपनी 28 लोगों की यूनिट को लेकर छत्तीसगढ़ आए और केवल एक सप्ताह में शूटिंग पूरी करके वापस कोलकाता लौट गए यानी ये फिल्म केवल 7 दिनों में ही पूरी हो गई।
1981 में दूरदर्शन पर प्रसारित डाक्यूमेंट्री 'सद्गति' को सत्यजीत रे ने ईमानदारी से गढ़ा और यही कारण है कि फिल्म का एक एक शॉट बहुत गहराई लिए है। सही मायने में वे विश्व सिनेमा की धरोहर हैं।  
 
फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस का सबसे बड़ा सम्मान देने लिए भारत ही नहीं आए, बल्कि कोलकाता में सत्यजीत रे के घर जाकर उन्हें ये सम्मान प्रदान किया। वे भारत के इकलौते ऐसे फिल्मकार हैं, जिन्हें ऑस्कर के 'लाइफ टाइम अचीवमेंट' से नवाजा गया है। (वेबदुनिया न्यूज)
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