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Last Modified: बुधवार, 21 जून 2023 (19:15 IST)

पहली बार लेप्रोस्कोपी के माध्यम से हुआ मीडियन आर्कुएट लिगामेंट सिंड्रोम का उपचार

पहली बार लेप्रोस्कोपी के माध्यम से हुआ मीडियन आर्कुएट लिगामेंट सिंड्रोम का उपचार - Median arcuate ligament syndrome treated for the first time through laparoscopy
इंदौर। कहा जाता है कि सारी बीमारियां पेट से ही शुरू होती हैं और बहुत हद तक यह सच भी लगता है। शैल्बी हॉस्पिटल में 18 वर्षीय युवक ने आकर पेट दर्द की अजीबोगरीब समस्या बताई तो लेप्रोस्कोपी व बेरियाट्रिक सर्जन डॉ. अचल अग्रवाल ने इसकी जांच की और पाया कि यह मरीज मीडियन आर्कुएट लिगामेंट सिंड्रोम से ग्रसित है जो काफी रेयर किस्म की बीमारी है। डॉ. अग्रवाल पिछले 15 सालों में ऐसे 3 मामलों का निदान कर चुके हैं।

दिल से शरीर को खून पहुंचाने वाली नस को एओर्टा कहा जाता है जिसमें से एक नस निकलती है जो आमाशय (भोजन की थैली) और लिवर को खून पहुंचाती है। मीडियन आर्कुएट लिगामेंट नाम के इस सिंड्रोम में उस नस में मांसपेशियों की एक मोटी परत बन जाती है और इस कारण खून के पहुंचने में समस्या होने लगती है। इस बीमारी में खाना पचाने में तकलीफ, भूख न लगना, उल्टी, पेट में दर्द या तनाव, पेट में भारीपन, दस्त, वजन कम होना, थकान आदि समस्याएं होती हैं।

डॉ. अग्रवाल ने इसके बारे में विस्तार से कहा, मीडियन आर्कुएट लिगामेंट सिंड्रोम की जांच करने के लिए सीटी स्कैन, सीटी एंजियोग्राफी एवं कलर डॉप्लर की जरूरत होती है। इस बीमारी का इलाज पहले दवाइयों से किया जाता है, पर अगर फिर भी समस्या बनी रहती है तो ऑपरेशन ही एकमात्र उपाय बचता है।

डॉ. अग्रवाल कहा, ऐसी एक सर्जरी हमने शैल्बी हॉस्पिटल में बीते दिनों की। अठारह साल का सुमित यादव काफी समय से इस बीमारी से पीड़ित था। हमने दूरबीन पद्धति से इसका सफल ऑपरेशन किया। संभवतः मीडियन आर्कुएट लिगामेंट की सफल सर्जरी दूरबीन पद्धति से पहली बार हुई है।

उन्‍होंने कहा, मरीज की नस से एक मोटी परत को निकालना काफी जोखिमभरा काम था, इसके बैकअप के लिए वस्कुलर सर्जन भी हमारे साथ मौजूद थे, लेकिन हमें वस्कुलर सर्जन की जरूरत नहीं पड़ी और ऑपरेशन सफल रहा। मरीज को ऑपरेशन के 6 घंटे बाद से ही तरल पदार्थ देना शुरू कर दिए गए और अगले ही दिन उन्‍हें हॉस्पिटल से छुट्टी भी दे दी गई। केवल दो दिनों में सुमित पूरी तरह से रिकवर हो गए और अब हालत सामान्य है।

मेडिकल सुप्रिटेंडेंट डॉ. विवेक जोशी के अनुसार, शैल्बी अस्पताल में सभी प्रकार की लेप्रोस्कोपी एवं अन्य रोगों से संबंधित सभी उपकरण और दक्ष डॉक्टर्स की टीम मौजूद है। लेप्रोस्कोपी पद्धति से यह ऑपरेशन बेहद चुनौतीपूर्ण था, लेकिन शैल्बी हॉस्पिटल में इसे सफल किया गया है। केवल तीन छोटे-छोटे चीरे लगाकर ही इसका सफल निदान कर दिया गया।

डॉ. अचल अग्रवाल, डॉ. निशांत शिव, एनेस्थेटिस्ट डॉ. जाकिर हुसैन, डॉ. अमृता सिरोठिया और उनकी पूरी टीम ने इसमें सराहनीय काम किया है और आगे भी अपनी सेवाएं देने के लिए तत्पर हैं।

हॉस्पिटल के यूनिट हेड अंकुर खरे ने शैल्बी की पूरी टीम को शुभेच्छा देते हुए कहा, दूरबीन पद्धति में कई उपकरणों और सुविधाओं की आवश्यकता होती है, जो शैल्बी हॉस्पिटल में मौजूद है। हम ऐसी चुनौतीपूर्ण समस्याओं के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। इससे पहले भी हम मार्जिनल किडनी ट्रांसप्लांट जैसी समस्याओं का सफलतापूर्वक उपचार कर चुके हैं और आगे भी मरीजों की सेवा के लिए कार्यरत हैं।
Edited By : Chetan Gour
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