शुक्रवार, 22 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. रेसिपी
  3. भारतीय व्यंजन
  4. History of Bati
Written By
Last Modified: बुधवार, 24 मई 2023 (17:51 IST)

मालवा-राजस्थान के व्यंजन बाटी और बाफले का क्या है इतिहास?

मालवा-राजस्थान के व्यंजन बाटी और बाफले का क्या है इतिहास? - History of Bati
Bati ka itihas : दाल-बाटी एक पारंपरिक राजस्थानी व्यंजन है, जो मालवा, निमाड़ और छत्तीसगढ़ के साथ-साथ पूरे भारतभर में लोकप्रिय है। इसे लड्डू और लहसुन हरी धनिया की चटनी के साथ खाने का प्रचलन है। राजस्थान में इसके साथ चूरमा, कढ़ी, सलाद, बेसन के गट्टे की सब्ज़ी परोसा जाता है। आखिर बाटी और बाफले को बनाना कब प्रचलन में आया और क्या है इसका इतिहास।
 
बाटी बाफले का इतिहास : मेवाड़ के राजा भप्पा रावल के सिपाही जब युद्ध के लिए जाते तो शाम को थकेहारे लौटके के बाद पुन: कैंप में आकर उन्हें रोटियां सेंकना पड़ती थी। इसके समय भी ज्यादा लगता था और थकान भी और ज्यादा हो जाती थी।
 
खाने के लिए उन्हें बड़ी समस्या का सामना करना होता था। खासकर ऐसी जगह जहां पर पानी की कमी और तेज धूप हो। ऊपर से इतने सारे सैनिकों के लिए ऐसा खाना चाहिए, जो जल्दी बन भी जाए और सब का पेट भी भर जाए, परंतु ऐसा हो नहीं पाता था। ऐसे में सैनिकों ने एक उपाय निकाला। वे दरदरी पिसे आटे में ऊंटनी का दूध मिलाकर आटा गूंधकर गोले बना लेते थे और तपती रेत में दबाकर युद्ध लड़ने चले जाते थे।
शाम को जब वे पुन: लौटते तो गर्म रेत के कारण ये गोले पक जाते थे, जिसे ढेर सारे घी और ऊंटनी के दूध के साथ ये सिपाही खा लेते थे। दाल तो इन बाटियों के साथ बाद में जुड़ी। और फिर इसी बार्टी को नरम बनाने के लिए उसे पानी में उबालकर बनाए जाने लगा जिसे बाफले कहा गया। इसमें स्वाद बढ़ाने के लिए आटे में अजवाइन या सौंफ डाला जाता है। इसका मोयन भी अलग डलता है। बाफलों को सेकने से पहले हल्दी वाले पानी में उबाला जाता है।
 
हालांकि कुछ लोग मानेत हैं कि राजस्थान में रहने वाली एक आदिवासी प्रजाति ने बाटी बनाने की खोज की थी।
ये भी पढ़ें
40 की उम्र के बाद हर महिला को करवाना चाहिए ये 5 medical test