आपने त्रिदेवी, नौदुर्गा और दस महाविद्याओं के नाम से सुनें ही होंगे, परंतु क्या आपने सप्त मातृका देवियों के नाम सुनें हैं? क्या होती हैं सप्त मातृका और क्या हैं इन सात देवियों के नाम? हालांकि यूं तो प्रमुख रूप से सात मातृका ही होती हैं परंतु कहीं कहीं पर नौ का भी जिक्र है।
क्या है सप्त मातृका | What is Sapta Matrika? : हिन्दू धर्म के शास्त संप्रदाय में सप्त मातृका की पूजा होती है। जिसे सप्तमात्रिरिका भी कहते हैं। इन्हें 'मातृका' या 'मातर' भी कहते हैं। कुछ विद्वान उन्हें शैव देवी मानते हैं। सप्तमातृका, अर्थात् सात माताएं। देवी माहात्मय/दुर्गा सप्तशती में सप्त मातृकाओं का उल्लेख मिलता है। यह भी कहते हैं कि ये विभिन्न देवताओं की शक्तियां हैं जो आवश्यकतानुसार या असुरों के संहार हेतु उनके भीतर से उदित होती हैं।
सप्त मातृका देवियों के नाम | Names of Sapta Matrika Goddesses:
ब्राह्मणी मातृका : ये ब्रह्मा की पीतवर्ण शक्ति हैं, जो हंस पर आरूढ़ हैं। इनके कहीं कहीं तीनमुख भी दर्शाए गए हैं। यदि उनके पृष्ठभाग में एक अतिरिक्त मुख की कल्पना की जाए तो वे चार मुखी ब्रम्हा का प्रतिनिधित्व करती हैं। वे अपने 2 हाथों में अक्षमाला एवं जल का कलश धारण करती हैं। जहां उनके 4 हाथ दर्शाए जाते हैं वहां उनके अन्य दो हाथ अभय एवं वरद मुद्रा में होते हैं।
वैष्णवी मातृका : विष्णु की शक्ति वैष्णवी श्यामवर्ण हैं जो पीतवस्त्र धारण किए हुए हैं और उनके दो ऊर्ध्व करों में चक्र एवं गदा हैं तथा अन्य दो हस्त अभय एवं वरद मुद्रा में हैं। कभी कभी उनके हाथों में शंख, शारंग तथा एक तलवार भी होती हैं। उनकी वनमाला उनकी सम्पूर्ण देह पर प्रेम से लटकती रहती है। उनकी पीठिका पर विष्णुजी का वाहन गरुड़ भी विराजमान रहता है। कभी कभी उन्हें गरुड़ पर आरूढ़ भी दर्शाया जाता है।
माहेश्वरी मातृका : ये शिव की शक्ति हैं, जिनके शीश पर जटा मुकुट, कलाइयों में सर्प रूपी कंगन, माथे पर चंद्र तथा हाथों में त्रिशूल है। उजला वर्ण व देदीप्यमान रूप लिए वे ऋषभ की सवारी करती हैं।
इन्द्राणी मातृका : ये इंद्र की शक्ति हैं, जिनका वाहन गज है। उनके हाथ में वज्र और कभी कभी उनके दूसरे हाथ में अंकुश भी दिखाया जाता है। चार मुख वाली माता के दो हाथ अभय एवं वरद मुद्रा में रहते हैं। वे लाल एवं सुनहरे वस्त्र धारण एवं उत्कृष्ट आभूषण धारण करती हैं।सकती हैं।
कौमारी मातृका : शिव पुत्र कुमार कार्तिकेय की शक्ति हैं। इसका वाहन मयूर है। कुछ शैलियों में उन्हें एकमुखी तो कुछ शैलियों में उन्हे 6 मुखों वाली दर्शाया गया है। उसी प्रकार, कहीं उन्हें द्विभुज तो कहीं चतुर्भुज दर्शाया गया है। वे गले में लाल पुष्पों की माला धारण करती हैं।
वाराही मातृका : भगवान यज्ञ वराह की शक्ति हैं। उन्हें उनका वराह जैसा शीश और मुख है। वाराही श्यामवर्ण हैं जो अपने शीश पर करण्डमुकुट धारण करती हैं। इनका विशेष लक्षण उन्हें अन्य सप्तमातृकाओं में से सर्वाधिक अभिज्ञेय बनाता है।
चामुण्डा मातृका : कभी कभी सप्तामातृकाओं की पट्टिका में नारसिंही के स्थान पर चामुंडा को दर्शाया जाता है। यह यम की शक्ति हैं। कंकाल सदृश देह पर लटकते वक्ष, धंसे नेत्र, धंसा उदर, ग्रीवा पर नरमुंड की माला तथा हाथों में नरमुंड का पात्र इत्यादि उनके रूप की विशेषताएं हैं। बाघचर्म धारण किए उनका यह रूप अत्यंत रौद्र एवं उद्दंड है।
इसका अलावा अन्य मातृका:- नारसिंही मातृका जिसे चामुण्डा ही माना गया है। इसी के साथ विनायकी मातृका भी है यानी कुल नौ मातृका है। किसी-किसी सम्प्रदाय में मातृकाओं की संख्या आठ बतायी गयी है। नेपाल में अष्टमातृकाओं की पूजा होती है। दक्षिण भारत में सप्तमातृकाएँ ही पूजित हैं।
कैसे उत्पन्न हुई मातृताएं : दो मातृकाएं शिव के परिवार से उत्पन्न हुई हैं, तीन विष्णु के विभिन्न अवतारों से उत्पन्न हुई हैं तथा ब्रह्मा एवं इन्द्र से एक एक मातृका उत्पन्न हुई है। नारसिंही विष्णु के नरसिंह अवतार की शक्ति हैं जिनकी आधी देह मानवी एवं आधी सिंह की है।