करवा चौथ पर एक कामकाजी महिला की कविता
क्या हुआ जो नहीं लगा पाई इस बरस मेहंदी
उनके प्रेम का रंग तो है न अब तक गाढ़ा
क्या हुआ जो नहीं खरीदी कोई साड़ी
उनकी परवाह का पैरहन तो है न कवच बनकर
क्या हुआ जो नहीं मिला कोई उपहार इस साल
सुबह याद से फूल तो ले ही आए थे चढ़ाने को
सिरहाने रखे हरसिंगार और नीली अपराजिता
कितना कुछ बोल रहे थे सुबह
मैं ही नहीं सुन पाई वो बात जो कहते रहे तुम दिन रात...
क्या हुआ जो कोई गहना नहीं मिला मुझे पिछले कई साल से
गृहस्थी की जाने कौन कौन सी किश्तें तो तुम भर ही देते हो याद से
उम्र किसकी लंबी है यह तो वक्त बताएगा
नौकरी की उलझन में मना करवा चौथ
किसी न किसी को कभी न कभी तो जरूर याद आएगा....