बढ़ रही है चारों तरफ रफ़्तार जिंदगी की।
हाई स्पीड, फिर सुपर स्पीड, अब तो प्रतीक बुलेट ट्रैन है।
पर इस सुपर स्पीड का साथ न दे पाने के कारण,
सामाजिक रिश्तों की उजड़ती बस्तियाँ बेचैन हैं।।
नई कॉलोनियाँ, बँगले, नव-नगर
हर नज़र से नए चारों ओर से।
छिटकते पर जा रहे हैं रिश्ते सभी
परम्परागत प्यार की मधु डोर से।।
नई जीवनशैलियों के वितानों तले
लुप्त हुए परम्परगत धूप-छांव ज्यों।
समय करवट ले रहा बेमुरव्वत
डूब में आते से बेबस गाँव ज्यों।।
अजनबी सब अपने आस-पड़ोस से,
रिश्तों में सहमे से और डरे डरे।
नव-सभ्यता की औपचारिक मानसिकता से
बेतकल्लुफ रिश्तों की पहल कौन करे।।
पीढ़ियाँ लगती हैं, सचमुच पीढ़ियाँ,
रिश्तों का रसमय संसार बसाने में।
किसको फुर्सत है भागमभाग भरे,
आत्मकेंद्रित सोच, संकुचित चिंतन के इस ज़माने में।।
असंतोष, कुंठा, खीज, असहिष्णुता,
हर मोड़ पर दिखती जो सरेआम है।
सामाजिक जीवन के ये बिखराव/तनाव
रिश्तों की टूटन के ही परिणाम हैं।।