गजल : ये जज़्बात, ये सोच, ये लड़ाई है नई-नई
फखरुद्दीन सैफी
ये जज़्बात, ये सोच, ये लडाई है नई-नई..
मेरी गलियों कि ये साफ-सफाई है नई नई।
वर्षों कि मेहनत से हमने यह मुकाम पाया है
विकसित देशों में हमने जगह बनाई है नई-नई।
शायद यह नौजवानी का ही असर है...
उनके व्यवहार में झिझक आई है नई-नई।
दिल तू अभी से सब कुछ लुटा बैठा है
अभी तो उनसे पहचान हुई है नई-नई।
इतनी जल्दी उन्हें मत दो तमगा ईमानदारी का
अभी तो उन्होंने सरकारी कूर्सी पाई हैं नई नई।
न जाने कितने जैसे फूल मुरझाएंगे नस्ली झगड़ों में
समुंदर पार भी अब सरकार बनी है नई-नई।
सैफ खुशनसीब है कि ये जमाना देखा है
इंसान ने खुद अपनी दुनिया बनाई हैं नई-नई।