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Last Modified: मंगलवार, 21 मार्च 2023 (17:34 IST)

हिन्दू नववर्ष को क्यों कहते हैं नव संवत्सर

हिन्दू नववर्ष को क्यों कहते हैं नव संवत्सर - Why is it called Nav Samvatsara
Hindu nav varsh ko kya kahte hai gudi padwa: अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 22 मार्च 2023 शनिवार को हिन्दू नववर्ष प्रारंभ हो रहा है। इस नववर्ष विक्रम संवत को सभी हिन्दी भाषी राज्यों में इसे गुड़ी पड़वा अन्य राज्यों में युगादि, उगादि, वरेह, चेटीचंड, विशु, वैशाखी, चित्रैय तिरुविजा, सजिबु नोंगमा पानबा या मेइतेई चेइराओबा के नाम से जाना जाता है। परंतु हर नववर्ष को नव संवत्सर भी कहा जाता है, जानिए क्यों?
 
दरअसल, जिस तरह प्रत्येक माह के नाम नियुक्त हैं, जैसे चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, अगहन, पौष, माघ और फाल्गुन, उसी तरह प्रत्येक आने वाले वर्ष का एक नाम होता है। 12 माह के 1 काल को संवत्सर कहते हैं और हर संवत्सर का एक नाम होता है। इस तरह 60 संवत्सर होते हैं। वर्तमान में विक्रम संवत् 2080 से 'पिंगला' नाम का संवत्सर प्रारंभ होगा। इसके पहले नल संवत्सर चल रहा था।
 
ज्योतिष में बृहस्पति और शुक्र ग्रह को मंगल कार्य के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। संवत्सर का संबंध बृहस्पति ग्रह की गति, राशि परिवर्तन, उसके उदय और अस्त से है। जैसे धरती के 12 मास होते हैं उसी तरह बृहस्पति ग्रह के 60 संवत्सर होते हैं। प्रतिपदा वाले दिन से 60 संवत्सरों में से एक नया संवत्सर प्रारंभ होता है। इसीलिए इसे नव संवत्सर भी कहते हैं। संवत्सर अर्थात बारह महीने की कालविशेष अवधि। बृहस्पति के राशि बदलने से इसका आरंभ माना जाता है।
 
60 संवत्सरों के नाम (Names of 60 Samvatsaras) : प्रत्येक वर्ष का अलग नाम होता है। कुल 60 वर्ष होते हैं तो एक चक्र पूरा हो जाता है। इनके नाम इस प्रकार हैं:- प्रभव, विभव, शुक्ल, प्रमोद, प्रजापति, अंगिरा, श्रीमुख, भाव, युवा, धाता, ईश्वर, बहुधान्य, प्रमाथी, विक्रम, वृषप्रजा, चित्रभानु, सुभानु, तारण, पार्थिव, अव्यय, सर्वजीत, सर्वधारी, विरोधी, विकृति, खर, नंदन, विजय, जय, मन्मथ, दुर्मुख, हेमलम्बी, विलम्बी, विकारी, शार्वरी, प्लव, शुभकृत, शोभकृत, क्रोधी, विश्वावसु, पराभव, प्ल्वंग, कीलक, सौम्य, साधारण, विरोधकृत, परिधावी, प्रमादी, आनंद, राक्षस, नल, पिंगल, काल, सिद्धार्थ, रौद्रि, दुर्मति, दुन्दुभी, रूधिरोद्गारी, रक्ताक्षी, क्रोधन और अक्षय।
बृहस्पति ग्रह के वर्षों के आधार पर युगों के नाम (Names of Yugas based on the years of Jupiter) : सूर्यसिद्धान्त अनुसार संवत्सर बृहस्पति ग्रह के आधार पर निर्धारित किए जाते हैं। 60 संवत्सरों में 20 -20-20 के तीन हिस्से हैं जिनको ब्रह्माविंशति (1-20), विष्णुविंशति (21-40) और शिवविंशति (41-60) कहते हैं। बृहस्पति की गति के अनुसार प्रभव आदि साठ वर्षों में बारह युग होते हैं तथा प्रत्येक युग में पांच-पांच वत्सर होते हैं। बारह युगों के नाम हैं– प्रजापति, धाता, वृष, व्यय, खर, दुर्मुख, प्लव, पराभव, रोधकृत, अनल, दुर्मति और क्षय। प्रत्येक युग के जो पांच वत्सर हैं, उनमें से प्रथम का नाम संवत्सर है। दूसरा परिवत्सर, तीसरा इद्वत्सर, चौथा अनुवत्सर और पांचवा युगवत्सर है। 12 वर्ष बृहस्पति वर्ष माना गया है। बृहस्पति के उदय और अस्त के क्रम से इस वर्ष की गणना की जाती है। इसमें 60 विभिन्न नामों के 361 दिन के वर्ष माने गए हैं। बृहस्पति के राशि बदलने से इसका आरंभ माना जाता है। 
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