Govardhan Parvat Curse : गोवर्धन पर्वत, जिसे भगवान कृष्ण के साथ विशेष रूप से जोड़ा जाता है, साल दर साल अपने आकार में घटता जा रहा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इसके घटने का कारण एक विशेष श्राप है। आइए जानते हैं इस रहस्यपूर्ण कथा के बारे में और किस प्रकार यह श्राप गोवर्धन पर्वत के अस्तित्व को प्रभावित कर रहा है।
क्या है गोवर्धन पर्वत का महत्व
गोवर्धन पर्वत का विशेष महत्व है, विशेषकर हिंदू धर्म में। इस पर्वत का उल्लेख श्रीमद्भागवत और विष्णु पुराण जैसी पवित्र ग्रंथों में मिलता है। गोवर्धन पर्वत का सबसे प्रसिद्ध प्रसंग वह है जब भगवान कृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर इस पर्वत को उठा लिया था, ताकि वृंदावन के निवासियों को इंद्रदेव के कोप से बचाया जा सके। इस घटना को गोवर्धन लीला के नाम से जाना जाता है और आज भी गोवर्धन पूजा के दौरान इस पर्वत की पूजा की जाती है।
क्या है गोवर्धन पर्वत को लगे श्राप की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, गोवर्धन पर्वत को एक ऋषि के श्राप के कारण घटते रहने का श्राप मिला था। मान्यता है कि पुलस्त्य ऋषि ने गोवर्धन से मांग की थी कि वह उनके साथ काशी चले, लेकिन गोवर्धन ने इसे अस्वीकार कर दिया। इससे क्रोधित होकर पुलस्त्य ऋषि ने गोवर्धन पर्वत को श्राप दिया कि वह प्रतिदिन एक तिल के बराबर घटता रहेगा। इस श्राप का प्रभाव आज भी देखा जा सकता है, क्योंकि माना जाता है कि गोवर्धन पर्वत हर दिन थोड़ा-थोड़ा घटता जा रहा है।
क्या है इस श्राप के पीछे वैज्ञानिक कारण
हालांकि धार्मिक मान्यताओं में गोवर्धन पर्वत के घटने का कारण श्राप बताया गया है, विज्ञान इसके पीछे प्राकृतिक कारणों की संभावना को देखता है। गोवर्धन क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन, कटाव और भूगर्भीय गतिविधियों के चलते इस पर्वत का आकार घट सकता है। फिर भी, भक्तों के लिए इस श्राप की कथा बहुत महत्वपूर्ण है, और वे इसे भगवान कृष्ण की लीलाओं और ऋषि-मुनियों के प्रभाव के प्रतीक के रूप में देखते हैं।
क्या गोवर्धन पर्वत का अस्तित्व रहेगा?
इस पौराणिक कथा के अनुसार, गोवर्धन पर्वत का अंततः लोप हो जाएगा, क्योंकि यह प्रतिदिन घटता जा रहा है। इस श्राप के चलते यह माना जाता है कि एक दिन यह पर्वत पूरी तरह गायब हो सकता है। परंतु, अध्यात्म और विज्ञान के बीच इस पर्वत की कहानी, धार्मिक आस्था और प्राकृतिक वास्तविकता का एक अनोखा मेल प्रस्तुत करती है।
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