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Written By Author अनिल जैन
Last Updated : मंगलवार, 19 अक्टूबर 2021 (17:42 IST)

विपक्ष शासित राज्य सरकारों को परेशान करने के लिए अब सुरक्षा बलों का इस्तेमाल!

विपक्ष शासित राज्य सरकारों को परेशान करने के लिए अब सुरक्षा बलों का इस्तेमाल! - Now use of security forces to harass the opposition
केंद्र सरकार ने पिछले 6-7 वर्षों से राज्यों के अधिकारों में कटौती और विपक्ष शासित राज्य सरकारों के साथ टकराव पैदा करने का एक सुनियोजित सिलसिला चला रखा है। इस सिलसिले में विपक्ष शासित राज्य सरकारों को अस्थिर या परेशान करने के लिए राज्यपाल, चुनाव आयोग प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), आयकर, केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई), राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) आदि संवैधानिक संस्थाओं और केंद्रीय एजेंसियों का जिस तरह से बेजा इस्तेमाल किया जा रहा है, वह भी किसी से छिपा नहीं है। लेकिन पिछले कुछ समय से इस सिलसिले में केंद्रीय सुरक्षा बलों का इस्तेमाल भी किया जाने लगा है।
 
इस सिलसिले को और आगे बढाते हुए अब केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अपने एक नए और असाधारण आदेश के जरिए पंजाब और पश्चिम बंगाल में सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) द्बारा लोगों से पूछताछ करने, उनकी तलाशी लेने और गिरफ्तारी करने के अधिकार क्षेत्र को बढ़ा दिया है।
 
पंजाब में कांग्रेस की सरकार है और पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की। ये दोनों राज्य भी दूसरे कई राज्यों की तरह सीमावर्ती राज्य हैं। पंजाब की पश्चिमी सीमा जहां पाकिस्तान से सटी हुई है, वहीं पश्चिम बंगाल की सीमाएं बांग्लादेश, नेपाल और भूटान से मिलती हैं। इन दोनों सरहदी सूबों में अभी तक बीएसएफ का निगरानी अधिकार क्षेत्र अंतरराष्ट्रीय सीमा के अंदर 15 किलोमीटर तक सीमित था जिसे बढ़ाकर अब 50 किलोमीटर तक लागू कर दिया गया है।
 
हालांकि केंद्रीय गृह मंत्रालय का यह आदेश असम में भी लागू होगा, जहां भारतीय जनता पार्टी की सरकार है, लेकिन इसी आदेश में भाजपा शासित गुजरात में बीएसएफ के निगरानी अधिकार क्षेत्र को 80 किलोमीटर से घटा कर 50 किलोमीटर दिया है। गौरतलब है कि गुजरात भी सीमावर्ती राज्य है और उसकी उत्तर-पश्चिमी सीमा अंतरराष्ट्रीय है, जो कि पाकिस्तान से लगी हुई है। इस लिहाज से वह भी संवेदनशील राज्य है और वहां हाल ही में देश के चर्चित अडानी उद्योग समूह के निजी मुंद्रा बंदरगाह पर 3000 किलो हेरोइन पकडी गई थी जिसके बारे में सरकार तो मौन है ही, कॉरपोरेट नियंत्रित मीडिया ने भी इस खबर का जिक्र तक करना मुनासिब नहीं समझा।
 
गुजरात की तरह राजस्थान भी पाकिस्तान की सीमा से लगा राज्य है और वहां पहले से बीएसएफ का निगरानी अधिकार क्षेत्र 50 किलोमीटर तक है जिसे नए आदेश में भी बरकरार रखा गया है। पूर्वोत्तर में मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय के पूरे इलाके भी में बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र को पहले की तरह बनाए रखा गया है।
 
बहरहाल पंजाब और पश्चिम बंगाल के संदर्भ में केंद्र सरकार के नए आदेश से यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या वह केंद्रीय अर्द्ध सैनिक बलों का भी राजनीतिकरण नहीं कर रही है? यह सवाल इसलिए उठता है, क्योंकि इसी साल पश्चिम बंगाल में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान भी यह मुद्दा जोर-शोर से उठा था। उस चुनाव में केंद्रीय बलों की भारी संख्या में तैनाती और एक मतदान केंद्र पर केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के जवानों की फायरिंग में कई लोगों के मारे जाने की घटना की खूब आलोचना हुई थी।
 
वहां चुनाव में तो भाजपा नहीं जीत सकी, लेकिन चुनाव के बाद उसने अपने जीते हुए सभी 75 उम्मीदवारों यानी विधायकों की सुरक्षा में सीआरपीएफ के जवान तैनात कर दिए। चुनाव के दौरान भी कई भाजपा कई उम्मीदवारों और चुनाव से पहले भाजपा में दूसरे दलों से आए कई नेताओं को सीआरपीएफ की सुरक्षा मुहैया कराई गई थी। अर्द्ध सैनिक बलों के राजनीतिकरण की यह एक नई मिसाल थी।
 
इससे पहले सेना के राजनीतिक इस्तेमाल की शुरुआत तो खुद प्रधानमंत्री ने ही पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान कर दी थी, जब उन्होंने पुलवामा कांड में मारे गए सेना के जवानों के चित्र अपनी चुनावी रैलियों के मंच पर लगवाएं थे और उनके नाम पर वोट मांगे थे। चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ और तीनों सेनाओं के प्रमुखों की ओर से कश्मीर, पाकिस्तान और विवादास्पद रक्षा सौदों को लेकर राजनीतिक बयानबाजी का सिलसिला भी केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद ही शुरू हो गया था जो अब भी जारी है। यह और बात है कि चीनी सेना की भारतीय सीमाओं में घुसपैठ पर हमारी सेनाओं के प्रमुख बहुत कम बोलते हैं और प्रधानमंत्री तो बिल्कुल ही नहीं बोलते हैं।
 
बहरहाल अब केंद्र सरकार सीमा सुरक्षा के नाम पर राज्यों में बीएसएफ की भूमिका बढ़ा रही है। इसीलिए पंजाब और पश्चिम बंगाल की सरकारों ने केंद्र सरकार के इस फैसले पर आपत्ति जताते हुए इसे देश के संघीय ढांचे को बिगाड़ने वाला राजनीति से प्रेरित कदम करार दिया है। लेकिन लगता नहीं है कि केंद्र सरकार अपने कदम पीछे खिंचेगी।
 
ऐसा लग रहा है कि केंद्र सरकार ने पंजाब में राज्य सरकार और सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी के अंदरुनी विवादों का फायदा उठाने के इरादे से राज्य में बीएसएफ की भूमिका बढ़ाई है। पंजाब की सीमा पाकिस्तान से लगती है और इस वजह से सीमा के अंदर 15 किलोमीटर तक बीएसएफ की गश्त और चौकसी चलती है। लेकिन केंद्र सरकार ने अब इसे बढ़ा कर 50 किलोमीटर कर दिया है। 
पंजाब के मुख्यमंत्री पद से हटाए गए कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपनी खुन्नस निकालने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा उठाया है।
 
इस सिलसिले में वे मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के तत्काल बाद दिल्ली आकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से मिले और उसके बाद केंद्र सरकार ने आनन फानन में पंजाब और पश्चिम बंगाल में बीएसएफ की निगरानी का दायरा बढ़ाने का ऐलान कर दिया। गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल सरकार के साथ केंद्र का टकराव पहले से ही जारी है।
 
सवाल यह भी उठता है कि सीमा पर बीएसएफ जब 15 किलोमीटर तक सारी चौकसी के बावजूद पाकिस्तानी ड्रोन या हथियारों की आमद और नशीले पदार्थों की तस्करी नहीं रोक पा रही है तो अब 50 किलोमीटर तक कैसे रोकेगी? जाहिर है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय के ताजा आदेश का सीधा मकसद बीएसएफ के जरिए राज्य की अंदरुनी सुरक्षा को नियंत्रित करना है। उसके इस फैसले से इससे देश का संघीय ढांचा गड़बड़ाएगा और राज्य की पुलिस के साथ केंद्रीय सुरक्षा बलों का टकराव भी बढ़ेगा। हालांकि केंद्र सरकार ने कहने को और भी राज्यों में बीएसएफ की चौकसी का दायरा बढ़ाया घटाया है लेकिन वह सब दिखावा है। असली मकसद पंजाब और पश्चिम बंगाल में क्रमश: कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस की सरकार को परेशान करना और उनके साथ टकराव बढ़ाना है।
 
पिछले 6-7 वर्षों के दौरान जो एक नई और खतरनाक प्रवृत्ति विकसित हुई, वह है सरकार, सत्तारूढ़ दल और मीडिया द्वारा सेना का अत्यधिक महिमामंडन। यह सही है कि हमारे सैन्य और अर्द्ध सैन्य बलों को अक्सर तरह-तरह की मुश्किल चुनौतियों से जूझना पड़ता है। इस नाते उनका सम्मान होना चाहिए लेकिन उनको किसी भी मामले में सवालों से परे मान लेना, दलीय राजनीतिक हितों को साधने के लिए उनका इस्तेमाल किया जाना और सैन्य नेतृत्व द्वारा राजनीतिक बयानबाजी करना तो एक तरह से लोकतांत्रिक व्यवस्था से सैन्यवादी राष्ट्रवाद की तरफ कदम बढ़ाने जैसा है।
 
(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)
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