फ्रंटलाइन स्वास्थ्यकर्मियों की सुरक्षा के लिए विकसित हुआ ‘डोफिंग यूनिट’
नई दिल्ली, कोरोना काल में स्वास्थ्यकर्मियों की सुरक्षा सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती है। कोरोना महामारी के विरुद्ध अग्रिम मोर्चे पर तैनात स्वास्थ्यकर्मियोंको कार्य समाप्ति के बाद स्वयं को सुरक्षित रखने के लिए अपनी पीपीई किट को सुरक्षित तरीके से उतारने से लेकर स्वयं को सैनिटाइज करना आवश्यक हो जाता है और इसमें जरा सी भी असावधानी भारी पड़ सकती है।
इस मुश्किल का हल निकालने के लिए त्वास्ता मैन्युफैक्चरिंग सॉल्यूशंस ने सेंट गोबिन के साथ मिलकर एक थ्रीडी प्रिंटिंग 'डोफिंग यूनिट' विकसित की है। त्वास्ता भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मद्रास के पूर्व छात्रों का तकनीकी उद्यम से जुड़ा हुआ एक स्टार्टअप है।
पीपीई किट के 'प्रभावी एवं सुरक्षित' रूप से निपटान की प्रक्रिया को ही 'डोफिंग' कहा जाता है। अपनी शिफ्ट का काम समाप्त करने के उपरांत स्वास्थ्यकर्मियों को अपनी पीपीई किट्स उतारकर उन्हें सुरक्षित रूप से डिस्पोज करना आवश्यक हो जाता है ताकि पीपीई किट पर वायरस की संभावित मौजूदगी से संक्रमण के विस्तार की आशंका न रहे। इस आशंका को दूर करने में डोफिंग यूनिट्स बहुत कारगर विकल्प मानी जा रही हैं।
इसकी पहली यूनिट चेन्नई के निकट स्थित कांचीपुरम के सरकारी अस्पताल में शुरू की गई है जबकि दूसरी यूनिट चेन्नई स्थित ओमानदुरार मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में स्थापित हुई है। इसी कड़ी में गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल, तिरुवल्लुवर में तीसरी डोफिंग यूनिट का शिलान्यास भी हो चुका है। इन दोनों इकाइयों का उद्घाटन और तीसरी का शिलान्यास तमिलनाडु के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री एम. सुब्रमण्यन ने किया।
डोफिंग यूनिट के लिए जो कारगर थ्रीडी प्रिंटिंग तकनीक इस्तेमाल की गई वह एक किस्म की रेडिमेड तकनीक है, जिसे अमल में लाना बहुत आसान है। त्वास्ता मैन्युफैक्चरिंग सॉल्यूशंस के सह-संस्थापक परिवर्तन रेड्डी ने बताया, एक डोफिंग यूनिट में तीन दरवाजों के साथ दो कमरे बनाए गए हैं। पीपीई किट पहने स्वास्थ्यकर्मी पहले कमरे में प्रवेश करता है।
उस कमरे में पीपीई किट को उतारा जाता है। कमरे में लगे ऑटो सैनिटाइजर और डिस्पेंसर से स्वास्थ्यकर्मी विसंक्रमित होकर दूसरे कमरे में प्रवेश करता है। यहां पर लगे यूवीसी स्टरलाइजेशन बॉक्स में उनके द्वारा लाये गए पहनने वाले कपड़ो को विसंक्रमित किया जाता है जिसे पहन कर वह तीसरे दरवाजे से बाहर जा सकते हैं। इस पूरी प्रक्रिया में लगभग 10 मिनट का समय लगता है।
परिवर्तन रेड्डी कहते हैं कि इसका निर्माण न केवल सरल, बल्कि समय की बचत करने वाला भी है। इस 'मेड इन इंडिया' तकनीक में निकट भविष्य के दौरान 'बिल्डिंग' से लेकर 'प्रिंटिंग' जैसे पहलुओं के क्रांतिकारी कायाकल्प की अकूत संभावनाएं दिखती हैं।
इस पहल को लेकर तमिलनाडु के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री एम. सुब्रमण्यन ने कहा कि राज्य के सरकारी अस्पतालों में ऑक्सीजन जेनरेटर्स और डोफिंग यूनिट्स स्थापित करने के लिए कंपनी को कारोबारी सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) के अंतर्गत वित्तीय मदद उपलब्ध कराई गई है। सुब्रमण्यन का मानना है कि ये डोफिंग यूनिट्स पूरे देश के लिए आदर्श बनेंगी।
इस परियोजना को लेकर परिवर्तन रेड्डी ने यह भी बताया कि इस मुश्किल और चुनौतीपूर्ण समय में स्वास्थ्य पेशे से जुड़े पेशेवरों की चिंता के बोझ को घटाने के लिए सुरक्षित और कारगर डोफिंग यूनिट्स बहुत आवश्यक हो गई हैं। स्वास्थ्यकर्मियों द्वारा दिखाई जा रही बहादुरी के बीच त्वास्ता और सेंट गोबिन ने भी अपने प्रयासों को नए आयाम पर ले जाने की योजना बनाई है।
इसकी विशेषता पर प्रकाश डालते हुए परिवर्तन ने कहा कि लागत के मोर्चे पर बोझ बढ़ाए बिना ही यह सुविधा उपलब्ध हो सकेगी। साथ ही इसे व्यक्ति विशेष की आवश्यकता के अनुरूप ढाला भी जा सकेगा।
(इंडिया साइंस वायर)