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स्टूडेंट ऑफ द ईयर 2 :‍ फिल्म समीक्षा

स्टूडेंट ऑफ द ईयर 2 :‍ फिल्म समीक्षा - Student of the Year 2, Karan Johar, Tiger Shroff, Movie Review in Hindi, Samay Tamrakar, Ananya Pandey
आजकल आकर्षक पैकेजिंग का जमाना है और इसके जरिये घटिया माल भी इस एहसास के साथ टिकाया जाता है कि आपने कोई खास चीज खरीदी है। स्टूडेंट ऑफ द ईयर 2 इस बात का सबूत है। 
 
हिट फिल्म का फायदा उठाने के लिए सीक्वल बना दिया गया है, जिसमें कुछ भी देखने लायक नहीं है। बड़ा बजट, फैशनेबल कपड़े, कूल कैरेक्टर्स के जरिये दर्शकों को चकाचौंध में फंसाने की कोशिश की गई है ताकि वे और कुछ देख नहीं पाए, लेकिन यह कोशिश बेकार ही जाती है। 
 
कहानी के मेन कैरेक्टर्स बड़े ही अजीब हैं। रोहन (टाइगर श्रॉफ) थोड़ा गरीब किस्म का है। पूरी फिल्म में ब्रैंडेड कपड़े और जूते पहनता है, लेकिन ट्रैक पर दौड़ते समय बेचारे के पास गरीबों वाले जूते रहते हैं। पिशोरीलाल चमनदास नामक स्कूल में पढ़ता है और सेंट टेरेसा में पढ़ने का ख्वाब देखता है। 
 
श्रेया (अनन्या पांडे) टिपिकल अमीरजादी हैं जो बॉलीवुड फिल्मों में ही ज्यादा पाई जाती हैं। स्कूल की प्रॉपर्टी को नुकसान पहुंचाकर कहती है बिल मेरे डैड को पहुंचा देना। आखिर ट्रस्टी की बेटी जो है जिसके सामने प्रिंसीपल भी कांपता है। प्रिंसीपल भी प्रिंसीपल कम और आरजे ज्यादा लगता है। कोई सी भी प्रतियोगिता हो माइक उसके पास ही रहता है। 
 
मृदुला (तारा सुतारिया) पर रोहन मरता है, लेकिन उसे तो वो अमीर लड़के पसंद आते हैं जिनके पास महंगी गाड़ी हो। रोहन जब स्पोर्ट्स कोटे से सेंट टेरेसा में आ पहुंचता है तो मृदुला कहती है अरे मेरे बाप के पास तो तीन-चार पेट्रोल पंप है, लेकिन तुम यहां कैसे आ गए? 
 
सेंट टेरेसा में कभी पढ़ाई होते नजर ही नहीं आती। टीचर्स (गुल पनाग) ऐसे कपड़े पहनती हैं मानो स्विमिंग के लिए जाने वाली हों। यहां पर लड़के-लड़कियां एक-दूजे को चूमते रहते हैं। लड़कियां छोटे-छोटे कपड़े पहनकर मटकती रहती हैं और लड़के भी फैशन की दुकान लगते हैं। पढ़ाई छोड़ सब कुछ होता है।  
 
कंपनियों से पैसा लेकर फिल्म में प्रचार भी कर दिया गया है। हीरो कहता है- अरे यहां पर 'सबवे' भी है, तो हीरोइन जवाब देती है- ये सेंट टेरसा है। 
 
पहले भाग में भी यही सब था, लेकिन कहानी विश्वसनीय थी। मनोरंजन भी था। दूसरे भाग में कहानी के नाम पर कुछ भी पेश कर दिया गया। मनोरंजन तो ढूंढे नहीं मिलता। 
 
दो लड़कियां और एक लड़का है तो लव स्टोरी डाल दी गई। मृदुला को रोहन चाहता है, लेकिन उसकी नजर अमीर मानव मेहरा (आदित्य सील) पर है। ऑडी में पढ़ने आने वाली और सभी को अपने सामने तुच्छ समझने वाली श्रेया की शुरुआत में रोहन से नोकझोक चलती है तभी समझ में आ जाता है कि बाद में इसका रोमांस रोहन से चलेगा। 
 
होता भी ऐसा ही है। श्रेया की तरफ रोहन आकर्षित होता है तो मृदुला भी रोहन को चाहने लगती है। बहुत देर तक समझ ही नहीं आता है कि कौन किसको और क्यों चाह रहा है? सीन पर सीन आते जाते हैं और यह बचकानी लव स्टोरी बेवजह उलझने लगती है। 
 
फिल्म का नाम स्टूडेंट ऑफ द ईयर है इसलिए कॉम्पिटिशन्स भी दिखाई गई है। श्रेया का बहुत बड़ा सपना है कि वह डांस प्रतियोगिता जीते। इधर बात चलती रहती है। उधर गाना आता है और पता चलता है कि वह जीत गई है। इतना बड़ा सपना इतनी आसानी से पूरा हो जाता है कि दर्शक आंख ही मलते रह जाते हैं। 
 
ऐसी ही कुछ प्रतियोगिताएं महज गानों में निपटा दी गई हैं। अब एक बड़ी कॉम्पिटिशन, हमारे हीरो कबड़्डी-कबड्डी खेलेंगे। पता नहीं 'विदेशी' लगने वाली फिल्म में 'देशी' खेल क्यों चुन लिया गया? और चुन लिया गया तो ऐसा मजाक क्यों बना दिया गया? 
 
फिल्म के हीरो और विलेन ऐसी कबड्डी खेलते हैं कि हंसी छूट जाती है। इस 'खेल' में फाइटिंग होती है और जिमनास्ट की तरह खिलाड़ी उछाले मारता है। 
 
निर्देशक को लगा कि यह खेल देख दर्शकों को खूब मजा आएगा, लिहाजा ढेर सारे फुटेज इस पर खर्च कर डाले जिससे दर्शक बेहद बोर होते हैं। उन्हें समझ ही नहीं आता कि कबड्डी कैसे खेला जा रहा है? कोई रोमांच ही नजर नहीं आता। 
 
पुनीत मल्होत्रा ने फिल्म को निर्देशित किया है और निर्माता करण जौहर के पैसों को उन्होंने बरबाद किया है। इसके पहले वे 'गोरी तेरे प्यार में' (2013) नामक डब्बा फिल्म बना चुके हैं। पुनीत द्वारा फिल्माए गए दृश्यों में कोई कनेक्शन नहीं है। कभी भी कोई भी सीन टपक पड़ता है जिसका कोई सिर-पैर नहीं होता। कहीं भी गाने चिपका दिए गए और कहीं भी एक्शन सीक्वेंस।  
 
जब चाहा रोहन से उसके दोस्तों को नाराज करवा दिया। जब चाहा सुलह करवा दी गई। मृदुला को चाहते-चाहते कब रोहन, श्रेया को चाहने लगता है, समझ ही नहीं आता। रोहन से नफरत करते-करते कब श्रेया उसे चाहने लगती है, ये भी निर्देशक और लेखक की मर्जी पर ही निर्भर करता है। कहने का मतलब ये कि निर्देशक और लेखक ने देखने वालों की अक्ल को कम आंकते हुए जिधर चाहा कहानी घूमा दी। 
 
फिल्म के कैरेक्टर्स को कुछ ज्यादा ही 'कूल' दिखाने की कोशिश की गई है। कई बार तो वे हिंदी भी ऐसे बोलते हैं जैसे कोई अंग्रेज बोल रहा हो। हीरो फाइटिंग के लिए दौड़ लगा रहा है तो उस पर पाइप से पानी छिड़का गया है ताकि वह 'कूल' लगे। 
 
गानों के मामले में भी फिल्म कंगाल है। 'ये जवानी है दीवानी' ही अच्‍छा लगता है, लेकिन वो भी पुराना हिट गीत है। अरशद सैयद न ढंग की कहानी लिख पाए और न ही ढंग के संवाद। 
 
टाइगर श्रॉफ हाथ-पैर चलाते या डांस करते तब अच्छे लगते हैं जब फिल्म में वैसी सिचुएशन हो, लेकिन यहां वे यह काम करते भी अच्छे नहीं लगते। एक्टिंग के नाम पर अभी भी वे 'बागी' वाले मोड पर ही हैं। 
 
सोशल मीडिया की सेंसेशन्स तारा सुतारिया और अनन्या पांडे भी इस फिल्म में नजर आई हैं। तारा सुतारिया के किरदार को लिखते वक्त राइटर ही कन्फ्यूज था तो उन्हें क्या समझ आता। वे बिलकुल प्रभावित नहीं कर पातीं। अनन्या पांडे को फिल्म के दूसरे हाफ में मौका मिलता है। वे अच्छी लगती हैं, लेकिन एक्टिंग के नाम पर उन्हें खूब कोशिश करना पड़ी है। 
 
स्टूडेंट ऑफ द ईयर तो छोड़िए, यह तो स्टूडेंट ऑफ द डे के भी लायक नहीं है। 
 
निर्माता : हीरू यश जौहर, करण जौहर, अपूर्वा मेहता
निर्देशक : पुनीत मल्होत्रा 
संगीत : विशाल शेखर 
कलाकार : टाइगर श्रॉफ, तारा सुतारिया, अनन्या पांडे 
* 2 घंटे 26 मिनट
रेटिंग : 1/5